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सवाल: किस अधिकारी ने किया दाखिल खारिज, किस अधिवक्ता ने दी राय

रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में जांच और कार्रवाई का एक सिरा अभी भी पकड़ से दूर, तत्कालीन अपर तहसीलदार और शासकीय अधिवक्ता की भूमिका की जांच भी जरूरी

Amit Bhatt, Dehradun: शायद रजिस्ट्री फर्जीवाड़े को रोका जा सकता था। यदि घपले की जड़ बनी जमीन पर अवैध हक दर्ज न किया जाता। क्योंकि, जो जमीन सीलिंग एक्ट के उल्लंघन के साथ ही राज्य सरकार में निहित हो गई थी, उस पर सरकार के पक्ष में कब्जा लेने की जगह, अधिकारियों ने लूट की छूट दे दी। अभी तक रजिस्ट्री फर्जीवाड़े के जो भी प्रकरण सामने आए हैं, वह मूल खातेदार शमशेर बहादुर/चंद्र बहादुर की चाय बागान/सीलिंग की अतिरिक्त भूमि से संबंधित हैं।

तकनीकी रूप से चंद्र बहादुर के वारिश भी इस पर कब्जे के हकदार नहीं थे, लिहाजा यह भूमि सालों तक खाली पड़ी रही। ऐसे में भूमाफिया ने इन पर निगाह गड़ाई तो अधिकारियों ने भी आंखें मूंद लीं। फिर असल खेल शुरू हुआ और जमीन पर कब्जे के लिए अधिकारियों, भूमाफिया, कर्मचारियों और कुछ अधिवक्ताओं ने एक गैंग के रूप में षड्यंत्र रचा। सीलिंग से संबंधित लाडपुर रिंग रोड के चाय बागान और सीलिंग की अतिरिक्त भूमि (रैनापुर ग्रांट आदि) के मूल अभिलेख सब रजिस्ट्रार के रिकार्ड रूम व राजस्व अभिलेखागार से गायब करवा दिए गए।

मिलीभगत कर इनकी जगह फर्जी अभिलेख रखवाकर स्वामित्व बदल डाले गए। इसके साथ ही चंद्र बहादुर ने अपनी वसीयत में जिन भूमि को चाय बागान घोषित किया, उसे असम मूल की महिला इंद्रावती को वर्ष 1988 में बेचना दिखा दिया गया। इसके साथ ही इंद्रावती का बेटा संतोष अग्रवाल प्रकट हुआ और उसने खुद को अपनी दिवंगत माता इंद्रावती का एकमात्र वारिश घोषित कर दिया। इसके लिए संतोष की बहनों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर पावर आफ अटॉर्नी भी बनवा दी गई।

रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में आरोपित अधिवक्ता कमल विरमानी की गिरफ्तारी के बाद जानकारी देते एसएसपी दलीप सिंह कुंवर।

जिसके आधार पर पहले जमीन इंद्रावती के नाम और फिर संतोष अग्रवाल के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज करा दी गई। बस फिर क्या था, संतोष अग्रवाल व उससे जुड़े अन्य नाम के अनुरूप फर्जी अभिलेख पहले से रिकार्ड रूम में रखवा दिए गए थे और जमीनों को फर्जी ढंग से बेचने का खेल शुरू कर दिया गया। इस फर्जीवाड़े में संतोष अग्रवाल समेत नामी अधिवक्ता कमल विरमानी और अन्य सात की गिरफ्तारी की जा चुकी है। कई अन्य अभी पुलिस के रडार पर हैं, लेकिन एक सिरे का पकड़ में आना अभी बाकी है।

क्योंकि, वर्ष 2020 के कोरोनाकाल में चाय बागान की भूमि संतोष अग्रवाल के नाम दर्ज करने वाले अपर तहसीलदार व अन्य कार्मिकों की भूमिका की जांच अभी पुख्ता तरीके से नहीं की जा सकी है। इसके साथ ही दाखिल खारिज/विरासत दर्ज करने के लिए जिस शासकीय अधिवक्ता ने अपनी राय दी, वह भी अभी जांच के दायरे से बाहर दिख रहे हैं। यदि चाय बागान की भूमि पर संतोष अग्रवाल का नाम दर्ज ही नहीं किया जाता, तो शायद अभिलेख बदलने के बाद भी भूमाफिया गिरोह की मंशा अधूरी रह जाती।

सबसे बड़ा घोटाला है, अफसरों पर भी कसे शिकंजा: अध्यक्ष बार एसोसिएशन

देहरादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने रजिस्ट्री फर्जीवाड़े को उत्तराखंड का सबसे बड़ा घोटाला बताया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि प्रकरण में सिर्फ अधिवक्ताओं और कुछ कर्मचारियों पर ही कार्रवाई किया जाना गलत है। उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़े में शामिल अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाए।
सोमवार को जारी किए गए एक वीडियो बयान में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़ा तहसील के अधिकारियों के हस्ताक्षर से भी हुआ है। लिहाजा, जांच में तहसील व प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की जांच भी की जाए। क्योंकि इसके बिना यह कार्रवाई सिर्फ अधिवक्ता और कर्मचारियों जैसी कमजोर कड़ी का उत्पीड़न मानी जाएगी।

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