400 करोड़ का काबुल हाउस कब्जाने की कहानी, 40 साल भूमाफिया की मनमानी
वर्ष 1879 में काबुल से देहरदून आकर बसा था काबुल का शाही परिवार, इसी परिवार के याकूब खान से जुड़ी है संपत्ति, वर्ष 1984 में उत्तर प्रदेश सरकार में शुरू की गई थी अवैध कब्जेदारों को हटाने की कवायद, अब डीएम सोनिका ने किया कहानी का समापन, 17 अवैध कब्जेदारों को 15 दिन का अल्टीमेटम
Amit Bhatt, Dehradun: देहरादून की प्राइम लोकेशन ईसी रोड स्थित काबुल हाउस की करीब 400 करोड़ रुपये की संपत्ति को कब्जाने की कहानी न सिर्फ दिलचस्प है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि प्रदेश की राजधानी और पढ़े-लिखे लोगों के शहर में भूमाफिया गिरोह की जड़ें कितनी गहरी हैं। करीब 40 साल तक चले इस प्रकरण में भले ही अब जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट ने सभी कब्जेदारों को अवैध बताते हुए उनके दावे खारिज कर दिए हों, लेकिन सवाल अभी बाकी हैं। सवाल यह है कि भूमाफिया कैसे इतने बड़े हो गए कि 40 साल तक सिस्टम को अपनी अंगुली पर नाचते रहे। भूमाफिया ने न सिर्फ हाई कोर्ट नैनीताल के आदेश को सरकारी कार्रवाई से दूर रखा, बल्कि बेशकीमती जमीन को खुर्दबुर्द करने के लिए सहारनपुर विवासी मो. शाहिद खालिद को फर्जी वारिस बनाकर खड़ा कर दिया। सरकारी अभिलेखों में फर्जी वारिस के नाम विरासत चढ़ा दी गई और संपत्ति पर 30 रजिस्ट्री भी कर डाली। इतना जरूर है कि जिलाधिकारी सोनिका के आदेश के बाद इनकी उलटी गिनती शुरू हो गई है और सभी कब्जेदारों को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। इसके बाद प्रशासन अपने ढंग से काबुल हाउस खाली करवाएगा।
अगस्त 1984 में राजस्व आयुक्त ने दिए थे संपत्ति खाली कराने के आदेश
15,15-बी ईसी रोड स्थित काबुल हाउस की संपत्ति का प्रकरण पहली बार पूर्ववर्ती प्रदेश उत्तर प्रदेश के समय प्रकाश में आया था। 14 अगस्त 1984 को तत्कालीन राजस्व आयुक्त राणा प्रताप सिंह ने जिलाधिकारी देहरादून को आदेश दिया था कि काबुल हाउस की संपत्ति को अवैध कब्जेदारों से मुक्त कराया जाए। तब तहसीलदार ने कब्जेदारों को नोटिस जारी कर संपत्ति खाली करने को कहा था। हालांकि, कब्जेदारों ने राजस्व आयुक्त के आदेश को छिपाकर सिर्फ तहसीलदार के नोटिस के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। जिस पर उन्हें कब्जे में बने रहने का समय मिल दिया। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद प्रकरण नैनीताल हाई कोर्ट को स्थानांतरित किया गया। वर्ष 2007 में हाई कोर्ट को यह केस जिलाधिकारी देहरादून को रिमांड कर दिया। साथ ही जिलाधिकारी के केस निस्तारण तक बेदखली पर स्थगनादेश भी जारी कर दिया।
जिला प्रशासन नहीं कर पाया निस्तारण, 2021 में हाई कोर्ट ने फिर कसे पेच
वर्ष 2007 में प्रकरण जिलाधिकारी की रिमांड में आने के बाद भी किसी अधिकारी ने इसमें हाथ नहीं डाला। इस बीच हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया कि काबुल हाउस की संपत्ति कस्टोडियन के रूप में जिला प्रशासन के अधीन है और इसके बाद भी प्रकरण का निस्तारण नहीं किया जा रहा। साथ ही बताया गया कि संपत्ति को भूमाफिया गिरोहबंद होकर खुर्दबुर्द कर रहे हैं। यहां तक कि सरकार में निहित हो चुकी काबुल के राजशाही परिवार से जुड़ी संपत्ति के फर्जी वारिश भी सामने आ गए हैं। उन्होंने संपत्ति को कई व्यक्तियों को बेच भी दिया है। हाई कोर्ट ने वर्ष 2021 में जब जिला प्रशासन को सख्ती के साथ प्रकरण के निस्तारण के निर्देश दिए तो अधिकारी सक्रिय हुए।
