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अपने ही होटल की रेलिंग पर फंदे से झूला कारोबारी, क्यों छूट रही जिंदगी की डोर?

देश में आत्महत्या का सालाना आंकड़ा 01 लाख पार, पारिवारिक समस्या सबसे बड़ी वजह, मिलकर मजबूत बनानी होगी जीवन की डोर

Amit Bhatt, Dehradun: दून में व्यथित करने वाली एक घटना में होटल कारोबारी अपने ही होटल की रेलिंग पर फंदे पर झूल गया। आत्महत्या की इस ह्रदयविदारक घटना से कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि आखिर क्यों जिंदगी की डोर इस तरह टूट रही है। क्यों कोई व्यक्ति इस कदर हताश हो जाता है कि उसे अपने जीवन को समाप्त करना ही अंतिम विकल्प नजर आता है। क्यों नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आत्महत्या के आंकड़ों में साल-दर-साल इजाफा हो रहा है। हमारे सिस्टम को सोचना पड़ेगा कि सामाजिक तानेबाने को गहरी चोट पहुंचाने वाली इस तरह की घटनाओं को कैसे कम किया जा सकता है।

प्रदेशवार आत्महत्या के आंकड़े, उत्तराखंड में राहत, लेकिन चुनौती बढ़ रही।

खैर, फिलहाल इस घटना पर वापस लौटते हैं और आपको बताते हैं कि पुलिस कंट्रोल रूम के माध्यम से रायपुर पुलिस को सूचना मिली थी कि फोर सीजन होटल सहस्रधार रोड पर किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है। व्यक्ति का शव होटल की छत की रेलिंग पर रस्से के फंदे से बाहर की तरफ लटका हुआ है। मौके पर पहुंची पुलिस की जांच-पड़ताल में व्यक्ति की पहचान रवि रावत (उम्र 24) निवासी नवादा देहरादून के रूप में की गई। पुलिस के मुताबिक मृतक रवि रावत अन्य पार्टनर अनुराग रावत व राहुल के साथ मिलकर होटल को लीज पर संचालित कर रहा था। पुलिस के मुताबिक प्रथमदृष्टया रवि रावत ने आर्थिक तंगी से घिरे होने के कारण यह कदम उठाया है। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर कोरोनेशन अस्पताल में पोस्टमार्टम की कार्रवाई शुरू कर दी है।

आत्महत्या की दर 11.3 से बढ़कर 12 पहुंची
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि प्रति लाख जनसंख्या पर आत्महत्या की जो दर वर्ष 2020 में 11.3 थी (कुल 1,53,052), वह 2021 में बढ़कर 12 (कुल 1,64,033) पहुंच गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में आत्महत्या की दर 12 प्रतिशत पाई गई, जबकि साधन संपन्न शहरों में यह दर 16.1 प्रतिशत पाई गई। पारिवारिक समस्याओं के कारण 33.2 व्यक्तियों ने अपनी जान दी (विवाह संबंधी समस्याओं को छोड़कर) और 4.8 की आत्महत्या का कारण विवाह संबंधी समस्या, जबकि 18.6 का कारण बीमारी बना।

पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक, युवाओं का टूट रहा अधिक सब्र
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक पुरुष-महिला आत्महत्या के अनुपात में पुरुषों की संख्या अधिक पाई गई है। यह अनुपात 75.5: 27.5 पाया गया है। आत्महत्या करने वाले 68.1 प्रतिशत पुरुष शादीशुदा थे, जबकि शादीशुदा महिलाओं का आंकड़ा 63.7 प्रतिशत रहा। वहीं, युवाओं का आयुवार आंकड़ों को देखें तो युवावस्था की स्थिति में सब्र सबसे अधिक टूट रहा है।

वर्ष 1967 में 38 हजार था आत्महत्या का आंकड़ा, 2021 में डेढ़ लाख पार
एनसीआरबी के आत्महत्या के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 1967 में यह संख्या 38 हजार 800 के करीब थी, जबकि वर्ष 2021 में यह बढ़कर 1.64 लाख को पार कर गई है। पिछले चार सालों में तो आत्महत्या की दर निरंतर बढ़ रही है।

देश में सर्वाधिक आत्महत्या वाले प्रदेश।

उत्तराखंड में राहत, लेकिन हालात काबू में रखना चुनौती
आत्महत्या की राष्ट्रीय दर और अन्य प्रदेशों के मुकाबले उत्तराखंड के हालात राहत की स्थिति में हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में तनावभरी जीवनशैली निरंतर चुनौती बन रही है। क्योंकि, वर्तमान में वैश्विक परिदृश्य ही इस तरह बदल रहा है कि हिस्से का सुकून गायब होता जा रहा है। इसके लिए व्यक्ति से लेकर परिवार, समाज व सरकार के स्तर पर भी नागरिकों के जीवन में बढ़ रहे तनाव को कम करने के लिए निरंतर प्रयास की जरूरत है। क्योंकि, तमाम लोग मशीनी दुनिया में यह भूलते जा रहे हैं कि जिस अनमोल समय शरीर को दरकिनार कर अंतहीन ख्वाहिशों के पीछे भाग रहे हैं, वह दोबारा नहीं मिलने वाला नहीं।

आत्महत्या के प्रमुख कारणों की स्थिति।

परिवार ही ताकत तो फिर आत्महत्या क्यों?
कहते हैं कि व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत उसका परिवार होता है। परिवार की खुशी के लिए ही कोई व्यक्ति तमाम मुश्किलें सहन करता है और दुनिया-जहान से भी लड़ने को तैयार हो जाता है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या का 33.2 प्रतिशत कारण पारिवारिक समस्याएं ही हैं। यह स्थिति न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि वसुधैव कुटुंबकम की भावना रखें वाले भारत जैसे देश की मूल प्रवृत्ति के भी विपरीत है। इन आंकड़ों पर गौर करते हुए हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह मुश्किल से मुश्किल दौर में भी अपने परिवार के सदस्य के साथ खड़ा रहे। उसका हौसला बने।

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