Breaking NewsDehradunUttarakhand

पत्रकार बनना चाहती थीं आइएएस राधा रतूड़ी, अब बनीं उत्तराखंड की पहली महिला मुख्य सचिव

वर्ष 1988 बैच की आइएएस अधिकारी और नवनियुक्त मुख्य सचिव राधा रतूड़ी का भारतीय सूचना सेवा और भारतीय पुलिस सेवा में भी हो चुका था चयन

Amit Bhatt, Dehradun: सहज और सरल आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी ने उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी में नया इतिहास कायम कर लिया है। उन्हें उत्तराखंड की पहली महिला मुख्य सचिव बनाया गया है। उनकी ताजपोशी पर सरकार ने मुहर लगा दी है। वर्तमान मुख्य सचिव डॉ एसएस संधु का एक्सटेंशन 31 जनवरी 2024 को समाप्त हो गया है। डॉ संधु के रिटायरमेंट से पहले ही सभी की निगाहें वर्ष 1988 बैच की आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी और सरकार के निर्णय पर टिकी थीं। सरकार ने भी उम्मीद के ही अनुरूप राधा रतूड़ी को मुख्य सचिव बनाए जाने का निर्णय ले लिया। इसी क्रम में औपचारिक आदेश भी जारी किया गया और राधा रतूड़ी ने सचिवालय में नया पदभार ग्रहण कर लिया।हमेशा चर्चाओं से दूर और अपने काम में व्यस्त रहने वाली नवनियुक्त मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के भारतीय प्रशासनिक सेवा के सफर के बारे में भी जानना जरूरी है। उनके प्रशासनिक जीवन पर गहराई से प्रकाश डालने से पहले बता दें कि राधा रतूड़ी पत्रकार बनना चाहती थीं। शुरुआत में उन्होंने पत्रकारिता जगत में बतौर एक रिपोर्टर के रूप में अल्प समय के लिए काम भी किया। इसके बाद जब उन्होंने इंडियन ब्यूरोक्रेसी में जाने का मन बनाया तो भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में लंबी पारी शुरू करने से पहले भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में भी पदार्पण किया।

नवनियुक्त मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और रिटायर हो चुके मुख्य सचिव डॉ एसएस संधु, पदार्पण और जीवन की नई पारी का आदान-प्रदान।

कॉलेज की पत्रिका की बनीं संपादक, फिर रिपोर्टिंग शुरू की
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी को स्कूलिंग के दौरान से ही लिखने-पढ़ने का शौक है। जब वह सोफिया कॉलेज मुंबई में इतिहास की छात्रा थीं, तब वह कालेज की पत्रिका के एडिटोरियल बोर्ड की सदस्य थीं। इसके बाद उनकी क्षमता को देखते हुए पत्रिका का संपादक भी बनाया गया। स्नातक के बाद उन्होंने पत्रकार बनने का निर्णय लिया और मास कम्युनिकेशन की पढाई की। वर्ष 1985 में मास कम्युनिकेशन करने के बाद उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में ट्रेनिंग ली और फिर रिपोर्टर के रूप में इण्डिया टुडे मैगजीन में काम शुरू कर दिया।

पिता ने दी सिविल सेवा की सलाह, 22 साल में दी यूपीएससी की परीक्षा
नवनियुक्त मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के पिता सिविल सेवक थे, लिहाजा उन्होंने सिविल सेवा में जाने की सलाह दी। महज 22 साल की उम्र में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और वह वर्ष 1986 बैच की भारतीय सूचना सेवा की अधिकारी बनीं। उनकी ज्वाइनिंग दिल्ली में हुई, लेकिन मुंबई की अपेक्षा उन्हें यहां का माहौल रास नहीं आया। उन्होंने फिर से सिविल सेवा की परीक्षा दी और अबकी बार उनका चयन आईपीएस के वर्ष 1987 के बैच के लिए हो गया। उन्होंने हैदराबाद में पुलिस ट्रेनिंग भी ज्वाइन की। यहीं उनकी मुलाकात वर्ष 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी अनिल रतूड़ी से भी हुई और दोनों ने विवाह कर लिया।

