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भाजपा विधायक आदेश और उनकी भांजी समेत 05 को सजा, सामने आई पुलिस बर्बरता की कहानी 

16 साल बाद सीबीआइ कोर्ट ने दोषी करार देते हुए सुनाई सजा, हरिद्वार के रानीपुर से विधायक व उनकी भांजी को 06-06 माह, 03 पुलिस कर्मियों को 01-01 वर्ष की सजा

Amit Bhatt, Dehradun: देहरादून की सीबीआइ कोर्ट ने सोमवार को 16 साल पुराने मामले में सजा सुनाते हुए हरिद्वार के रानीपुर क्षेत्र से भाजपा विधायक आदेश चौहान और उनकी भांजी समेत 05 आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुना दी। विधायक चौहान और उनकी भांजी दीपिका चौहान को 06-06 महीने, जबकि 03 पुलिस कर्मियों गंगनहर कोतवाली के तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक आरके चमोली व दारोगा दिनेश कुमार और राजेंद्र सिंह रौतेला को 01-01 वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाई है। इनमें आरके चमोली की पुलिस उपाधीक्षक पद से सेवानिवृत्ति के बाद मृत्यु हो चुकी है, जबकि दिनेश कुमार व राजेंद्र सिंह रौतेला वर्तमान में इंस्पेक्टर हैं।

प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने मुकदमा दर्ज कर जांच की थी और आरोपियों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की थी। जिसके अनुसार चावमंडी रुड़की (हरिद्वार) निवासी डीएस चौहान ने सीबीआइ को तहरीर थी दी कि उनके बेटे मनीष चौहान का विवाह दीपिका निवासी विद्या विहार देहरादून से 25 फरवरी-2004 को हुआ था। उस समय मनीष एल्केम कपंनी में कार्यरत था। कुछ समय बाद बेटा नौकरी छोड़कर घर आ गया और दुकान चलाने लगा। जिसे लेकर मनीष व दीपिका में विवाद होने लगा और दोनों उनसे अलग होकर मकान के प्रथम तल पर रहने लगे।

विवाद के दौरान कभी-कभी दीपिका अपने मायके भी चली जाती थी। आरोप था कि 11 जुलाई-2009 की रात 08 बजे गंगनहर कोतवाली में तैनात एसएसआई दिनेश कुमार उनके आवास पर पहुंचे और कहा कि कोतवाल आरके चमोली ने उन्हें कोतवाली बुलाया है। डीएस चौहान अपने स्कूटर से कोतवाली पहुंचे। आरोप है कि वहां पहुंचते ही आरके चमोली ने उनसे गाली-गलौच शुरू कर दी। जब उन्होंने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो कोतवाल ने उनका फोन छीन लिया। एसएसआइ दिनेश कुमार बिना महिला पुलिस कर्मियों के उनके घर पहुंचे और उनकी पत्नी से भी अभ्रदता की।

आरोप यह भी था कि कोतवाल आरके चमोली ने उनसे 05 लाख रुपये, चावमंडी का मकान और उनकी कृषि भूमि दीपिका के नाम करने का दबाब बनाया। मना करने पर उन्हें 42 घंटे तक कोतवाली गंगनहर में गैर-कानूनी तौर पर हिरासत में रखा। उनकी बहू के मामा भाजपा हरिद्वार के बहादराबाद निवासी भाजपा के तत्कालीन जिला उपाध्यक्ष आदेश चौहान (वर्तमान में रानीपुर विधायक) से पुलिस ने रुपये लेकर ससुरालियों के विरुद्ध दहेज-उत्पीड़न का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया और उन्हें जेल भेज दिया। वहीं, बाद में हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने जांच की और 04 अक्टूबर-2019 को पुलिस निरीक्षक आरके चमोली, दारोगा दिनेश कुमार, राजेंद्र सिंह व कांस्टेबल संजय राम के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया।

विवेचना के बाद विधायक आदेश चौहान व उनकी भांजी दीपिका का नाम मुकदमे में शामिल किया गया और चार्जशीट दाखिल की गई। मामले में सीबीआइ के कांस्टेबल संजय राम के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिले थे। क्याेंकि, सजा 03 वर्ष से कम है, तो सोमवार को सजा के ऐलान के बाद सभी दोषियों को जमानत भी मिल गई। भले ही अब पीड़ित परिवार को न्याय मिल गया, लेकिन उनकी यह लड़ाई किसी भी दौर में आसान नहीं रही। क्योंकि, पुलिस कार्मिकों ने ही मामले को दबाने के लिए उनकी राह में तमाम अड़ंगे लगाए।

02 जिलों के 03 सीओ ने जांच में लिया लंबा समय, फिर लगा दी एफआर
रिटायर्ड प्रोफेसर और उनके परिवार को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। पुलिस ने राजनीतिक दबाव में काम किया। थाना पुलिस से लेकर सीओ ने जांच को पूरी तरह से प्रभावित करने का प्रयास किया, लेकिन उच्च न्यायालय ने जब केस सीबीआइ को सौंपा तो न सिर्फ उम्मीद जगी, बल्कि आज परिणाम सामने है।

पुलिस बर्बरता के शिकार रिटायर प्राेफेसर ने बताया कि इस मामले में उन्होंने पूर्व में लोकायुक्त से शिकायत की तो लोकायुक्त ने एसएसपी हरिद्वार से आख्या मांगी। एसएसपी हरिद्वार ने मामले की जांच उस समय सीओ हरिद्वार से कराई तो उन्होंने शिकायत को निराधार बताया। लोकायुक्त ने पीड़ित को नोटिस भेजकर जवाब मांगा। पीड़ित ने जांच को गलत ठहराते हुए दोबारा प्रार्थना पत्र दिया, जिसके बाद लोकायुक्त ने एसआइटी बनाने के निर्देश दिए। एसआइटी ने इंस्पेक्टर की जांच दारोगा को सौंप दी।

न्याय न मिलने पर पीड़ित ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तो पुलिस हरकत में आई और सीओ मंगलौर, सीओ लक्सर और सीओ डालनवाला से अलग-अलग जांच कराई गई। हालांकि, मामला ढाक के तीन पात रहा और केस में एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगा दी गई। इसके बाद पीड़ित दोबारा उच्च न्यायालय गए और सीबीआइ से जांच करवाने संबंधी याचिका दायर की। उच्च न्यायालय के आदेश पर जांच सीबीआइ को सौंपी गई, जहां सीबीआइ ने अक्टूबर 2019 को मुकदमा दर्ज किया।

पुलिस बर्बरता का गंभीर उदाहरण है यह मामला
शिकायतकर्ता डीएस चौहान ने बताया कि पुलिस ने पहले तो उन्हें अवैध तौर पर हिरासत में रखा और 02 दिन बाद मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया। हालांकि, जेल से उन्हें तत्काल रिहा कर दिया गया। लेकिन, फिर उनकी पत्नी शकुंतला चौहान, पुत्र मनीेष चौहान व बेटी पूनम चौहान के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर उन्हें भी जेल भेज दिया। उनकी पत्नी व बेटी 01 रात जेल में रहे, जबकि बेटा 10 दिन बाद जेल से बाहर निकल सका।

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