दून के विज्ञानी ने चांद पर बताई पानी की उपलब्धता, अब सामने आएगी नई कहानी
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से उत्साहित हैं विज्ञानी, दून के विज्ञानी प्रकाश चौहान ने चंद्रयान-2 में पहली बार बताई थी पानी की उपलब्धता कितनी, चौहान तब आइआइआरएस में थे निदेशक, अब इसरो के एनआरएससी के हैं निदेशक
Round The Watch: चंद्रयान-3 मिशन की सफल लैंडिंग के साथ ही उन अनुसंधान के पूरा होने की उम्मीद बढ़ गई है, जो हमारे विज्ञानियों के साथ पूरे देश ने चंद्रयान-1 व चंद्रयान-2 के मिशन के दौरान की थी। चंद्रयान-2 मिशन के दौरान आर्बिटर की ओर से भेजे गए आंकड़ों के विश्लेषण में पहली बार चांद पर पानी की स्पष्ट उपलब्धता हमने पूरे विश्व को बताई थी। इसका श्रेय देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आइआइआरएस) के तत्कालीन निदेशक प्रकाश चौहान को जाता है। अब प्रकाश चौहान इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) हैदराबाद के निदेशक हैं।
वर्ष 2019 में लांच किए गए चंद्रयान मिशन में यान के लैंडर व रोवर चांद की सतह पर उतरते समय क्षतिग्रस्त हो गए थे। हालांकि, आर्बिटर चांद के ऊपर घूमता रहा और इसके इमेजिंग इंफ्रारेड स्पेक्टोमीटर से जो आंकड़े मिले, उनका विश्लेषण आइआइआरएस ने किया था। संस्थान के निदेशक प्रकाश चौहान ने ही बताया था कि चांद पर पानी के संकेत 29 डिग्री नार्थ से लेकर 62 डिग्री नार्थ के बीच मिले हैं। चंद्रयान-एक में पानी के संकेत मिले थे, लेकिन चंद्रयान-दो में प्रकाश चौहान और उनकी टीम ने उपलब्धता को स्पष्ट करते हुए बताया था कि पानी 800 से 1000 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) पाया गया है।
अब चंद्रयान-3 के पूरी तरह सफल होने के बाद चांद पर खनिज पदार्थों की उपलब्धता के साथ ही आक्सीजन, हीलियम व वहां आने वाले चंद्रकंप आदि की दिशा में अहम जानकारी मिलने की उम्मीद है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट के मुताबिक चांद की सतह पर उभरे बड़े-बाड़े गड्ढों की हकीकत भी चंद्रयान-3 स्पष्ट कर पाएगा। यह भी पता चलेगा कि गड्ढे भीतरी कारणों से बने हैं या बाहर से आकर कोई चीज चांद से टकराई है। इससे वहां आने वाले चंद्रकंप (जैसे धरती के कंपन को भूकंप कहते हैं) को समझने में भी मदद मिलेगी।
संस्थान से कहीं अधिक यह देश और समाज की सफलता है
चंद्रयान-3 मिशन की लैंडिंग के दौरान आइआइआरएस के निदेशक राघवेंद्र सिंह संस्थान के छात्रों और कार्मिकों के साथ इस पल के साक्षी बने। उन्होंने कहा कि मिशन की सफलता एक संस्थान से कहीं अधिक देश और समाज की सफलता है। इससे पूरे वैज्ञानिक जगत को बेहतर काम करने में प्रोत्साहन मिलेगा। अब इसरो व इससे संबंधित सभी संस्थान आगामी आदित्य, वीनस और गगनयान मिशन में और जोश के साथ काम करेंगे।
यूसैक ने बताया गौरवमयी क्षण
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के विज्ञानियों और कार्मिकों ने चंद्रयान की सफल लैंडिंग पर टीम इसरो को बधाई दी। केंद्र की निदेशक नितिका खंडेलवाल ने कहा कि भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव में पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। इसके माध्यम से अब चांद में मानव के बसने से लेकर तमाम खनिजों की उपलब्धता आदि पर भी तस्वीर साफ हो पाएगी।
परिवार भूलकर लैब में डटे रहे इसरो के वैज्ञानिक, प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट ने साझा किए इसरो लैब में भ्रमण के अनुभव
कोई भी अंतरिक्ष मिशन आसान नहीं होता और ऐसे जटिल मिशन त्याग भी मांगते हैं। चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के पीछे इसरो के तमाम विज्ञानियों के निजी जीवन के त्याग को भूला नहीं जा सकता। विज्ञानियों ने किस तरह दिन-रात मेहनत कर मिशन को सफल बनाया, इसके अनुभव यूसैक के पूर्व निदेशक व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट ने साझा किए।
प्रो. बिष्ट के मुताबिक उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक के रूप में बीते वर्ष इसरो की प्रयोगशालाओं के भ्रमण के अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने लैब में काम कर रहीं कुछ महिला विज्ञानियों से भी बात की। वह बेहद संवेदनशील और उच्च एहतियात वाले माहौल में विशेष परिधान में काम कर रहीं थीं। उन्होंने बताया कि लैब में काम करते हुए कब रात हो जाती है, उन्हें एहसास ही नहीं हो पाता। बच्चों को खबर नहीं होती है कि मां कब काम से वापस लौटीं और कब दोबारा काम पर चली गईं। अथक मेहनत और निजी जीवन के त्याग का यह दौर इसरो की लैब में अनवरत रूप से महीनों तक जारी रहता है। बुधवार को चंद्रयान-3 के सफल होने पर प्रो. बिष्ट ने कहा कि विज्ञानियों का त्याग और देश के प्रति समर्पण ही मिशन को इस मुकाम पर ला पाया है।