तीसरी परीक्षा में आईएएस में चयन, यह रहा आईपीएस छोड़ने का कारण
राधा रतूड़ी ने तीसरी बार सिविल सेवा की परीक्षा दी और इस बार उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के वर्ष 1988 बैच के लिए हो गया। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी का कहना है कि एक महिला के लिए पुलिस की सेवा अधिक टफ मानी जाती है। फिर जब पति-पत्नी दोनों सामान सिविल सेवा में हों, पारिवारिक संतुलन साधना चुनौती भी होता है। इसलिए तीसरी बार सिविल की परीक्षा दी, जिसमें उनका चयन आईएएस के लिए हो भी गया। दूसरा कारण यह भी था कि पुलिस सेवा में ट्रांसफर अधिक होते हैं। कई बार पति-पत्नी को एक ही जगह पोस्टिंग नहीं मिल पाती है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसा हुआ कि दोनों की पोस्टिंग तीन बार अलग-अलग जिले में हुई। राधा रतूड़ी बताती हैं कि उनके पति अनिल रतूड़ी का कैडर उत्तर प्रदेश था, जबकि वह मध्य प्रदेश कैडर की टॉपर थीं और उन्हें होम स्टेट मध्य प्रदेश का कैडर मिला। शुरुआत में एक साल दोनों ने अपने-अपने कैडर के प्रदेश में ही सेवा दी।

कैडर बदलने के बाद उत्तर प्रदेश में काम, फिर उत्तराखंड बनी कार्य स्थली
करीब एक साल के अंतराल के बाद राधा रतूड़ी का कैडर मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश में तब्दील हो पाया। उन्हें उत्तर प्रदेश में बरेली में पोस्टिंग मिली। इसके बाद जब 09 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर पृथक राज्य उत्तरखंड बना तो दोनों ने अपना कैडर बदलने की अर्जी लगा दी। राधा रतूड़ी के पति अनिल रतूड़ी उत्तरखंड मूल के हैं, लिहाजा उनका कैडर आसानी से उत्तराखंड में परिवर्तित हो गया। राधा रतूड़ी के पति अनिल रतूड़ी उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक पद से वर्ष 2020 में रिटायर हो चुके हैं, जबकि राधा रतूड़ी की प्रशासनिक सेवा का सफर जारी है।

फतेहपुर और टिहरी जिले की सेवा हमेशा यादगार
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी यूं तो जिलों से लेकर राज्य स्तर पर तमाम महत्वपूर्ण पदों अपनी सफल सेवा दे चुकी हैं, लेकिन वह सबसे यादगार सेवा व बेस्ट पोस्टिंग को फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) व टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) जिले के रूप में मानती हैं। इन जिलों में राधा रतूड़ी ने जिलाधिकारी के रूप में सेवा दी। राधा रतूड़ी बताती हैं कि फतेहपुर में दिव्यांगजनों के लिए उन्होंने माइक्रो सर्वे करवाया। 5000 से अधिक दिव्यांगजनों का सर्वे कराने के साथ ही उन्हें जरूरत के मुताबिक कृत्रिम अंग व अन्य उपकरण मुहैया कराए गए। इस उपलब्धि के लिए तत्कालीन सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया। क्योंकि, तब फतेहपुर के सभी दिव्यांग पहली बार लाभान्वित किए गए थे। यहां से जब उनका स्थानांतरण लखनऊ के लिए हुआ तो वहां की जनता ने उन्हें जाने ही नहीं दिया। कई लोग उनके वाहन के आगे तक लेट गए थे। राधा रतूड़ी तब वाहन से उतरीं और हाथ जोड़कर परिवार का हवाला दिया और गमगीन माहौल के बीच किसी तरह विदा ली।

