बड़ी खबर: जमीन की रजिस्ट्री से पहले बताना होगा लैंडयूज, रेरा का आदेश
कृषि भूमि पर अवैध प्लाटिंग के खेल पर सख्त हुआ रेरा, मास्टर प्लान में आवासीय लैंडयूज 80% तक पहुंचा

Rajkumar Dhiman, Dehradun: राजधानी देहरादून समेत पूरे प्रदेश में धड़ल्ले से कृषि भूमि को काटकर बेचने का खेल चल रहा है। प्रॉपर्टी डीलरों और बिल्डरों ने खेती की जमीन को बड़े पैमाने पर आवासीय प्लाटों में बदल डाला है। स्थिति यह है कि मसूरी–देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के प्रस्तावित मास्टर प्लान 2041 में आवासीय लैंडयूज का दायरा 58.43 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जबकि मानक सिर्फ 36–39 प्रतिशत का है। इसमें मिश्रित श्रेणी और नदी-नालों की भूमि पर हुए निर्माण जोड़ दिए जाएं तो आंकड़ा 80 प्रतिशत से ऊपर निकल जाता है। हालांकि, वर्तमान में देहरादून में एमडीडीए अवैध प्लाटिंग के खेल पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रहा है।
इस गंभीर मर्ज पर अब उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने भी शिकंजा कसना शुरू किया है। धर्मावाला क्षेत्र में कृषि भूमि पर अवैध प्लाटिंग के मामले में रेरा सदस्य नरेश सी. मठपाल की सख्ती के बाद न सिर्फ प्लाटिंग रोकी गई बल्कि 02 लाख रुपए का जुर्माना भी वसूला गया। इस कार्रवाई ने प्रदेशभर में चल रहे अवैध कारोबार की पोल खोल दी है।
सब रजिस्ट्रार की लापरवाही उजागर
रेरा सदस्य ने पाया कि कृषि भूमि पर आवासीय भूखंडों की बिक्री का कोई लेआउट पास नहीं किया जाता। बावजूद इसके, संबंधित सब रजिस्ट्रार आंख मूंदकर इनकी रजिस्ट्री कर देते हैं। उन्हें केवल सर्किल रेट की वसूली से मतलब रहता है। भोले-भाले खरीदारों को बिना लैंडयूज बताए कृषि भूमि बेची जा रही है। जब वह नक्शा पास कराने जाते हैं तो प्राधिकरण उन्हें बैरंग लौटा देते हैं। ऐसे में तमाम लोग अवैध निर्माण को भी विवश हो जाते हैं।
अब रजिस्ट्री में अनिवार्य होगा लैंडयूज बताना
रेरा ने आदेश दिया है कि अब से हर रजिस्ट्री में भूमि का लैंडयूज मास्टर प्लान के अनुसार दर्ज करना अनिवार्य होगा। सब रजिस्ट्रार विक्रेता से भूमि उपयोग की प्रति प्राप्त करेंगे। यदि भूमि पर जेडएएलआर एक्ट की धारा 143 (आबादी) की कार्रवाई या भू उच्चीकरण हुआ है तो उसकी सूचना भी विक्रय विलेख में दर्ज करनी होगी।
अवैध प्लाटिंग पर कार्रवाई करनी होगी साझा
रेरा ने सभी विकास प्राधिकरणों को आदेशित किया है कि वे यदि किसी अवैध प्लाटिंग को ध्वस्त करते हैं तो उसकी जानकारी अनिवार्य रूप से रेरा को दें। ताकि ऐसे भूखंडों की बिक्री पर रोक लग सके और स्वतः ही प्लाटिंग थम जाए। रेरा ने स्पष्ट किया है कि 500 वर्गमीटर से अधिक और 8 यूनिट से ऊपर के निर्माण की स्थिति में प्रोजेक्ट का पंजीकरण रेरा में कराना अनिवार्य है।
बिजली–पानी की सुविधा नहीं मिलेगी
कृषि भूमि पर अवैध कॉलोनियों को हतोत्साहित करने के लिए रेरा ने बिजली, पानी और अन्य मूलभूत सुविधाओं की मंजूरी रोकने के निर्देश दिए हैं। जब न तो रजिस्ट्री होगी और न ही मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी तो अवैध प्लाटिंग का कारोबार स्वतः ठप पड़ेगा।
निबंधन विभाग पर गंभीर सवाल, रेरा के आदेश ठंडे बस्ते में डाले जाते रहे
रेरा के गठन के बाद से ही सब रजिस्ट्रार कार्यालयों को कृषि भूमि की रजिस्ट्री रोकने के आदेश दिए जाते रहे हैं। लेकिन निबंधन विभाग और स्थानीय प्रशासन इन आदेशों को लगातार दरकिनार करता रहा। अब जबकि रेरा को सिविल कोर्ट जैसी शक्तियां मिल चुकी हैं, तब से अधिकारी आदेश मानने को मजबूर हुए हैं—वह भी सिर्फ कार्रवाई के डर से।
मुख्य सचिव को भेजी गई आदेश की प्रति
इस पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए रेरा सदस्य नरेश सी. मठपाल ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव को भेजी है, ताकि आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए जा सकें। साथ ही संबंधित विभागों को भी आदेश भेजा गया है।
धर्मावाला प्रकरण बना नजीर
रेरा ने जिस मामले से पर्दाफाश किया, वह विकासनगर के धर्मावाला क्षेत्र का है। यहां शालिनी गुप्ता और सुधीर गुप्ता ने कृषि भूमि पर अवैध प्लाटिंग कर दी थी। पकड़े जाने पर उन्होंने गलती स्वीकार की और दो लाख का जुर्माना भरते हुए शपथ पत्र दिया कि भविष्य में बिना लैंडयूज परिवर्तन के प्लाटिंग नहीं करेंगे।