दून में परिवार के 05 सदस्यों की चाकू से 85 वार कर की थी हत्या, हत्यारे हरमीत की फांसी की सजा पर HC में सुनवाई पूरी
वर्ष 2014 में दीपावली की रात की घटना, सत्र न्यायालय ने वर्ष 2021 में सुनाई थी फांसी की सजा, रिफ्रेंस को हाई कोर्ट भेजा गया था मामला
Amit Bhatt, Dehradun: देहरादून में वर्ष 2014 की दीपावली की रात अपने ही परिवार के 05 सदस्यों की चाकू से गोदकर निर्मम हत्या में दोषी साबित किए गए हरमीत के मामले में नैनीताल हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस अलोक कुमार की खंडपीठ ने फांसी की सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। निचली अदालत से हरमीत सिंह को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद पुष्टि करने के लिए मामला हाई कोर्ट रिफ्रेंस के लिए भेजा गया था।
देहरादून के आदर्श नगर में इस सनसनीखेज हत्याकांड के अभियुक्त हरमीत को जिला एवं सत्र न्यायाधीश (पंचम) आशुतोष मिश्रा ने 05 अक्टूबर 2021 को फांसी की सजा सुनाने के साथ ही एक लाख रुपये अर्थदंड भी लगाया था। अभियोजन के अनुसार 23 अक्टूबर 2014 को हरमीत ने पिता जय सिंह, सौतेली मां कुलवंत कौर, गर्भवती बहिन हरजीत कौर, 03 साल की भांजी सुखमणि सहित बहन के कोख में पल रहे गर्भस्थ शिशु की भी निर्मम तरीके से चाकू से गोदकर हत्या कर दी थी। मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार हत्यारे ने परिवार के पांचों सदस्यों की हत्या करने के लिए चाकू से 85 बार वार किया था।
पुलिस जांच में पता चला था कि हरमीत के पिता की दो शादियां थी। हरमीत को अंदेशा था कि कहीं उसके पिता सारी संपत्ति सौतेली बहन के नाम पर ना कर दें। उसकी सौतेली बहिन एक सप्ताह पहले अपनी डिलीवरी के लिए मायके आई थी। शादी की सालगिरह 25 अक्टूबर को होने की वजह से वह अपने बच्चे की डिलीवरी सालगिरह के दिन ही कराना चाहती थी। अगर वह डिलीवरी एक दिन पहले करा लेती तो शायद बच्चे व गर्भ में पल रहे शिशु की जान बच सकती थी। इसका फायदा उठाते हुए दीपावली की रात को घर पर पांच लोगों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी।
इस केस का मुख्य गवाह पांच वर्षीय कमलजीत बच गया था। हत्यारे ने घटना को चोरी की दिखाने के लिए अपना हाथ भी काट लिया था। 24 अक्टूबर को पुलिस ने अभियुक्त के विरुद्ध हत्या सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। सत्र न्यायालय ने गर्भस्थ शिशु की मौत को भी हत्या करार दिया। केस में सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता राजीव कुमार गुप्ता ने बताया था कि अदालत ने इस मामले को दुर्लभतम (रेयर ऑफ द रेयरेस्ट) मानते हुए फैसला सुनाया।
सत्र न्यायालय में तकरीबन एक घंटा चली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की ओर से वर्ष 2008 में बिहार, वर्ष 1980 व 1983 में पंजाब में सामने आए ऐसे ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाई गई फांसी की सजा की दलील पेश की गई थी। जिसके बाद अदालत ने हरमीत को फांसी की सजा सुनाई। वारदात का पता तब चला था, जब अगले दिन सुबह करीब साढ़े दस बजे नौकरानी राजी उनके घर पहुंची। इस मामले में हरजीत कौर के बेटे कमल की गवाही अहम रही। वह इस घटना का एकमात्र चश्मदीद गवाह रहा। हरमीत ने कमल पर भी हमला किया था, मगर वह बच गया।
सत्र न्यायालय में इन धाराओं में दी सजा
-धारा 302 (हत्या)- फांसी
-धारा 307 (हत्या का प्रयास)- 10 वर्ष कैद व 25 हजार रुपये जुर्माना
-धारा 316 (गर्भवती महिला की हत्या)- 10 वर्ष कैद व 25 हजार रुपये जुर्माना
-जुर्माना अदा नहीं करने पर पांच साल का अतिरिक्त कारावास