जिस अब्दुल का कोई पुत्र नहीं था, उसका पुत्र बना शाहिद
काबुल हाउस की संपत्ति कब्जाने वाले मुख्य किरदार शाहिद खालिद और उसके सहयोगियों ने काबुल हाउस की भूमि कब्जाने के लिए सहारनपुर निवासी अब्दुल रज्जाक के राजस्व रिकार्ड का सहारा लिया। शाहिद ने खुद को अब्दुल रज्जाक का पुत्र बताया। जबकि अब्दुल की सिर्फ पुत्री थी। जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में इसके विभिन्न प्रमाण रखे गए। जिसमें खेवट संख्या 47 से पता चला की अब्दुल के नाम पर 05 बीघा 14 बिस्वा भूमि थी। इसमें से अब्दुल ने 03 बीघा भूमि अपने पास रखते हुए शेष अपने जीवनकाल वर्ष 1937-38 में बंदोबस्त प्रक्रिया से पूर्व अपनी पुत्री गुजद्दनिशा व मुस्मात नसीबन के नाम कर दी थी। हालांकि, आजादी के दौरान पकिस्तान के अस्तित्व में आने के काफी बाद अब्दुल की संपत्ति पर कोई काबिज नहीं पाया गया, जिसके चलते इसे निष्क्रांत/कस्टोडियन घोषित करते हुए पकिस्तान से आए विस्थापित व्यक्तियों को आवंटित कर दी गई। आज इन संपत्ति पर आबादी है और भिन्न परिवार रह रहे हैं। शाहिद ने खेवट संख्या 47 के दस्तावेज प्राप्त किए और गिरोह के अन्य सदस्यों की मदद से खुद को अब्दुल रज्जाक का वारिस बना दिया। इसी आधार पर राजस्व अभिलेखों में विरासत दर्ज की गई और खेवट-47, जिसकी जगह अब शेष नहीं है, उसकी जगह काबुल हाउस की संपत्ति खेवट-62 को बताकर अधिकार जमा लिया।
वारिस बनने के बाद शाहिद ने आरिफ खान को दी अटार्नी
भूमाफिया की जुर्रत तो देखिए काबुल हाउस की करीब 400 करोड़ रुपये की संपत्ति को हड़पने के लिए क्या कुछ नहीं किया गया। वर्ष 2007 में नैनीताल हाई कोर्ट के केस को जिलाधिकारी को रिमांड करने के बाद भी इसका निस्तारण नहीं करने दिया गया। अधिकारियों से मिलीभगत से न सिर्फ इस संपत्ति को सहारनपुर निवासी अब्दुल रज्जाक के नाम दर्शाकर मो. साहिल खालिद को फर्जी वारिस बना दिया गया। इसके बाद तीसरे व्यक्ति मो. आरिफ खान के नाम पावर आफ अटार्नी बनाकर संपत्ति पर रजिस्ट्री भी करानी भी शुरू कर दी गई।
काबुल हाउस के याकूब की 1921 में हुई मृत्यु, वारिशों ने छोड़ दिया था भारत
जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह तथ्य रखे गए कि काबुल हाउस के मालिक याकूब खान की मृत्यु वर्ष 1921 में हो गई थी। इस क्रम में उनके वंशज सरदार मो. आजम खान, सरदार अली खान, सुल्तान अहमद खान के नाम नगर पालिका के असेसमेंट वर्ष 1934-37, वर्ष 1943-1948 में अंकित हैं। यह भी उल्लेख किया गया कि अमीर आफ काबुल याकूब खान के वंशजों ने वर्ष 1947 में भारत छोड़ दिया था। जिसके बाद भूमि को रिक्त घोषित कर दिया गया। वर्ष 1958 में उत्तर प्रदेश सरकार में जांच के बाद लावारिश संपत्तियों को कस्टोडियन एक्ट-1950 प्रविधानो के मुताबिक निष्क्रांत संपत्ति घोषित कर नगर निकायों के रिकार्ड में कस्टोडियन दर्ज किया गया। यहीं, से सवाल उठा कि जब भूमि कस्टोडियन में दर्ज है तो मो. शाहिद इसका अधिकारी कैसे हो सकता है।
बंटवारे के बाद नहीं थी संवैधानिक भूमि बंदोबस्त प्रक्रिया, भूमाफिया उठा गए लाभ
