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कोऑपरेटिव बैंक की 19 बीघा जमीन की फर्जी रजिस्ट्री कराई, मिलीभगत की आशंका

शीशमबाड़ा में किए गए फर्जीवाड़े पर तहरीर देकर चुप बैठ गया राज्य सहकारी बैंक, भूमाफिया ने रातोंरात बाउंड्री वॉल कर गेट भी लगाया

Amit Bhatt, Dehradun: शीशमबाड़ा में सहकारी समिति से जुड़ी करीब 19 बीघा भूमि पर एक और चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। पता चला है कि भूमि को सहकारिता विभाग (निबंधक) ने राज्य सहकारी बैंक को आवंटित कर दिया था। गौर करने वाली बात यह है कि पूर्व सहकारी समिति के भंग होने और परिसमापक की तैनाती किए जाने के बाद भी सरकारी भूमि पर भूमाफिया ने कब्जा कर लिया। दिखाने के लिए बैंक की ओर से जुलाई माह में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) देहरादून को तहरीर भी भेजी। लेकिन, इस औपचारिकता को निभाने के बाद यह जानने का भी प्रयास नहीं किया गया कि प्रकरण में मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया जा सका।

सहकारी बैंक की तरफ से एसएसपी को दी गई तहरीर।

यह स्थिति तब है, जब दून में अरबों रुपये का रजिस्ट्री फर्जीवाड़ा सामने आ चुका है। स्वयं जिलाधिकारी सविन बंसल ने सरकारी भूमि पर किए गए अतिक्रमण पर कार्रवाई की साप्ताहिक रिपोर्ट तलब की है। इस मामले में तो अतिक्रमण के साथ ही फर्जीवाड़ा कर सहकारी बैंक को आवंटित भूमि की फर्जी रजिस्ट्री कर दी गई है। उत्तराखंड राज्य सहकारी बैंक (कारपोरेट ब्रांच, देहरादून) के अधिकृत प्रतिनिधि तरुण शर्मा की 20 जुलाई 2024 की तहरीर पर गौर करें तो इसमें यूसुफ अली और मेहताब निवासी शीशमबाड़ा (शेरपुर) पर आपराधिक षड्यंत्र कर बैंक के नाम दर्ज भूमि की फर्जी रजिस्ट्री करने का आरोप लगाया गया है।

कहा गया है कि युसूफ और मेहताब ने जमीन की रजिस्ट्री इमरान, अब्दुल कयूम के नाम कर दी है। बिना मालिकाना हक के फर्जी दस्तावेज तैयार कर भूमि का विक्रय किया गया है। एसएसपी से मांग की गई है कि प्रकरण में आरोपियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया जाए। हालांकि, इसके बाद मामले में बैंक की तरफ से अपेक्षित पैरवी नहीं की गई। इस प्रकरण में सब रजिस्ट्रार कार्यालय की भूमिका भी संदिग्ध प्रतीत होती है।

हाल में की गई बाउंड्री वॉल, यह है पूरा प्रकरण
शीशमबाड़ा में वर्ष 1963 में संयुक्त सहकारी खेती समिति का गठन करने के साथ ही 19.5 बीघा भूमि क्रय की गई थी। तब इस समिति में तमाम काश्तकारों के हित जुड़े थे। हालांकि, वर्ष 1972 में समिति भंग होने के चलते सहकारिता विभाग ने इसके निस्तारण के लिए परिसमापक नियुक्त कर दिया था। सालों तक भूमि खाली पड़ी होने के चलते इस यह भूमाफिया की निगाह में चढ़ गई। 10-11 जुलाई के आसपास भी भूमाफिया ने भूमि पर कब्जा करने का प्रयास किया था।

तब तहसीलदार विकासनगर सुरेंद्र सिंह टीम के साथ मौके पर पहुंचे और जांच पड़ताल शुरू की। प्रशासन की टीम ने जब राजस्व अभिलेख खंगाले गए तो हकीकत जानकार अधिकारी भी सकते में आ गए। पता चला कि जमीन को बेचने वाले और इस पर कब्जा जमाने वाले दोनों की व्यक्तियों के नाम संबंधित भूखंड पर नहीं हैं। इसी क्रम में प्रशासन की टीम ने अवैध रूप से खड़ी की गई दीवार को भी ध्वस्त करने की कार्रवाई शुरू की थी। हालांकि, अवैध कब्जेदारों के भारी विरोध और पुलिस बल की कमी के चलते बात नहीं बन पाई। तहसीलदार सुरेंद्र सिंह के मुताबिक इस जमीन का नियंत्रण सहकारिता विभाग के पास है। संबंधित विभाग के अधिकारियों की मुकदमा दर्ज कराने की सलाह दी गई थी। इसके बाद राज्य सहकारी बैंक ने पुलिस को तहरीर तो दी, लेकिन मुकदमा दर्ज कराने को लेकर मशक्क्त नहीं की गई। अब इस बीच भूमि पर अवैध कब्जा जमा लिया गया है।

2013 में डीएम और एसएसपी ने हटवाया था कब्जा
पूर्व में भी इस भूमि को कब्जे में लेने के प्रयास किए गए थे। तब वर्ष 2013 में तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) ने कब्जा हटवाया था। हालांकि, सहकारिता विभाग की लापरवाही के चलते इस भूमि को अभी तक दो बार बेचकर करोड़ों रुपए हड़प किए जा चुके हैं। धोखाधड़ी का शिकार हुए व्यक्तियों ने इस मामले में मुकदमे भी दर्ज कराए हैं। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी सहकारिता विभाग और अन्य अधिकारियों के स्तर पर बरती जा रही लापवाही गंभीर सवाल खड़े करती है।

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