मसूरी के जंगलों से 7,375 सीमा स्तंभ गायब और आईएफएस अफसरों की अकूत संपत्ति का क्या है कनेक्शन
हाईकोर्ट ने मांग जवाब, सीबीआई-ईडी जांच की मांग पर केंद्र और राज्य को नोटिस

Rajkumar Dhiman, Dehradun: मसूरी वन प्रभाग में 7,375 सीमा स्तंभों के रहस्यमय तरीके से लापता होने और वर्षों से तैनात रहे वन अधिकारियों की असामान्य व तेजी से बढ़ी संपत्तियों को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने इस गंभीर मामले में सीबीआई, केंद्र सरकार, उत्तराखंड सरकार, भारतीय सर्वेक्षण विभाग (SOI) और सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को नोटिस जारी करते हुए छह सप्ताह के भीतर शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट की यह सख्ती ऐसे समय सामने आई है, जब वर्ष 2023 में मामला उजागर होने के बावजूद वन विभाग पर लीपापोती और तथ्यों को दबाने के आरोप लग रहे हैं।
2023 में खुला था घोटाले का पिटारा, फिर भी दबा दी गई जांच
यह सनसनीखेज मामला वर्ष 2023 में उस समय सामने आया, जब तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (वर्किंग प्लान) संजीव चतुर्वेदी ने मसूरी वन प्रभाग के सभी सीमा स्तंभों का भौतिक सर्वेक्षण कराने के आदेश दिए थे। नए वर्किंग प्लान की तैयारी के दौरान तत्कालीन डीएफओ मसूरी की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि कुल 12,321 सीमा स्तंभों में से 7,375 स्तंभ पूरी तरह लापता पाए गए। इनमें से करीब 80 प्रतिशत स्तंभ सिर्फ दो रेंज — मसूरी और रायपुर में थे। विशेषज्ञों के अनुसार ये दोनों रेंज रियल एस्टेट के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं, जहां होटल, रिज़ॉर्ट और आवासीय परियोजनाओं की अपार संभावनाएं हैं।

रियल एस्टेट बेल्ट में जंगल की सीमाएं गायब!
मसूरी और रायपुर रेंज ऐसे इलाके हैं, जहां जंगल की जमीन पर लगातार अतिक्रमण और अवैध निर्माण के आरोप लगते रहे हैं। सीमा स्तंभों का लापता होना सीधे तौर पर वन भूमि की पहचान मिटाने और भूमि उपयोग बदलने की ओर इशारा करता है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि सीमा स्तंभों के गायब होने से वन भूमि पर कब्जे आसान हो गए, जिससे निजी लाभ और भू-माफिया गतिविधियों को बढ़ावा मिला।
आईएफएस अफसरों की संपत्ति पर उठे सवाल, सीबीआई-ईडी जांच की मांग
इस पूरे मामले में एक और गंभीर पहलू सामने आया है। जून और अगस्त 2025 में संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड के वन प्रमुख को पत्र लिखकर संबंधित अधिकारियों की अचल संपत्तियों की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ED) से जांच कराने की मांग की थी। पत्रों में कई अधिकारियों के नाम पर भारी संपत्ति संचय का उल्लेख किया गया है। अगस्त 2025 में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने भी उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर वन संरक्षण अधिनियम-1980 के उल्लंघन की जांच और कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
नई समिति भी विवादों में, आंकड़े दबाने का आरोप
मामले की गंभीरता के बावजूद तत्कालीन वन प्रमुख द्वारा वन संरक्षक (शिवालिक) राजीव धीमान के नेतृत्व में एक नई समिति गठित की गई। हालांकि याचिका में इस समिति पर आंकड़े कम करके दिखाने, मैदानी साक्ष्यों से छेड़छाड़ और हितों के टकराव जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका के अनुसार समिति में शामिल कुछ अधिकारी पहले भी मियावाकी पौधरोपण से जुड़े वित्तीय अनियमितताओं के मामलों में संदेह के घेरे में रह चुके हैं, जबकि कुछ अधिकारी पहले मसूरी वन प्रभाग में पदस्थ रह चुके हैं।
याचिका में क्या मांग की गई?
पर्यावरण कार्यकर्ता नरेश चौधरी द्वारा दायर जनहित याचिका में हाईकोर्ट से मांग की गई है कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग (SOI) से मसूरी वन प्रभाग की जियो-रेफरेंस्ड और वैज्ञानिक सर्वे कराई जाए। लापता सीमा स्तंभों को चिन्हित कर पुनः स्थापित किया जाए, प्रभावित वन क्षेत्रों के लिए
पुनर्स्थापन और पुनरुद्धार योजना लागू हो, राजस्व विभाग के नियंत्रण में पड़ी वन भूमि, निश्चित समय-सीमा में वन विभाग को सौंपी जाए।
11 फरवरी को अगली सुनवाई
हाईकोर्ट ने इस पूरे प्रकरण को अत्यंत गंभीर मानते हुए सभी पक्षों से जवाब तलब किया है। अब इस बहुचर्चित मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी को होगी।
क्यों है यह मामला बेहद अहम?
हजारों सीमा स्तंभों का गायब होना सीधे जंगल खत्म होने की साजिश की ओर इशारा करता है। अफसरों की बढ़ती संपत्ति और जांच में देरी ने भ्रष्टाचार के शक को और गहरा किया है। हाईकोर्ट की सख्ती से पहली बार केंद्र से लेकर राज्य तक जवाबदेही तय होती दिख रही है।



