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लैंड फ्रॉड कमेटी को बाईपास करना होगा मुश्किल

वर्ष 2014 में गठित कोर्डिनेशन कमेटी/एसआईटी को बाईपास कर रहे थे पुलिस थाने, हाईकोर्ट में निस्तारित याचिका के बाद तस्वीर और साफ

Amit Bhatt, Dehradun: जमीन फर्जीवाड़े के मामले में पुलिस की कार्रवाई कोर्ट के समक्ष धड़ाम न हो सके, इस मंशा के साथ राज्य सरकार ने वर्ष 2014 में लैंड फ्रॉड कोर्डिनेशन कमेटी का गठन किया था। इसी के साथ कमेटी की अध्यक्षता गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के मंडलायुक्त के साथ आवश्यक विशेषज्ञता वाले तमाम अधिकारियों को इसमें शामिल किया गया था। हालांकि, इसके बाद भी जमीन फर्जीवाड़े के विभिन्न मामलों में पुलिस थाने सीधे अपने स्तर पर मुकदमे दर्ज करते रहे। इसको लेकर देहरादून निवासी अधिवक्ता सचिन शर्मा ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। जिसका निस्तारण मंगलवार को चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस राजेश थपलियाल की खंडपीठ ने किया।

याचिका में सचिन शर्मा ने कहा कि लैंड फ्रॉड कोर्डिनेशन कमेटी का काम जमीन धोखाधड़ी के मामलो की जांच करना, जरूरत पड़ने पर उसकी एसआईटी से जांच करके मुकदमा दर्ज करना था। लेकिन, लैंड फ्रॉड व धोखाधड़ी की जितनी भी शिकायत पुलिस को मिल रही है, पुलिस खुद ही इन मामलों में अपराध दर्ज कर रही है। जबकि शासनादेश के अनुसार ऐसे मामलों को लैंड फ्रॉड समन्वय समिति के पास जांच के लिए भेजा जाना था। पुलिस को न तो जमीन से जुड़े मामलों के नियम पता हैं, न ही ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने का अधिकार।

शासनादेश में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि जब ऐसा मामला पुलिस के पास आता है तो लैंड फ्रॉड समन्वय समिति को भेजा जाए। वही इसकी जांच करेगी, अगर फ्रॉड हुआ है तो संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश देगी। वर्तमान में कमेटी का कार्य थाने से हो रहा है, इस पर रोक लगाई जाए। इस मामले में खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर एसआईटी की ओर से अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया था। सरकार ने रिपोर्ट पेश कर कहा है कि कमेटी के पास अभी तक 426 शिकायतें आई और कमेटी ने उन पर सुनवाई के साथ कार्रवाई की है। जिससे यह भी स्पष्ट हुआ कि लैंड फ्रॉड के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार अभी भी मंडलायुक्त की अध्यक्षता वाली कमेटी के ही पास है।

ऐसे में यह देखना होगा कि कोर्ट के समक्ष लैंड फ्रॉड कमेटी की कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने के बाद उत्तराखंड शासन या पुलिस मुख्यालय जमीन फर्जीवाड़े के मामलों में पुलिस के लिए क्या नए दिशा निर्देश जारी करता है। हालांकि, कुछ समय पहले इसी तरह के कुछ प्रकरणों का संज्ञान लेकर देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह ने सभी थानों को निर्देश जारी कर कहा था कि जमीन फर्जीवाड़े के मामलों को लैंड फ्रॉड कोर्डिनेशन कमेटी के पास भेजा जाए।

विक्रय विलेख की सत्यता परखने का अधिकार सिविल कोर्ट को, मिली जमानत
जमीन फर्जीवाड़े के मामले में सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश नजीर बनेगा। जिसमें विक्रय विलेख/रजिस्ट्री विवाद को लेकर प्रकरण सिविल कोर्ट में दायर होने के बाद दर्ज किए गए आपराधिक मुकदमे को लेकर आदेश जारी किया गया है। धीराज चौधरी बनाम असम सरकार के मामले में कोर्ट ने प्रकरण में गतिमान सिविल सूट को देखते हुए आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी किया। साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ कि विक्रय विलेख की सत्यता के मामले में निर्णय करने का अधिकार सिविल कोर्ट के पास है। अब इस मामले में सिविल कोर्ट ही आदेश पारित कर स्पष्ट करेगा कि दोषी कौन है। जबकि प्रकरण में पुलिस ने विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर आरोपी की गिरफ्तारी की तैयारी कर ली थी।

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