
Amit Bhatt, Dehradun: देहरादून में निजी स्कूलों की मनमानी के किस्से आम हैं। छोटी-मोटी बातों को सरकारी सिस्टम नजरअंदाज करता रहा है, लेकिन जब पानी सिर से ऊपर चला जाए तो क्या किया जाए। ऐसे स्कूल प्रशासन को जिलाधिकारी सविन बंसल कड़ा सबक सिखा रहे हैं। जिसमें मनमानी फीस वृद्धि और स्टेशनरी की खरीद के दबाव को दूर कर दिया गया है। लेकिन, छात्रों और शिक्षक-शिक्षिकाओं के मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न को लेकर प्रशासन की यह जंग जारी है। जिन प्रकरणों में महिला आयोग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग मूक दर्शक बने रहते हैं, उन मामलों में भी जनहित में प्रशासन सीधा दखल कर रहा है। यही कारण है कि जिलाधिकारी सविन बंसल की सख्ती के बाद देहरादून के एडिफाई स्कूल ने शिक्षिका कनिका मदान की दो माह की अवशेष सैलरी जारी कर दी है। साथ ही सुरक्षा राशि दी गई और शिक्षिका को अनुभव प्रमाण पत्र भी दे दिया गया है।
मनमानी का यह किस्सा तो खत्म हुआ, लेकिन पुरकल यूथ डेवलपमेंट सोसाइटी के स्कूल प्रशासन/सचिव की मनमानी पर अंकुश लगाया जाना अभी बाकी है। हालांकि, यह प्रकरण जिलाधिकारी के समक्ष गतिमान है और उम्मीद की एक किरण बाकी है। फिर भी पाठकों को यहां की संवेदनहीनता की कहानी जानना आवश्यक है। बड़े अफसोस की बात है कि पुरकल यूथ डेवलपमेंट सोसाइटी ने एक समय में जो मान और सम्मान कमाया, उस पर कुछ पदाधिकारियों की कार्यप्रणाली बट्टा लगा रही है। जो सोसाइटी देहरादून के पुरकुल क्षेत्र में गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए लर्निंग अकादमी चलाती है, वहां ऐसा लगता है कि मानवीय मूल्य क्षीण होने लगे हैं। यह संस्था एक तरफ गरीब बच्चों के उत्थान के कार्यों के लिए देश-विदेश से सीएसआर (कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) और फॉरेन कंट्रीब्यूशन रगुलेशन एक्ट 2010 के तहत धनराशि प्राप्त करती है और दूसरी तरफ इस संस्थान में सालों से सेवा करने वाली शिक्षिकाओं को एक झटके में अकारण ही निकाल दिया जाता है। वह भी ऐसी स्थिति में जब एक शिक्षिका मातृत्व अवकाश पर होती है। अवकाश समाप्त हो जाने के बाद उसके लिए सोसाइटी के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।
आर्थिक और मानसिक शोषण के इस मामले में सोसाइटी से निकाली गई शिक्षिका कंचन ने पहले महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने दोनों पक्षों की बात सुनी। पीड़ित शिक्षिका ने कहा कि उन्होंने 25 जुलाई 2024 से 14 नवंबर 2024 तक मातृत्व अवकाश लिया था। चूंकि बच्चे को देखभाल की अतिरिक्त आवश्यकता थी, इसलिए कंचन ने स्कूल प्रशासन से आग्रह किया था कि अवकाश को 08 जनवरी तक बढ़ाया जाए। उन्हें 09 जनवरी को ज्वाइन करना था।
