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हिमाचल प्रदेश: मुख्य सचिव पद पर सस्पेंस गहराया, सरकार के फैसले और जोड़तोड़ पर उठ रहे सवाल

क्या पूरी होगी सीएम सुक्खू के “ट्रस्टेड ब्यूरोक्रेट” की ताजपोशी की मंशा

Rajkumar Dhiman (RTW News): हिमाचल प्रदेश की नौकरशाही और सियासत इन दिनों मुख्य सचिव की कुर्सी को लेकर गर्माई हुई है। मौजूदा मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना का 06 महीने का सेवा-विस्तार 30 सितंबर को पूरा हो गया। इसी के साथ वे सेवानिवृत्त भी हो गए हैं, लेकिन सरकार ने तुरंत ही उन्हें हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इस कदम से सरकार के इरादों और राजनीतिक समीकरणों पर चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।

प्रशासनिक शून्य, सियासी संदेश और समीकरण
मुख्य सचिव राज्य प्रशासन का सबसे बड़ा स्तंभ होता है। लेकिन 30 सितंबर की सेवानिवृत्ति के बाद अब तक नए मुख्य सचिव की नियुक्ति पर सरकार ने कोई स्पष्ट ऐलान नहीं किया है। इससे प्रशासनिक निरंतरता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष इसे सरकार की असमंजस और जोड़तोड़ राजनीति से जोड़कर देख रहा है। वहीं, सत्तापक्ष का तर्क है कि अनुभवी अफसरों को सही जगह पर बनाए रखना विकास कार्यों के लिए जरूरी है।

क्यों अहम है यह पद? समीकरण से बड़े हैं राज्य के सरोकार
मुख्य सचिव का पद केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सियासी संतुलन का भी केंद्र है। केंद्र और राज्य के बीच तालमेल में यह पद निर्णायक होता है। नीतिगत फैसलों के क्रियान्वयन और अफसरशाही पर नियंत्रण यहीं से संचालित होता है।
मुख्यमंत्री का “ट्रस्टेड ब्यूरोक्रेट” इस पद पर बैठाना हर सरकार की पहली प्राथमिकता होती है।

जोड़तोड़, संभावनाओं और आशंका के बदल घने
राजनीतिक गलियारों में कई नामों की चर्चा है। कुछ अफसर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के करीबी माने जाते हैं। वहीं, कुछ नामों पर केंद्र का रुख अलग हो सकता है। यही कारण है कि निर्णय टलता जा रहा है और सरकार फिलहाल बोर्ड/कॉरपोरेशन की नियुक्तियों के जरिये संतुलन साध रही है। फिर भी इस दौड़ में शामिल वर्ष 1988 बैच के IAS ऑफिसर संजय गुप्ता, वर्ष 1993 बैच के केके पंत और ओंकार चंद शर्मा आदि के नामों पर चर्चा सर्वाधिक नजर आती है।

सरकार की मंशा क्या कहती है?
मुख्यमंत्री सुक्खू की सरकार इस समय दोहरी चुनौती झेल रही है। जिसमें विकास और किसानों को राहत का संदेश जनता तक पहुंचना (जैसे न्यूज़ीलैंड के साथ एग्रीमेंट, फॉरेंसिक वैन जैसी घोषणा)। विवादों और विपक्षी हमलों को डिफेंड करना (जैसे विदेश यात्राओं पर उठे सवाल और प्रशासनिक नियुक्तियों को लेकर उठी आलोचना) शामिल हैं। ऐसे में सरकार की मंशा साफ दिखती है कि वह एक अनुभवी और भरोसेमंद अफसर को मुख्य सचिव बनाकर आने वाले महीनों में स्थिरता का संदेश देना चाहती है।

विपक्ष का हमला तेज
विपक्ष का आरोप है कि सरकार ब्यूरोक्रेसी को निजी लाभ और वफादारी के आधार पर ढाल रही है। मुख्य सचिव जैसे संवेदनशील पद को लेकर स्पष्टता न होना, सरकार की अंदरूनी असहमति और भ्रम को दिखाता है। विद्युत बोर्ड जैसे अहम कॉरपोरेशन में “रिटायर अफसर” की त्वरित तैनाती को विपक्ष ने “पोस्ट-रिटायरमेंट पैकेज” करार दिया है।

