Breaking NewsDehradunUttarakhand

उत्तराखंड से कौन ले गया सैकड़ों करोड़ रुपये?, किस आलू वाले को खोज रहे ठेकेदार?

टेंडर के नाम पर कई ठेकेदारों से लिया माल, न काम हुआ और न माल किया वापस, अब महाशय खुद अदृश्य हो गए

Round The Watch News (Research Desk): शासन से लेकर सत्ता के गलियारों तक आजकल एक नाम न सिर्फ चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है, बल्कि उसे शिद्द्त से खोजा भी जा रहा है। भला इतने छोटे उत्तराखंड में जो नाम चर्चा में है, उसे खोजना इतना मुश्किल क्यों हो रहा होगा? जवाब यह है कि यह तीस-मार-खां साहब उत्तराखंड से चंपत हो गए हैं। चंपत भी खाली हाथ नहीं, बल्कि सैकड़ों करोड़ रुपये लेकर। यह तुर्रम खां आलू वाले बनकर आए थे और प्याज कुतरकर चले गए। अब सैकड़ों करोड़ गए हैं तो किसी न किसी की जेब तो हल्की हुई होगी। खैर, यह तो जांच का विषय होगा, मगर आलू वाले को उत्तराखंड के ठेकेदार जोर-शोर से खोज रहे हैं।

सुना है कि इन तीस-मार-खां ने कई ठेकेदारों को एक ही ठेके चिपका दिए। भई काम तो एक ही को मिलना था, लेकिन ठेकदारों को इसका भान तब हुआ, जब ठेका हाथ से चला गया और दूसरे की झोली में जा गिरा। पहले तो आलू का कारोबार करने वाले महाशय ने हाथ मसलने वाले ठेकेदारों को भविष्य में काम का लॉलीपॉप दिया, लेकिन जब ठेकेदारों की जमात लंबी होने लगी तो ये साहब माल समेटकर जाने कहां मिस्टर इंडिया बन गए। फिलहाल, ठेकेदारों की काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो रखी है।

अब बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर आलू वाले भाई साहब ने ऐसा क्यों किया होगा? क्या वह सांप बनकर उत्तराखंड में दूध पी रहे थे और पेट भरने के बाद डसने की फिराक में थे? सवाल यह भी है कि जब आलू को नमक बराबर मिल रहा था, तो क्या जरूरत थी नमक हरामी करने की? इन बातों का जवाब तो सबसे बेहतर आलू वाले महाशय ही जानते होंगे। लेकिन, उनके मन की पता तो तब चलेगी, जब उनका खुद कहीं पता चलेगा।

हालांकि, जब भी वह दिन आएगा आलू की थिच्वाणी बननी तय है। तब देखना दिलचस्प रहेगा कि उस थिच्वाणी का रायता बिखरता है या उसे चुपचाप समेट लिया जाएगा। क्योंकि, इंतजार जितना लंबा होगा, ठेकेदारों की पेट की बात अपच बनकर बाहर आने लगेगी। शायद तब तक आलू पर अंगरे भी लगा जाएंगे और फिर उन्हें दबाने के बाद भी नए अंकुर फूटने से रोक पाना मुश्किल होगा। ऐसे अंकुर जब नए आलू बनेंगे तो उनकी फितरत भी पुराने आलू जैसी रहेगी और वह भी आलू वाला ही बनने की जुर्रत करेंगे।

आलू वाले से त्रस्त थी नौकरशाही, विकास की थाली में अब आलू नहीं ठूंसना पड़ेगा
अब जब आलू वाला कहीं गायब हो गए हैं तो उत्तराखंड की नौकरशाही सुकून में है। बेशक कई ठेकेदार परेशान हैं, मगर आइएएस अफसर इस बात से राहत में हैं कि अब उन्हें विकास कार्यों की ‘थाली’ में रोज-रोज आलू नहीं ठूंसना पड़ेगा। जाहिर है, इससे सुशासन का जायका भी खराब नहीं होगा और विकास की सेहत भी ठीक रहेगी। क्योंकि, आलू वाले तो ऐसे थे कि वह अफसरों का हाथ पकड़ने वाले अंदाज में योजनाओं की तरकारी में खुद को घुसा ही देते थे। सुना है उनके जाते ही बहुत कुछ बदलने भी लगा है। प्रदेश के ठेकेदारों की जो जमात आलू वाले के आकार के नीचे दबी थी, अब उनका भी आकार बढ़ा दिया गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button