40 करोड़ का घटिया जिंक सल्फेट खरीदा, कार्रवाई की फाइल कर दी गायब
कृषि विभाग में सामने आया किसानों के लिए खरीदी गई जिंक सल्फेट खाद में बड़ा गड़बड़झाला, सूचना आयोग ने डीएम को जांच के लिए कहा
Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड के कृषि विभाग में किसानों के लिए खरीदी गई जिंक सल्फेट खाद में बड़ा गड़बड़झाला सामने आ रहा है। जिस कंपनी के जिंक सल्फेट के सैंपल मानकों पर खरे नहीं उतरे, उस पर कार्रवाई करने की जगह दोबारा की खरीद भी उसी कंपनी से कर दी गई। साथ ही कंपनी पर कार्रवाई की फाइल भी गायब है। इस तरह अमानक (घटिया) जिंक सल्फेट की खरीद में 40 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। इस खाद की 80 प्रतिशत आपूर्ति हरिद्वार व ऊधम सिंह नगर जिले में की गई। सूचना आयोग में यह प्रकरण उजागर होने के बाद राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने हरिद्वार के जिलाधिकारी को जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है।
कृषि विभाग में घटिया जिंक सल्फेट की खरीद का खुलासा सूचना का अधिकार अधिनयम के तहत सूचना आयोग में दाखिल की गई एक अपील के माध्यम से किया गया। जिस पर राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट सुनवाई कर रहे हैं। आयोग के आदेश के मुताबिक कृषि विभाग ने जिंक सल्फेट की खरीद के लिए इंदौर (मध्य प्रदेश) की एडवांस क्रॉप केयर (इंडिया) प्रा.लि. कंपनी को सूचीबद्ध किया था। कंपनी से वर्ष 2019-20 में जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत 170.4 टन व जिंक सल्फेट 33 प्रतिशत 468.95 की खरीद की। इसी तरह वर्ष 2020-21 में जिंक सल्फेट 33 प्रतिशत 788.1 टन की खरीद विभिन्न जिलों के लिए की गई। जिंक सल्फेट की दोनों खरीद में 40 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
जिंक सल्फेट की शुरुआती खरीद में गुणवत्ता को लेकर शिकायत दर्ज कराई गई थी। जिसके क्रम में 07 फरवरी 2020 को उपजिलाधिकारी/ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रुड़की ने औचक निरीक्षण करते हुए खाद के पैकेट सील किए थे। इन्हें जांच के लिए निदेशक, केंद्रीय उर्वरक गुण नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान फरीदाबाद को भेजा गया। यहां से उपजिलाधिकारी को रिपोर्ट 03 मार्च 2020 को भेजी गई। जिसमें खाद के सैंपल अमानक करार दिए गए।
सूचना आयोग में यह बात भी सामने आई कि सैंपल की रिपोर्ट को उपजिलाधिकारी कार्यालय ने करीब दो साल बाद 15 जनवरी 2022 को मुख्य कृषि अधिकारी को संस्तुति के साथ भेजी थी। जबकि मुख्य कृषि अधिकारी कार्यालय का कहना है कि रिपोर्ट उन्हें प्राप्त ही नहीं हुई है। इसे गंभीर मानते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कहा कि इस प्रकरण में जांच पर कार्रवाई की पत्रावली को जानबूझकर गायब किए जाने की आशंका नजर आती है। संभवतः यह हेराफेरी कर भ्रष्टाचार को दबाने के लिए किया गया है। साथ ही यह प्रश्न भी उठा कि वर्ष 2020 से 2022 के बीच सैंपल की रिपोर्ट पर क्या किया गया और रिपोर्ट कहां डंप रही।
जिंक सल्फेट के घटिया पाए जाने पर क्यों की गई खरीद
सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की सुनवाई में यह बात भी उठी कि जब वर्ष 2019-20 की खेप में गुणवत्ता सही नहीं पाई गई, तो फिर वर्ष 2020-21 में दोबारा उसी कंपनी से जिंक सल्फेट क्यों खरीदा गया। इस पूरे प्रकरण में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट रुड़की और मुख्य कृषि अधिकारी हरिद्वार दोनों ही कार्यालयों की भूमका संदिग्ध है। लिहाजा, इस पूरे प्रकरण से पर्दा उठाया जाना जरूरी है।
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने अपने आदेश में कहा कि विषय राज्य के सरकारी विभागों की कार्य संस्कृति/जवाबदेही एवं जिम्मेदारी से जुड़ा होने के कारण वृहद लोक हित का भी है। अतः विषय की गंभीरता को देखते हुए सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 18 में निहित प्राविधानों के अंतर्गत जिलाधिकारी हरिद्वार को प्रश्नगत प्रकरण की जांच हेतु निर्देशित किया जाता है। जिलाधिकारी हरिद्वार प्रकरण के तथ्यों से अवगत होते हुए जांच में यह स्पष्ट कराएंगे कि उप जिलाधिकारी द्वारा दिनांक 07.02.2020 को जांच हेतु भेजे गए जिंक सल्फेट के नमूनों की रिपोर्ट संबंधी पत्रावली किस स्तर से गायब हुई। जिलाधिकारी हरिद्वार से यह भी स्पष्ट किए जाने की अपेक्षा की जाती है कि प्राप्त रिपोर्ट कार्यवाही के लिए नियमानुसार संबंधितों को प्रेषित की गई है या नहीं।