लेकिन, सोसाइटी के सचिव ने अकारण ही शिक्षिका का अवकाश अप्रैल 2025 तक बढ़ा दिया। शिक्षिका ने आयोग को बताया कि वह सोसाइटी की लर्निंग अकादमी में कक्षा 08 और 09 के बच्चों को पढ़ाती थीं। इससे पहले कि शिक्षिका बढ़ाए गए अवकाश के बाद दोबारा स्कूल में ज्वाइन करतीं, उन्हें ईमेल के माध्यम से सूचित किया गया कि अब कक्षा 04 के छात्रों को भी पढ़ाना होगा। इस पर कंचन ने तर्कसंगत आपत्ति की तो सचिव ने 08 अप्रैल को कॉन्फ्रेंस हॉल में बुलाया और एचआर, प्रिंसिपल की उपस्थिति में स्कूल से निकालने की धमकी दी।
इसके बाद उन्हें वापस ज्वाइन नहीं करने दिया गया। थक हारकर ही शिक्षिका को व्यथित होकर महिला आयोग का दरवाजा खटखटाना पड़ा। आयोग की अध्यक्ष ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सचिव को कहा कि वह शिक्षिका को स्कूल में पुनः नियुक्ति प्रदान करें। हालांकि, सचिव नियुक्ति देने को तैयार नहीं हुए। प्रकरण की गंभीरता और मातृत्व अवकाश अधिनियम 1961 की अनदेखी को देखते हुए आयोग ने सचिव शिक्षा को पत्र भेजकर प्रकरण की जांच और आवश्यक कार्यवाही कर उससे आयोग को अवगत कराने के लिए कहा।
शिक्षा सचिव ने आयोग के आदेश के क्रम में क्या कार्रवाई की कुछ पता नहीं। यह स्थिति हमारे सरकारी तंत्र की लचर स्थिति को भी दर्शाती है। इसी बीच कंचन ने जिलाधिकारी सविन बंसल की जनसुनवाई में भी शिकायत दर्ज कराई थी। जिस पर उपजिलाधिकारी न्यायिक कुमकुम जोशी ने सुनवाई की और शिकायत को सही पाया। बताया जा रहा है कि जो जांच/सुनवाई कुमकुम जोशी ने की नैनीताल हाई कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी है। लेकिन, एक पीड़ित नागरिक को उसके अधिकार दिलाने के लिए जिलाधीश के रूप में जिलाधिकारी के पास कई अधिकार सुरक्षित हैं। क्योंकि कोर्ट ने उपजिलाधिकारी की रिपोर्ट पर रोक लगाई है। शिक्षिका को अकारण सेवा से निकाल देने का प्रकरण अभी अनिस्तारित है।
फिर देखने वाली बात यह भी होगी कि क्या पुरकल यूथ डेवलपमेंट सोसाइटी ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से पूरे केस से हाई कोर्ट को अवगत कराया या वहां महिला आयोग और अन्य स्तर पर उठाई गई बातों को छिपा दिया गया। यदि ऐसा है तो यह कोर्ट की सरासर अवमानना है और कोर्ट को गुमराह करने की भी साजिश हो सकती है। खैर, देर सबेर यह बात भी साफ हो जाएगी।
मौजूदा प्रकरण के देखते हुए इस बात की प्रबल जरूरत है कि सोसाइटी के शीर्ष प्रबंधन को भी मौजूदा सचिव की भूमिका की जांच करनी चाहिए। देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की मुहिम को कुछ पदाधिकारी किस तरह चोट पहुंचा रहे हैं। सोसाइटी प्रबंधन को सचिव पर पूर्व में सीबीआई की ओर से दर्ज किए गए आपराधिक मुकदमे और उनकी तैनाती के बाद के सभी कार्यों की जांच भी करनी चाहिए।
यह भी देखा जाना चाहिए कि गरीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर देश-विदेश से जो अनुदान प्राप्त किया जा रहा है, धरातल पर वर्तमान में उसकी कितनी पूर्ति की जा रही है। कहीं सरकारी एनओसी और स्वीकृति के नाम पर सिर्फ अनुदान/ग्रांट प्राप्त कर कुछ लोग अपने हित तो पूरे नहीं कर रहे? क्योंकि, नागरिक अधिकार किसी भी संस्था से बड़े होते हैं और कानून के राज में उन्हें इस तरह कुचला नहीं जा सकता।