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कूड़ा बीनने वालों को खोज रही सरकार, अब तक 1200 खोजे

हाई कोर्ट के आदेश के बाद सक्रिय हुई सरकारी मशीनरी, केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का मिलेगा लाभ

Amit Bhatt, Dehradun: सरकार कूड़ा बीनने वाले लोगों को खोज रही है। इस खोजबीन का असर यह हुआ कि प्रदेश में पूर्व में कूड़ा बीनने वाले जिन व्यक्तियों की संख्या 550 थी, वह अब बढ़कर 1200 को पार कर गई है। इस खोजबीन का मकसद यह है कि कूड़े तले दबी जिंदगी को ऊपर उठाया जा सके। ऐसे व्यक्तियों और उनके बच्चों को केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सके। यह कसरत हाई कोर्ट के आदेश के क्रम में की जा रही है। हालांकि, कोर्ट की तरफ से नियुक्त न्याय मित्र ने इस अपडेट संख्या पर भी सवाल खड़े किए हैं और उन्होंने कहा है कि प्रदेश में कूड़ा बीनने वाले लोगों की संख्या इससे कहीं अधिक है।

नैनीताल हाई कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लेती जनहित याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए न्यायमित्र नवनीश नेगी से स्वयं जाकर इन लोगों की समस्याओं को देखने को कहा। न्यायमित्र को कहा गया कि वह कूड़ा बीनने वालों व उनके बच्चों की समस्याएं देखें। पता करें कि उन्हें केंद्र व राज्य सरकार की ओर से संचालित योजनाओं का लाभ मिल रहा है या नहीं।

इस मामले में 09 जनवरी तक रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा गया है। पूर्व में कोर्ट ने राज्य सरकार से कूड़ा बीनने वाले लोगों व उनके बच्चों के कल्याण के लिए कार्ययोजना का प्रस्ताव कोर्ट में पेश करने को कहा था। बुधवार को निदेशक शहरी विकास ने प्रस्ताव पेश कर कहा कि पूरे प्रदेश में कूड़ा बीनने वालों व उनके बच्चों का चिह्निकरण किया जा रहा है। अब तक प्रदेश में 1200 लोगों को चिह्नित किया जा चुका है। अधिकतर को मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड व आधार कार्ड निर्गत कर दिए गए हैं।

इसमें तमाम लोग सरकारी योजनाओं का लाभ भी ले रहे है। राज्य सरकार ने कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए इनके लिए कुछ स्थायी व अस्थायी शेल्टर होम का निर्माण किया है। ठंड से बचने के लिए अलाव व कंबल की व्यवस्था भी की गई गई है। राज्य सरकार इनके बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर भी फोकस कर रही है। हालांकि, इस दौरान न्यायमित्र ने बताया कि पहली रिपोर्ट में इनकी इनकी संख्या 550 बताई गई। अब कोर्ट के आदेश पर 1200 के करीब संख्या बताई जा रही है। लेकिन, इनकी संख्या प्रदेश में इससे अधिक है।

उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने हाई कोर्ट व अन्य अदालतों के एक सर्वे के आधार पर रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि कूड़ा बीनने वालों को जरूरी सामान व उनके बच्चों को राज्य व केंद्र सरकार प्रदत्त सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। जिसकी वजह से उनके बच्चे अब भी वही काम कर रही हैं। जिससे उनका मानसिक व बौद्धिक विकास नहीं हो पा रहा है, इसलिए उन्हें भी केंद्र व सरकार की तरफ से जारी सभी योजनाओं का लाभ दिया जाए, जैसे आम नागरिकों को मिल रहा है। कूड़ा बीनने वालों के बच्चों का समुचित विकास जरूरी है, वह समाज का अहम हिस्सा हैं। वह एक सच्चे पर्यावरण मित्र भी हैं, इसलिए कम से कम सरकार की ओर से संचालित योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।

सांकेतिक तस्वीर। साभार ज्योति कुमारी।

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