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यूकेपीएससी सिविल जज भर्ती को लेकर मचा बवाल, अंतिम वर्ष के विधि छात्रों के भविष्य से खिलवाड़

ला के छात्रों ने मुख्यमंत्री से की तिथि बढ़ाने की मांग, आंदोलन की भी चेतावनी

Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) द्वारा घोषित सिविल जज (जूनियर डिवीजन) भर्ती को लेकर प्रदेश भर में विधि छात्रों का आक्रोश फूट पड़ा है। छात्रों का आरोप है कि आयोग ने आवेदन की अंतिम तिथि 5 जून तय कर उनके भविष्य के साथ अन्याय किया है। हैरानी की बात यह है कि राज्य के ज़्यादातर लॉ कॉलेजों में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं अभी तक हुई ही नहीं हैं—ऐसे में हजारों योग्य छात्र आवेदन से वंचित हो रहे हैं।

छात्रों की दो टूक: हम योग्य हैं, लेकिन प्रशासन हमें अयोग्य बना रहा है!
नियम के मुताबिक, इस भर्ती में आवेदन के समय स्नातक की डिग्री अनिवार्य है। लेकिन जब परीक्षा ही नहीं हुई तो डिग्री कहां से लाएं? छात्र साफ कह रहे हैं कि आयोग का यह रवैया गैर-जिम्मेदाराना है और यह एक पूरी पीढ़ी के न्यायिक करियर को समाप्त करने की साजिश जैसी लग रही है।

भविष्य बंद करने की तैयारी? SC का नया नियम और बढ़ी चिंता
छात्रों का ग़ुस्सा और बढ़ गया है जब हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मई 2025 को यह आदेश दिया कि न्यायिक सेवा परीक्षाओं में बैठने के लिए तीन साल की अनिवार्य वकालत ज़रूरी होगी। ऐसे में यदि छात्र इस भर्ती चक्र से चूकते हैं तो अगली परीक्षा (जो दो-तीन साल बाद होगी) तक न तो वकालत कर पाएंगे और न ही पात्र बन पाएंगे। यानी एक झटके में उनका न्यायिक करियर ही खत्म हो सकता है।

सीधा सवाल सरकार से: क्या आप हमारे भविष्य को मुँह मोड़ कर देखेंगे?
छात्रों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अपील करते हुए मांग की है कि आवेदन की अंतिम तिथि 15 जुलाई 2025 तक बढ़ाई जाए। यह न केवल तार्किक मांग है, बल्कि न्याय और अवसर की भावना के अनुरूप भी है। छात्रों का कहना है कि सरकार यदि सचमुच युवाओं के भविष्य को लेकर गंभीर है, तो उसे इस मुद्दे पर तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।

आंदोलन की चेतावनी
छात्र संगठनों ने इशारा दिया है कि अगर अंतिम तिथि नहीं बढ़ाई गई, तो वे प्रदेशव्यापी आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। “हम चुप नहीं बैठेंगे, यह हमारे करियर की लड़ाई है,” एक छात्र नेता ने कहा।

सरकार और आयोग से अब जवाब की उम्मीद नहीं, फैसले की उम्मीद है।
छात्रों का कहना है कि यह केवल एक आवेदन की बात नहीं है, बल्कि न्यायपालिका में शामिल होने के उनके संवैधानिक अधिकार का मामला है। यदि प्रशासन ने समय रहते कदम नहीं उठाया, तो इतिहास इसे एक पीढ़ी के साथ किया गया अन्याय मानकर याद करेगा।

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