जिलाधिकारी के आदेश के मुताबिक वर्ष 1937-38 में बंदोबस्त के समय शहरी क्षेत्रों में एक ही खसरा नंबर राजस्व रिकार्ड में अंकित किया जाता था। इससे यह हुआ कि तत्कालिक शहरी क्षेत्रों में अलग-लग खेवट निर्धारित होने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाता था कि किस खेवट का खसरा नंबर क्या है। शहरी क्षेत्र के देहरादून में बंदोबस्त की संवैधानिक प्रक्रिया न होने के चलते वर्ष 1947 में देश के बंटवारे के बाद राजस्व रिकार्ड में कस्टोडियन संपत्ति दर्ज नहीं हो पाई। ऐसी संपत्ति का अंकन मुस्लिम समाज की भूमि के रूप में किया गया। अभिलेखीय परीक्षण में पाया गया कि यही भूमि कस्टोडियन से संबंधित है। इस आधार पर भी काबुल हाउस की संपत्ति से मो. साहिल खालिद की विरासत खारिज कर दी गई।
हाई कोर्ट का आर्डर छिपाया, सिविल कोर्ट को किया गुमराह, लिया स्टे
काबुल हाउस की संपत्ति को हड़पने के लिए भूमाफिया गिरोह ने हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के स्थगनादेश का संज्ञान होने के बाद भी फर्जीवाड़ा कर डाला। उसने सिविल कोर्ट पंचम को हाई कोर्ट के आदेश की जानकारी न देकर अपने पक्ष में स्टे प्राप्त कर लिया। जिला शासकीय अधिवक्ता ने सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि सिविल कोर्ट पंचम के डिक्री आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट में सरकार ने अपील दायर की गई। जिसे हाई कोर्ट ने स्वीकृति दी है और यह प्रकरण लंबित है। हालांकि, सरकार के विरुद्ध डिक्री हाई कोर्ट के वर्ष 2007 के आदेश को छिपाते हुए प्राप्त की गई है, लिहाजा सिविल कोर्ट का आदेश निष्प्रभावी माना जाएगा। साथ ही मो. खालिद की विरासत खारिज होने की दशा में उनके समस्त विक्रय पत्र भी शून्य माने जाएंगे।
मो. शाहिद और उसके सहयोगियों पर दर्ज होंगे आपराधिक मुकदमे, प्रति एसएसपी को भेजी
जिलाधिकारी सोनिका की कोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि काबुल हाउस की संपत्ति पर भूमाफिया ने 30 रजिस्ट्री की हैं। इसी के आधार पर यहां 17 लोग अवैध रूप से काबिज हो गए। जिलाधिकारी ने आदेश दिए कि सभी विक्रय पत्र कब्जे में लिए जाएं। इस बात की जांच की जाए कि मो. शाहिद का नाम सरकारी रिकार्ड में किन कार्मिकों आदि की मिलीभगत से दर्ज कराया गया। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए मो. खालिद व उनके सहयोगियों के विरुद्ध आपराधिक वाद दर्ज कराया जाए। इस बाबत आदेश की प्रति अलग से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को भेजी जाए।
भूमाफिया गिरोह दूसरी कस्टोडियन संपत्ति पर भी काबिज
जिलाधिकारी की सुनवाई में पाया गया कि शाहिद की मिलीभगत के आरोपी भगवती प्रसाद उनियाल, धनबहादुर, ज्ञानचंद व अन्य व्यक्ति अन्य कस्टोडियन संपत्ति 56-हरिद्वार रोड पर भी काबिज हैं। यहां इन्होने खुद को किराएदार बताया है, जबकि सभी के अपने-अपने मकान हैं। काबुल हाउस में भी यह लोग इसी तरह काबिज हुए और संपत्ति को खुर्दबुर्द करना शुरू कर दिया।
काबुल हाउस के अवैध कब्जेदार
भगवती प्रसाद उनियाल, धन बहादुर राणा, विनोद कुमार पंत, मनीष भाटिया, बीना कुमारी, सौरभ गौड़, आशुतोष गौड़, नितिन, जब्बल सिंह, बच्ची देवी, मीनाक्षी, राजमोहन, राजकुमार, कमल, अजय, संजय, अमृत कौर, शांति जोशी।