एमडीडीए और रेरा से ऊपर ये कौन समझ रहा खुद को
करोड़ों रुपये के विला वाली परियोजना में ग्रीन स्पेस पर कब्जा, सीवर और गंदा पानी उड़ेला जा रहा नाले में, एनजीटी ने ऐसे ही नहीं कसे अफसरों के पेच
Amit Bhatt, Dehradun: क्या कोई बिल्डर अपने मुनाफे के लिए बेझिझक होकर नियम कानून ताक पर रख सकता है। उसे न चिंता है उन भोले-भाले लोगों के अधिकारों की, जिन्होंने करोड़ों रुपये देकर विला/फ्लैट खरीदे हैं और न ही एमडीडीए और रेरा जैसी नियामक एजेंसियों का ही डर है। तभी तो रेरा और एमडीडीए की रोक के बाद भी ग्रीन स्पेस पर निर्माण किया जा रहा है। इसके साथ ही सीवर के निस्तारण के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की जगह उसे नाले में उड़ेला जा रहा है। जबकि सीवेज के निस्तारण में चूक के चलते एनजीटी हाल में उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को फटकार लगा चुकी है। साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों पर वाद दायर करने के आदेश भी दिए गए हैं।
बात हो रही है पछवादून स्थित जेमिनी पैकटेक प्रा.लि. की आवासीय परियोजना सेरेन ग्रीन्स की। बंसीवाला स्थित इस आवासीय परियोजना के निवासियों का आरोप है कि बिल्डर ने ग्रीन स्पेस में निर्माण शुरू कर दिया है और रेरा के आदेश के बाद भी इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में वाद गतिमान होने का भी बिल्डर पर असर नजर नहीं आ रहा। आवासीय परियोजना सेरेन ग्रीन्स के 17 निवासियों ने बिल्डर जेमिनी पैकटेक प्रा.लि. के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई है।
रेरा में दर्ज कराई गई शिकायत में विला/अपार्टमेंट खरीदारों ने आरोप लगाया है कि बिल्डर ने ब्रोशर में जो ग्रीन एरिया दर्शाया था, उस भाग पर एक-बीएचके के 84 फ्लैट बनाए जा रहे हैं। प्रकरण में रेरा सदस्य नरेश सी मठपाल ने परियोजना के ग्रीन स्पेस पर अग्रिम आदेश तक रोक लगाई है। हालांकि, इस आदेश के बाद भी निर्माण बदस्तूर जारी है। जेमिनी पैकटेक ने ब्रोशर में विला व फ्लैट की बुकिंग के लिए जो ग्रीन स्पेस दिखाया है, उसे नक्शा स्वीकृत कराते समय हटा दिया गया। नक्शे में ग्रीन स्पेस को परियोजना के पिछले भाग में 1882 वर्गमीटर आड़े-तिरछे भाग पर दिखाया गया है। इसके कुछ भाग पर पार्किंग व अन्य तरह के निर्माण किए गए हैं। इसको लेकर एमडीडीए ने बिल्डर के विरुद्ध वाद भी दायर किया है। हालांकि, इसका भी असर पड़ता नहीं दिख रहा।
आवासीय परियोजना का सीवर नाले में उड़ेला जा रहा
सेरेन ग्रीन्स में रह रहे परिवारों का आरोप है कि परियोजना में सीवर और गंदे पानी के निस्तारण का भी उचित इंतजाम नहीं है। विला/फ्लैट से निकलने वाला सीवर पास बनाए गए गड्ढे में डाला जाता है। गड्ढे से एक पाइप के माध्यम से इसे समय-समय पर पास के नाले में उड़ेला जाता है। नाले की ऊपरी पहाड़ी पर एक मंदिर भी है। जिस कारण वहां के ग्रामीण इस स्थिति पर पुलिस के समक्ष भी कई बार शिकायत कर चुके हैं। गंभीर यह कि सीवर के इस तरह के निस्तारण को लेकर उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी भी खामोश क्यों हैं।
इन व्यक्तियों ने दर्ज कराई है शिकायत
अशोक कुमार शर्मा, संगीता थपलियाल, नरेंद्र सिंह नेगी, कविता नेगी, राकेश बहुगुणा, निर्मल बहुगुणा, सतीश कुमार, राजकुमारी त्यागी, बृजेश कुमार चौहान, ईशा त्यागी, करुवल्लील रत्नम्मा विजयम्मा, सपना त्यागी, सीमा, थ्रेसिआ एनजे, स्मिथा फ्रांसिस, अतुल थपलियाल (थ्रो अटॉर्नी होल्डर)