सचिवालय की ‘काली भेड़ें’ सरकार के रडार पर, मुख्यमंत्री ने मांगी गोपनीय फाइल
दागी अधिकारियों के कारनामों का बनेगा क्रमवार ब्यौरा, फाइल दबाने से लेकर करोड़ों के खेल तक की होगी जांच

Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड सचिवालय में वर्षों से भ्रष्टाचार का गढ़ बने अफसर अब सरकार के रडार पर हैं। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने अपने अधीनस्थों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सचिवालय के दागी अधिकारियों की गोपनीय फाइल तैयार की जाए। इसमें उनके एक-एक कारनामे का क्रमवार ब्यौरा दर्ज होगा। सूची में वे अफसर भी शामिल होंगे, जिन्होंने राजनीतिक संपर्कों के दम पर जांचें दबवा दीं या लंबित कराईं।
मुख्यमंत्री की सीधी पकड़, अब नपेंगी गर्दनें
पिछले छह महीने में मुख्यमंत्री ने कई अनुभाग अधिकारियों और समीक्षा अधिकारियों पर सीधा हस्तक्षेप करते हुए उन्हें उनके अनुभागों से हटाया है। यह वही अफसर थे, जिन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बंधक बनाकर पूरे विभाग को अपने इशारों पर चलाना शुरू कर दिया था। हालात यहां तक पहुंच गए थे कि सचिवालय में बैठे अनुभाग अधिकारी वरिष्ठ आईएएस तक को दरकिनार करने लगे थे।
अनुभाग अधिकारी ‘खान’ का साम्राज्य
एक चर्चित उदाहरण तब सामने आया जब तत्कालीन सचिवालय प्रशासन सचिव भोपाल सिंह मनराल से पूछा गया कि स्थानांतरण की फाइलें उनके पास क्यों नहीं आ रहीं? जांच में खुलासा हुआ कि एक जीओ (सरकारी आदेश) जारी कर अनुभाग अधिकारी खान की फाइलें सीधे अपर मुख्य सचिव को भेजी जा रही थीं। इस घटना ने सचिवालय की अंदरूनी सच्चाई उजागर कर दी। हालात यह थे कि अनुभाग अधिकारी दो-दो अनुभाग संभाल रहे थे और अपर सचिव एक ही अनुभाग पर काम कर रहे थे। अनुभाग अधिकारी खान ने सचिवालय प्रशासन में वर्षों तक मनमानी की। विभाग की नब्ज पर काबिज खान ने हाल ही में 10 अधिकारियों की डीपीसी के बाद विभाग आवंटन की फाइल एक महीने तक दबाकर रखी। मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा तो वे भड़क उठे और अगले ही दिन खान की विभाग से विदाई कर दी गई। खान से मुक्ति मिलने पर कई अफसरों ने राहत की सांस ली।
नेता टाइप अधिकारी और डीपीसी का खेल
सचिवालय सेवा का एक और ‘नेता टाइप’ अधिकारी सुविधा शुल्क लेकर गलत डीपीसी कराने के आरोप में सुर्खियों में रहा। जांच सचिव स्तर के अधिकारी को सौंपी गई। जांच अधिकारी ने उसे दोषी ठहराया और तत्कालीन शिक्षा सचिव ने मामले को गंभीर मानते हुए प्रतिकूल प्रविष्टि देने का प्रस्ताव किया। लेकिन राजनीतिक दबाव में फाइल दबा दी गई। इस पर मुख्य सचिव एस.एस. संधू ने नाराजगी जताई थी।
यही नहीं, सूचना आयोग ने भी सूचना छुपाने पर इस अधिकारी पर जुर्माना लगाया। हाल ही में इनके विभाग में फर्जी हस्ताक्षर कर ट्रांसफर का मामला सामने आया और एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन जिम्मेदारी एक जूनियर पर डालकर मामला दबा दिया गया।
‘आरडीएक्स’ नाम से कुख्यात अफसर
सचिवालय में एक अनुभाग अधिकारी ‘आरडीएक्स’ नाम से कुख्यात है। वित्त विभाग में रहते हुए उसने महत्वपूर्ण फाइलों को गायब कर दिया था। मुख्यमंत्री की नाराजगी पर सचिव आर.के. सुधांशु को फटकार लगी और आरडीएक्स को विभाग से हटाना पड़ा। इसी अफसर पर मंत्री सौरभ बहुगुणा के खास मामलों को निपटाने के एवज में लाखों रुपये वसूलने का भी आरोप है, जिसे मंत्री के हस्तक्षेप पर लौटाना पड़ा। यह अधिकारी इतने खतरनाक हैं कि कोई भी सचिव उन्हें अपने अंडर लेने को तैयार नहीं होते हैं।
महिला अफसरों के कारनामे भी कम नहीं
भ्रष्टाचार में महिला अधिकारी भी पीछे नहीं रहीं। एक महिला अनुभाग अधिकारी पर आरोप है कि उसने किसी विभागीय ढांचे को बढ़ाने वाली फाइल पर ₹15 लाख लिए। वहीं, एक अन्य महिला अधिकारी ‘मिस 50,000’ के नाम से मशहूर है, क्योंकि मालदार फाइलों पर सिग्नेचर करने की उनकी दर तय है—₹50,000। यह अधिकारी अपने संपर्कों के बल पर खनन अनुभाग की पोस्टिंग के सपने देख रही है।
मुख्यमंत्री कार्यालय का ‘स्थायी सदस्य’
एक अफसर तो पिछले 20 साल से मुख्यमंत्री कार्यालय में ही जमे हुए हैं। सहायक समीक्षा अधिकारी से लेकर अनुसचिव तक चार पदोन्नतियां पाने के बावजूद उन्होंने कभी मुख्यमंत्री कार्यालय से बाहर कदम नहीं रखा। सचिवालय कार्मिकों की स्थानांतरण नीति उनके दरवाजे पर पहुंचकर दम तोड़ देती है।
दो साल पहले तत्कालीन उप सचिव (आपदा) के खिलाफ गंभीर शिकायतें आईं। उन्हें बचाने के लिए एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने उन्हें बाध्य प्रतीक्षा पर डालकर सिर्फ एक महीने बाद मनचाही पोस्टिंग दे दी। आज भी सचिवालय के खेल अनुभाग के अधिकारी प्रमुख सचिव को सीधे फाइल भेजते हुए अपने 06 वरिष्ठ अधिकारियों को बाईपास कर रहे हैं।
आईएएस भी निगरानी सूची में
सिर्फ सचिवालय सेवा ही नहीं, बल्कि पांच आईएएस अधिकारी भी मुख्यमंत्री की निगरानी सूची में हैं। इनमें से एक आईएएस दंपति ने लंदन में बड़ी संपत्ति खरीदी है और बारी-बारी से उसकी देखभाल के लिए विदेश जाते रहे हैं। एक अन्य आईएएस अधिकारी पर उत्तराखंड की आपदा को अवसर बनाकर 50 से अधिक इंजीनियरों के तबादले करने और करोड़ों की कमाई करने का आरोप है।
सचिवालय की गिरती साख, बचाने को नए जतन
पिछले 10 वर्षों में सचिवालय की गरिमा और परंपराओं में लगातार गिरावट आई है। सचिव और प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी भी इसमें बराबर के जिम्मेदार हैं। वे अपने चहेते अनुभाग अधिकारियों को मनमर्जी की छूट देते हैं और ईमानदार अफसरों को हाशिए पर धकेल देते हैं। नतीजा यह हुआ है कि सचिवालय आज कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की प्रयोगशाला बनकर रह गया है।