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नवधान्य में मिलेट्स महोत्स्व: 30 सालों से जिन मिलेट्स को बचाया, उसका विश्व मना रहा उत्सव

नवधान्य फार्म पर एक दिवसीय “मिलेट्स महोत्सव” संपन्न, देश और विदेश के किसानों ने की भागीदारी

Usha Gairola, Dehradun: जिन मिलेट्स (मोटा अनाज) को बचाने की लड़ाई नवधान्य 30 साल से लड़ रहा है, उनकी अहमियत पर अब पूरा विश्व उत्सव मना रहा है। इसे प्रयास की सफलता के रूप में देखते हुए नवधान्य जैवविविधता फार्म पर एक दिवसीय “ मिलेट्स महोत्सव” का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में उत्तराखंड के टिहरी, रुद्रप्रयाग एवं देहरादून जनपदों के साथ मध्यप्रदेश के निवाड़ी के किसान और विदेश के कुल 70 किसानों ने प्रतिभाग किया।

नवधान्य में आयोजित मिलेट्स महोत्सव को संबोधित करतीं संस्थापक निदेशक डॉ वंदना शिवा।

इस अवसर पर नवधान्य की फाउंडर डायरेक्टर डॉ वंदना शिवा ने कहा, ‘’ हमें प्रसन्नता है कि विगत 30 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद हमारे किसानों द्वारा बचायी जा रही मिलेट्स की फसलों को देश-दुनिया में फिर से पहचान मिली है। हमारे देश में इन फसलों को उगाना और खाना एक अनिवार्यता सा बन गया है।

उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि जहां हमारे मध्य कुपोषण के साथ ही मधुमेह एवं ह्रदय रोग जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं, ऐसे में ये भूले-बिसरे अनाज हमें पोषकता देने वाले और हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि बाजरे में चावल की तुलना में 07 गुना कैल्सियम, झंगोरा में चावल की तुलना में 09 गुना अधिक खनिज होते हैं। चावल और गेहूं की तुलना करें तो मिलेट्स में कई गुना पोषक तत्व मिलते हैं। ये अनाज पोषक तत्वों के अच्छे विकल्प हैं।


नवधान्य में आयोजित मिलेट्स महोत्स्व के दौरान ग्रुप पोज देते प्रतिभागी।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी आंचल में आयरन से भरपूर कोदो (कोदा) एवं झंगोरा की फसलें हमारे भोजन के मुख्य अंग थे। सफ़ेद गेहूं के आने के बाद एनीमिया यहां की आम बीमारी हो गई है। उसी तरह से सत्तू मैदानी क्षेत्रों में गरीबों का पोष्टिक आहार था। डॉ शिवा ने बताया कि मिलेट्स की फसलें उगाने में चावल की अपेक्षा बहुत कम पानी 250 मिमी/2500 मिमी लगता है। इस तरह से मिलेट्स की फसलें जल संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

 

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