क्या कहते हैं हिमाचल के आगे के समीकरण
नया मुख्य सचिव कौन होगा, यह न केवल प्रशासन बल्कि आने वाले राजनीतिक समीकरणों को भी तय करेगा। यदि नियुक्ति में देरी और विवाद बढ़े तो विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिलेगा। यदि मुख्यमंत्री अपने करीबी और अनुभवी अफसर को नियुक्त करने में सफल रहते हैं तो यह सरकार के लिए संतुलन और स्थिरता का संकेत होगा। कुल मिलाकर, हिमाचल प्रदेश का मुख्य सचिव पद फिलहाल केवल प्रशासनिक कुर्सी नहीं, बल्कि सियासी शक्ति-संतुलन का प्रतीक बन गया है। सरकार इसे अपनी ताक़त और स्थिरता का संदेश देने के लिए इस्तेमाल करना चाहती है, वहीं विपक्ष इसे हमला बोलने के औज़ार में बदलने में जुटा है।

मुख्य सचिव पद संभावित नाम, उनकी विशेषता और अन्य पहलू
1. संजय गुप्ता (IAS 1988 बैच, HP कैडर)

ताक़त:
– वरिष्ठतम अफसरों में गिने जाते हैं।
– लंबे प्रशासनिक अनुभव के कारण केंद्र और राज्य के बीच तालमेल बैठाने में सक्षम।
– पहले भी कई महत्वपूर्ण विभागों की कमान संभाल चुके हैं।
– मुख्यमंत्री के लिए भरोसेमंद और सुरक्षित विकल्प।

कमज़ोरियां/चुनौतियां
सेवा अवधि सीमित, इसलिए कार्यकाल छोटा हो सकता है।
कुछ हलकों में यह संदेश जा सकता है कि सरकार “सेवानिवृत्ति के कगार” वाले अफसर को पद पर बैठाकर स्थिरता चाह रही है, जबकि युवा विकल्प उपलब्ध हैं।

2. कमलेश कुमार पंत (IAS 1993 बैच, HP कैडर)

ताक़त:
– उम्र और अनुभव का संतुलन, न बहुत वरिष्ठ, न बहुत कनिष्ठ।
– नीति क्रियान्वयन और वित्तीय/योजना मामलों में दक्ष।
– लंबा कार्यकाल देने की स्थिति, जिससे सरकार के पूरे टर्म में continuity मिल सकती है।

कमज़ोरियां/चुनौतियां
– अपेक्षाकृत कम प्रोफ़ाइल वाले अफसर, इसलिए राजनीतिक और प्रशासनिक दबावों से निपटने की क्षमता को लेकर सवाल उठ सकते हैं।
– वरिष्ठता सूची में ऊपर बैठे अफसरों की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है।

3. ओंकार चंद शर्मा (IAS 1994 बैच, HP कैडर)

ताक़त:
– युवा और ऊर्जावान छवि, लंबे कार्यकाल तक पद संभाल सकते हैं।
– प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन दोनों में दक्षता का रिकॉर्ड।
– मुख्यमंत्री सुक्खू की “नई सोच” और युवा नेतृत्व संदेश के लिए उपयुक्त चेहरा।

कमज़ोरियां/चुनौतियां
– वरिष्ठता में उनसे ऊपर बैठे अफसरों को दरकिनार करने का जोखिम।
– विपक्ष इसे “वरिष्ठता की अवहेलना” करार दे सकता है।

4. अनुराधा ठाकुर (IAS 1994 बैच, HP कैडर)

ताक़त:
– महिला IAS अधिकारी होने का फायदा — सरकार संतुलन और महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने का संदेश दे सकती है।
– वित्त और विकास से जुड़े विभागों में कार्य करने का अनुभव।
– लंबे कार्यकाल तक स्थिरता दे सकती हैं।

कमज़ोरियां/चुनौतियां
– मुख्य सचिव पद के लिए महिला नाम पहली बार होगा, इसलिए प्रशासनिक व्यवस्था और परंपरागत हलकों में अतिरिक्त परीक्षण का दबाव रहेगा।
– राजनीतिक समीकरणों में यह चयन हर समूह को सहज न कर पाए।

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