DehradunForest And Wildlifeland fraud

क्या दून में हो चुका है 4.72 लाख एकड़ भूमि का घोटाला, सन्न कर देने वाले आंकड़े आए सामने

वन विभाग/ग्राम समाज के नियंत्रण में आई हजारों करोड़ रुपये की भूमि की ताजा स्थिति से अधिकारी नहीं हैं वाकिफ

Amit Bhatt, Dehradun: अरबों रुपये के रजिस्ट्री फर्जीवाड़े ने ही पूरी व्यवस्था को सन्न कर दिया था। सरकारी मशीनरी अभी इसी घोटाले की परतें उघाड़ने में लगी हैं और दूसरी तरफ एक और महाघोटाला होश उड़ाने को तैयार दिख रहा है। यदि वास्तव में यह घोटाला है तो इससे पूरे सिस्टम की नींद उड़ने वाली है। क्योंकि, जमीन घोटाले के आंकड़े कुछ सौ एकड़ में नहीं, बल्कि लाखों एकड़ में हैं। देहरादून जिले में वन विभाग/ग्राम समाज वन भूमि के नियंत्रण में आई 4.72 लाख एकड़ (7.61 लाख बीघा) भूमि का कहीं अता-पता नहीं है। जबकि यह भूमि वर्ष 1952-53 के गजट नोटिफिकेशन के तहत ही वन स्वरुप में सरकार या ग्राम समाज के नियंत्रण आ गई थी। गजब की बात यह है कि देहरादून वन प्रभाग ने आरटीआई में दिए जवाब में कहा है कि संबंधित नोटिफिकेशन उनके क्षेत्र में वन क्षेत्र की संबंधित भूमि के कोई रिकॉर्ड उपलबध नहीं हैं।

आरटीआई के तहत मांगी गई इस जानकारी को सोशल एक्टिविस्ट अधिवक्ता विकेश नेगी ने मीडिया को उपलब्ध कराई है। साथ ही इसे रजिस्ट्री फर्जीवाड़े/चाय बागान भूमि फर्जीवाड़े से बड़ा घोटाला बताते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री समेत वन मंत्री, केंद्रीय वन मंत्रालय, केंद्रीय लोकपाल और जिलाधिकारी देहरादून को शिकायत के रूप में प्रेषित किया है। शिकायत के साथ अधिवक्ता विकेश नेगी ने गजट नोटिफिकेशन की प्रति भी लगाई है।

आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक वन विभाग/ग्राम समाज के नियंत्रण में दी गई इस तरह की भूमि को देहरादून जिले के 199 गांवों में दर्ज किया गया था। नोटिफिकेश के मुताबिक इस तरह की वन स्वरुप और बंजर श्रेणी आदि की भूमि पर ग्रामीणों का अधिकार चारा-पत्ती, लकड़ी के लिए था। हालांकि, इसे विक्रय करने के अधिकार नहीं दिए गए थे। दूसरी तरफ समय के साथ अधिकारियों, सफेदपोशों और भूमाफिया के गठजोड़ के चलते भूमि निरंतर विक्रय की जाती रही।

जमींदारी खात्मे के समय अतिरिक्त रूप में सरकार को मिली थी भूमि
उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनयम के अनुसार तय मानक से अधिक भूमि को सरकार में निहित कर दिया गया था। 08 अगस्त 1946 के बाद किए गए किसी भी भूमि अनुबंध को अवैध घोषित किया गया था। वहीं, अक्टूबर 1952-53 के नोटिफिकेशन के मुताबिक वन स्वरुप की भूमि, निजी वन को वन विभाग/ग्राम समाज के नियंत्रण में दे दिया गया था। इसी तरह की भूमि को देहरादून में जमकर खुर्दबुर्द किया गया।

मसूरी के नीचे क्यारकुली भट्टा में खुली लूट
वन विभाग के नियंत्रण में आई मसूरी के पास क्यारकुली भट्टा क्षेत्र की भूमि पर भूमाफिया ने जमकर खेल किया। यहां तक कि जिस भूमि पर प्रादेशिक सेना की ईको टास्क फोर्स ने वनीकरण किया था, उसका भी अधिकांश भाग उजाड़ दिया गया है। इस भाग पर भी आज तमाम रिसोर्ट नजर आ रहे हैं। अधिवक्ता विकेश नेगी ने इस प्रवृत्ति को पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बताया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से जांच की मांग करते हुए सख्त कार्रवाई की उम्मीद जताई है।

उपजिलाधिकारी सदर के अभिलेखों में दर्ज है सच
कई दशक पहले क्यारकुली भट्टा के प्रकरण में फारेस्ट सेटेलमेंट ऑफिसर/उपजिलाधिकारी सदर ने सुनवाई की थी। जिसमें स्पष्ट किया था कि भूमि का विक्रय नहीं किया जा सकता है। यह पत्रावली आज भी उपजिलाधिकारी कार्यालय के अभोलेखों में धूल फांक रही है। तब से अब तक तमाम अफसर आए और गए, लेकिन किसी ने भी इस मामले को उठाने का साहस नहीं किया।

 

 

 

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