टिहरी बांध प्रभावितों के हित में करवाए पुनर्वास नीति में संशोधन
राधा रतूड़ी ने जब उत्तराखंड में सेवा शुरू की तो उन्हें पहली नियुक्ति उत्तरकाशी के जिलाधिकरी के रूप में मिली। उस समय टिहरी बांध को लेकर प्रभावित नागरिकों का विरोध चल रहा था। वर्ष 1979 में शुरू किए गए टिहरी बांध का निर्माण तमाम कारणों से लेट होता जा रहा था। उस समय भी प्रभावितों के विरोध के चलते टनल-03 और टनल-04 बंद नहीं हो पा रही थी। इन्हें बंद किए जाने के बाद ही बांध निर्माण का आगे का काम संभव था। जनता पुनर्वास नीति से संतुष्ट नहीं थी और तब उन्होंने प्रभावितों से निरंतर बात कर हल निकाला। पुनर्वास नीति में कुछ संशोधन हुआ, जिसका लाभ प्रभावित परिवारों को मिला। इसी के बाद बांध निर्माण ने भी गति पकड़ी और परियोजना को पूरा किया जा सका।

बेटी अपर्णा के साथ राधा रतूड़ी और अनिल रतूड़ी।

मुख्य निर्वाचन अधिकारी की 10 साल की जिम्मेदारी रही चुनौतीपूर्ण
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी बताती हैं कि सिविल सेवा के दौरान उत्तराखंड में मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) पद की जिम्मेदारी बेहद चुनौतीपूर्ण रही। उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी उनके पास 10 साल रही। इस दौरान कई चुनाव कराए गए। बतौर सीईओ के रूप में निष्पक्ष, निर्विवाद और शांतिपूर्ण मतदान का प्रेशर निरंतर बना रहता है। एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में सिर्फ यही जिम्मेदारी नहीं होती है, बल्कि राज्य के अन्य विभागों का दायित्व भी देखना होता है। ऐसे में राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी के बीच सामंजस्य बनाना आसान नहीं होता।

गढ़वाली और बंगाली संगीत है दिल के करीब
राधा रतूड़ी बताती हैं की उन्हें तनाव से मुक्त होने के लिए संगीत सुनना और गीत गाना पसंद है। साथ ही जॉगिंग करना भी उन्हें खासा पसंद है। वरिष्ठ अधिकारी बताती हैं कि उन्हें गढ़वाली और बंगाली और गढ़वाली संगीत अधिक रास आता है। उनका बचपन कोलकाता में बीता, इसलिए बंगाली संगीत दिल के करीब है। उनके पति गढ़वाली हैं तो यहां का संगीत भी उन्हें भाता है। वह कहती हैं कि बंगाली और गढ़वाली भाषा में बहुत समानता भी है। इसके अलावा उन्हें लिखने का भी बहुत शौक है। राधा रतूड़ी के यह सभी गुण और शौक उनके पति अनिल रतूड़ी के साथ भी मेल खाते हैं। यही कारण है कि दोनों के बीच का सामंजस्य बहुत बेहतर है।

उत्तराखंड में इन पदों पर भी शीर्ष पर रहीं महिला अफसर
वर्ष 1977 बैच की आईपीएस अधिकारी कंचन चौधरी भट्टाचार्य वर्ष 2004 में न सिर्फ उत्तराखंड की पहली पुलिस महानिदेशक बनीं, बल्कि वह देश की भी पहली महिला डीजीपी बनीं। इसके बाद वर्ष 2015 में वर्ष 1980 बैच की आईएफएस अधिकारी बीना शेखरी को उत्तराखंड की पहली महिला पीसीएफ बनने का अवसर मिला। इसके अलावा वर्ष 1985 बैच की आईएफएस अधिकारी सविता शर्मा वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) देहरादून में वर्ष 2016 में पहली महिला निदेशक बनीं। बाद में सविता शर्मा वर्ष 2020 में हिमाचल प्रदेश में पहली महिला हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स (हॉफ) भी बनीं।

 

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button