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गुप्ता बंधु को नहीं मिली जमानत, काम नहीं आई साहनी से लंबे समय से बात न करने की दलील

अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तृतीय की कोर्ट ने खारिज की अजय गुप्ता और अनिल गुप्ता की जमानत अर्जी

Amit Bhatt, Dehradun: देहरादून के नामी बिल्डर सतेंद्र साहनी की आत्महत्या के मामले में जेल भेजे गए गुप्ता बंधु अजय गुप्ता और अनिल गुप्ता की जमानत अर्जी खारिज कर दी गई है। अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तृतीय साहिस्ता बानो की कोर्ट ने अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद जमानत अर्जी को निरस्त किए जाने का आदेश पारित किया। इस दौरान बचाव पक्ष ने मृतक सतेंद्र साहनी से लंबे समय से बातचीत न करने का कथन किया था। जिससे कोर्ट सहमत नहीं हुई।

बिल्डर सतेंद्र साहनी की आत्महत्या के मामले में अजय गुप्ता और अनिल गुप्ता को 24 मई को गिरफ्तार कर 25 मई को कोर्ट के समक्ष पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया था। मामले में अजय और अनिल गुप्ता ने प्रथम जमानत प्रार्थना पत्र कोर्ट में दाखिल किया था। जिस पर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तृतीय साहिस्ता बानो की कोर्ट में सोमवार को सुनवाई की गई।

बचाव पक्ष के अधिवक्ता अतुल सिंह पुंडीर, अभिमांशु ध्यानी और एसके धर ने दलील रखते हुए कहा कि बिल्डर सतेंद्र साहनी की आत्महत्या के मामले में पैसे हड़पने के एकमात्र उद्देश्य से यह मुकदमा दर्ज कराया गया है। मृतक ने अपने कथित सुसाइड नोट में स्वयं इस तथ्य का उल्लेख किया है कि प्रार्थी/अभियुक्त लंबे समय से उनसे बात नहीं कर रहे थे। ऐसे में ब्लैकमेल और आत्महत्या के लिए उकसाने का सवाल नहीं उठता है।

दूसरी तरफ अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करते हुए सहायक अभियोजन अधिकारी जावेद, योगेश सेठी और विवेक गुप्ता ने थाना राजपुर से प्राप्त आख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि आरोपियों ने मृतक सतेंद्र साहनी को आत्महत्या के लिए उकसाया है। आत्महत्या से पहले साहनी ने आरोपियों के विरुद्ध 10 मई 2024 को डराने धमकाने का एक प्रार्थना पत्र भी पुलिस को दिया था।

अभियोजन पक्ष ने यह भी कहा कि आरोपियों ने मृतक साहनी को परेशान करने की मंशा से उनके विरुद्ध एक शिकायती पत्र सहारनपुर पुलिस को दिया था। जिस कारण बिल्डर सतेंद्र साहनी ने आत्महत्या की है। इसलिए जमानती प्रार्थना पत्र अस्वीकार किए जाने योग्य है। लिहाजा, जमानत प्रार्थना पत्र का घोर विरोध किया जाता है।

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि बचाव पक्ष ने सुसाइड नोट के आधार पर लंबे समय से बात न किए जाने को आधार बनाया है। न्यायालय का मत है कि प्रकरण विवेचना के अधीन है। जिसमें अभी साक्ष्य एकत्रित होने हैं और ऐसे में आरोपियों की ओर से किए गए कथनों पर साक्ष्य आने के बाद विचार किया जाएगा। तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आरोपियों को इस स्तर पर जमानत दिए जाने का पर्याप्त आधार नहीं है।

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