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बिग ब्रेकिंग: 02 आइएएस और 01 पीएसीएस सस्पेंड, मुकदमे की भी तैयारी

हरिद्वार में 54 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी, डीएम हरिद्वार कर्मेन्द्र सिंह और एसडीएम अजयवीर सिंह पर कार्रवाई

Rajkumar Dhiman, Dehradun: भ्रष्टाचार पर बड़ी चोट करते हुए उत्तराखंड की धामी सरकार ने 02 आइएएस और 01 पीएसीएस अफसर को सस्पेंड कर दिया है। यह कार्रवाई हरिद्वार नगर निगम के तत्कालीन नगर आयुक्त आइएएस वरुण चौधरी, जिलाधिकारी हरिद्वार कर्मेन्द्र सिंह और उपजिलाधिकारी अधिकारी पीएसीएस अजयवीर सिंह पर 54 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में की गई है। जब भूमि घोटाले की जांच वरिष्ठ आइएएस अफसर रणवीर सिंह चौहान को सौंपी गई थी, तब से माना जा रहा था कि सीएम पुष्कर सिंह धामी कड़ी कर्रवाई के मूड में हैं। 29 मई को जांच अधिकारी रणवीर सिंह ने रिपोर्ट सचिव शहरी विकास अफसर को सौंप दी थी।

हरिद्वार भूमि घोटाले की जांच के दौरान जांच अधिकारी आईएएस रणवीर सिंह चौहान।अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर सचिव शैलेश बगोली ने तीनों अधिकारियों को निलबिंत कर दिया है। निलंबन आदेश में तीनों अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी भी की गई है। जिसमें कहा गया है कि जिलाधिकारी हरिद्वार और तत्कालीन नगर निगम प्रशासक कर्मेन्द्र सिंह ने नगर निगम की ओर से क्रय की गई भूमि के लैंडयूज में बदलने में शासनादेशों की अनदेखी की गई। वहीं, नगर आयुक्त के पद पर तैनात रहते हुए वरुण चौधरी ने निगम के हितों की रक्षा नहीं की।
इसी तरह उपजिलाधिकारी हरिद्वार में पद पर रहते हुए अजयवीर सिंह ने भूमि को अकृषक करने में राजस्व परिषद की निर्धारित एसओपी का पालन नहीं किया।

हो सकता है मुकदमा, गले की फांस बना है प्रकरण
नगर निगम हरिद्वार ने जिस 15 करोड़ रुपये की भूमि को लैंडयूज परिवर्तन के क्रम में 54 करोड़ रुपये में खरीदा, उसकी रजिस्ट्री कैंसिल करवानी आवश्यक है। लेकिन, इसके किए दो विकल्प सामने हैं। पहले विकल्प में सीधे एफआईआर दर्ज करानी पड़ेगी। जिससे मामला सीधे रूप में आपराधिक षड्यंत्र से जुड़ जाएगा। यह कार्रवाई बेहद सख्त होगी। दूसरा यह कि सिविल वाद दाखिल किया जाए। हालांकि, यह प्रक्रिया लंबी होगी और इसमें विक्रेता पक्ष भी पैरवी करेगा। वह यह तर्क देगा कि उसका कुसूर क्या है।

बिना रजिस्ट्री निरस्त कराए किए गए घपले का पटाक्षेप नहीं होगा और जिस मंशा से सरकार ने जांच और निलंबन की कार्रवाई की है, वह फलीभूत नहीं होगी। जाहिर है इस समय सरकार और शासन के समक्ष निर्णय करने में चुनौती खड़ी है। लेकिन, सरकार की मंशा को देखते हुए माना जा रहा है कि सख्त निर्णय की तरफ कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

यह है घोटाला
आपको बता दें कि यह मामला 15 करोड़ रुपये की उस भूमि से जुड़ा है, जिसे नगर निगम ने 54 करोड़ रुपये में ख़रीदा। मनचाही कीमत पर भूमि खरीद की राह आसान बनाने के लिए अधिकारियों ने भूमि को वास्तविक कीमत को बढ़ाने के लिए लैंडयूज परिवर्तन और सर्किल रेट का गलत तरीके से लाभ उठाया। इस भूमि की खरीद नगर निगम ने रिंग रोड परियोजना में अधिग्रहीत की गई भूमि के बदले मिले मुआवजे की राशि से की। यह मामला कुछ वैसा ही है, जैसे एनएच 74 में खेल किया गया था।

पूर्व में इन पर हो चुकी कार्रवाई
हरिद्वार नगर निगम द्वारा बाजार भाव से अधिक दर पर भूमि खरीदे जाने के प्रकरण में प्रथम द्रष्टया दोषी पाए गए चार अधिकारियों को निलंबित किया गया था और एक अन्य अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगा गया। दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर नगर निगम हरिद्वार द्वारा सराय गांव में भूमि खरीद मामले में यह सख्त कार्रवाई की गई थी। जांच में पाया गया कि उक्त भूमि की खरीद के लिए गठित समिति के सदस्य के रूप में हरिद्वार नगर निगम के अधिशासी अधिकारी श्रेणी-2 (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त) रवीन्द्र कुमार दयाल, सहायक अभियंता (प्रभारी अधिशासी अभियंता) आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट

और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल ने अपने दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया। इस आरोप में सभी अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। प्रकरण में सेवा विस्तार पर कार्यरत सेवानिवृत्त सम्पत्ति लिपिक वेदपाल की भी संलिप्तता पायी गयी जिसके बाद सेवा विस्तार समाप्त करते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। इसके साथ ही हरिद्वार नगर निगम की वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट से भी स्पष्टीकरण मांगा गया था।

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