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देहरादून में 12वां सस्टेनेबल माउंटेन डेवलपमेंट समिट प्रारंभ, हिमालय बचाने को साझा मुहिम शुरू

हिमालयी क्षेत्रों में प्रकृति-सम्मत, जनभागीदारी आधारित विकास की आवश्यकता: सुबोध उनियाल

Amit Bhatt, Dehradun: दून विश्वविद्यालय के डॉ. दयानंद ऑडिटोरियम में शुक्रवार को इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (आईएमआई) द्वारा आयोजित 12वां सस्टेनेबल माउंटेन डेवलपमेंट समिट (SMDS-XII) का शुभारंभ हुआ। 02 दिवसीय इस सम्मेलन का उद्घाटन उत्तराखंड सरकार के वन, भाषा एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने दीप प्रज्वलन कर किया।

हिमालय को बचाने के लिए प्रकृति-सम्मत कार्ययोजना ज़रूरी: उनियाल
बतौर मुख्य अतिथि वन एवं पर्यावरण मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि हिमालय देश को लगभग 80 प्रतिशत जल आपूर्ति करता है, लेकिन यह क्षेत्र जलवायु आपदाओं की चपेट में है। हाल की भारी बरसात से हुई जन-धन हानि का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अब ऐसी समन्वित और प्रकृति-सम्मत कार्ययोजना जरूरी है, जिसमें स्थानीय समुदाय की प्रत्यक्ष भागीदारी हो।

उन्होंने उत्तराखंड में किए जा रहे प्रयासों का जिक्र करते हुए बताया कि धार्मिक धामों में प्रसाद सामग्री स्थानीय लोगों से ही उपलब्ध कराने को बढ़ावा दिया जा रहा है। वनाग्नि रोकथाम के लिए ग्रामीणों को चीड़ की सूखी पत्तियां (पिरूल) एकत्र कर बेचने से जोड़ा गया है। पलायन रोकने के लिए इको-होम स्टे योजनाओं से सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। हरेला पर्व पर 50% वृक्षारोपण फलदार प्रजातियों का और 20% जंगलों में अनिवार्य किया गया है। जैविक खेती को अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान दिलाने की दिशा में भी प्रयास जारी हैं। काबीना मंत्री उनियाल ने कहा कि विकास तभी टिकाऊ होगा, जब वह विज्ञान-आधारित, पर्यावरण-संवेदनशील और जनहितैषी हो।

‘प्रकृति को केंद्र में रखकर नीतियां बनानी होंगी’: प्रो. गुप्ता
मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि हम नीतियों में प्रकृति की बात करते तो हैं, लेकिन व्यवहार में उसका अनुपालन नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि तीर्थाटन और पर्यटन से आर्थिक लाभ तो हो रहा है, लेकिन इसके साथ पहाड़ों पर प्लास्टिक का बोझ बढ़ रहा है, जो खतरनाक है। उन्होंने सतत विकास के लिए कुछ ठोस सुझाव रखते हुए आपदा प्रबंधन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग, आजीविका और आपदा नियंत्रण में पारंपरिक ज्ञान का लाभ, कृषि पारिस्थितिकी को बढ़ावा और किसानों की क्षमता निर्माण और हिमालयी क्षेत्र में नवाचार आधारित उद्यमिता को प्रोत्साहन पर बल दिया।

साझा प्रयासों से ही मिलेगा समाधान: सुरेखा डंगवाल
दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि हमारे पास कई सक्षम संस्थान हैं। यदि ये आपसी सहयोग से काम करें तो बेहतर नीतियां और ठोस नतीजे सामने आएंगे। आईएमआई अध्यक्ष रमेश नेगी ने कहा कि हिमालय अव्यवस्थित विकास का दबाव और नहीं झेल सकता। अब विज्ञान-आधारित और जनकेंद्रित विकास ही इसका भविष्य है। सचिव रोशन राय और कोषाध्यक्ष बिनीता शाह ने अतिथियों का स्वागत और आभार व्यक्त किया।

शोक संवेदना और सांस्कृतिक रंग
इससे पहले सम्मेलन की शुरुआत में इस वर्ष की बरसात में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। इसके बाद नीति घाटी की महिलाओं ने पारंपरिक स्वागत गीत प्रस्तुत किया।

व्यापक भागीदारी, मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई
उद्घाटन सत्र में लगभग 250 प्रतिनिधि शामिल हुए, जिनमें अधिकारी, वैज्ञानिक, किसान और सामाजिक कार्यकर्ता प्रमुख रहे। सिक्किम, हिमाचल और उत्तराखंड के दूरस्थ हिमालयी अंचलों से आए महिला-पुरुष किसानों ने भी सक्रिय भागीदारी की। कार्यक्रम स्थल पर स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी ने सबका ध्यान खींचा। पहले दिन तीन समानांतर सत्र हुए, जिनमें पर्वतीय समुदायों के जमीनी मुद्दों पर विमर्श हुआ।

समापन सत्र में आएंगे वरिष्ठ नेता
सम्मेलन का समापन शनिवार को होगा। इसमें उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी और सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत विशेष सत्रों को संबोधित करेंगे।

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