छात्रों से काम करवाने पर डीजी शिक्षा का कड़ा आदेश, देहरादून और चमोली की घटनाओं पर आपत्ति
महानिदेशक दीप्ति सिंह ने गिनाए नियम कानून, कड़ी कार्रवाई की चेतावनी

Rajkumar Dhiman, Dehradun: चमोली में स्कूली बच्चों से कार धुलवाने और देहरादून में बजरी ढोने के वायरल वीडियो का संज्ञान लेकर शिक्षा महानिदेशक दीप्ति सिंह ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने इस संबंध में आदेश जारी कर स्पष्ट तौर पर निर्देश दिया है कि किसी भी स्कूल में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं से शिक्षा-संबंधी कार्य के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं कराये जायेंगे। आदेश में संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद-24, बाल श्रम निषेध, तथा अनुच्छेद-21A, शिक्षा का अधिकार) और शैक्षिक कानूनों-नियमों का हवाला देते हुए कहा गया है कि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अंतर्गत तथा राज्य सरकार/महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की अधिसूचना के निर्देशों के अनुरूप बच्चों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।
महानिदेशालय ने आदेश में कहा है कि राष्ट्रीय/राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सामूहिक कार्यक्रमों तथा पाठ्य-सहगामी गतिविधियों के अतिरिक्त किसी भी प्रकार के अन्य कार्य छात्रों से नहीं कराये जाएंगे। इसके साथ ही चेतावनी दी गई है कि उल्लंघन करने पर संबंधित प्रधानाचार्य-प्रधानाध्यापक व शिक्षक के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी।
चमोली और देहरादून के प्रकरण, आदेश में यह कहा
कार्यालय आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद कई जगहों पर यह देखा जा रहा है कि विद्यालयों के प्रधानाचार्य/प्रधानाध्यापक तथा शिक्षक अध्ययनरत छात्र-छात्राओं से शिक्षा कार्य के इतर अन्य कार्य करवा रहे हैं। इसी संदर्भ में कहा गया है कि ऐसे प्रकरणों के संज्ञान में आने पर जनपद चमोली और जनपद देहरादून में संबंधित शिक्षकों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की गई है। आदेश में इन प्रकरणों का ज़िक्र उदाहरण के रूप में किया गया है, ताकि समूचे राज्य में स्कूल प्रशासन और शिक्षकों को चेतावनी मिल सके और पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
कानूनी व शैक्षिक पृष्ठभूमि के मायने
आदेश में दो प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों का हवाला दिया है। अनुच्छेद-24 (बाल श्रम निषेध) और अनुच्छेद-21A (बच्चों को शिक्षा का अधिकार)। साथ ही RTE-2009 के तहत बच्चों को न केवल निशुल्क बल्कि अनिवार्य शिक्षा देने का दायित्व राज्यों पर है। इन कानूनी धाराओं के तहत बच्चों को शिक्षा से वंचित करना, उन्हें स्कूल के वातावरण में ऐसे काम कराना जो उनकी पढ़ाई में बाधा डालते हों या जिनका शैक्षिक उद्देश्य न हो, नियमों के विरुद्ध माना जा सकता है। राज्य के निर्देशों के अनुकूल यह आदेश शिक्षा के अधिकार की रक्षा और बाल-अधिकारों की सुरक्षा के संदर्भ में जारी किया गया है।
प्रशासनिक संदेश और आगे की प्रक्रिया
आदेश में शिक्षा महानिदेशालय ने सभी जिलाधिकारियों, समस्त प्रधानाचार्यों एवं संबंधित अधिकारियों को आदेश के पालन का सख्त निर्देश दिया है और कहा गया है कि राष्ट्रीय तथा राज्य-स्तर पर निर्धारित कार्यक्रमों व पाठ्य-सहगामी गतिविधियों के अतिरिक्त किसी भी अन्य काम के लिए बच्चों का उपयोग न किया जाए। निदेशालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उल्लंघन की स्थिति में विभागीय अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी, जिसका कार्यान्वयन संबंधित अधिकारियों द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा।
असल जीवन पर असर और सुझाव
इस आदेश का उद्देश्य स्कूलों को याद दिलाना है कि बच्चों को शिक्षा का अधिकार सुरक्षित रखना प्राथमिक कर्तव्य है।
अध्यापक/प्रशासन द्वारा किसी भी तरह के गैर-शैक्षणिक कार्य के लिए छात्रों का इस्तेमाल, विशेष रूप से यदि वह शारीरिक श्रम या वाणिज्यिक प्रकृति का हो, अवैध और अनुचित माना जाएगा। अभिभावकों और समुदायों को भी सतर्क रहने तथा ऐसी घटनाओं की सूचना जिला-शिक्षा कार्यालय या निदेशालय को देने का निर्देश है।
आदेश के कड़े प्रशासनिक संकेत
उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा महानिदेशालय का यह निर्देश राज्य में बच्चों के अधिकारों की रक्षा को लेकर एक कड़ा प्रशासनिक संकेत है। चमोली और देहरादून में सामने आए प्रकरणों का जिक्र यह बताता है कि हाल के समय में कुछ मामलों में व्यवस्था की उपेक्षा हुई है और निदेशालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए स्पष्ट निषेध और अनुशासनिक चेतावनी जारी की है। अब निगरानी, शिकायत-निवारण और स्कूल स्तर पर जागरूकता बढ़ाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी बच्चे अपना अधिकार, शिक्षा को पूरी तरह और निर्बाध रूप से प्राप्त कर सकें।