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रतन टाटा ने दून से किया था भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार, बताया कैसे टूट गया था उनका सपना

देश के रतन ने 86 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस, देहरादून में बोले गए उनके बोल हो गए अमर

Amit Bhatt, Dehradun: देश के सबसे बड़े बिजनेस टाइकून रतन टाटा हमेशा के लिए अमर हो गए हैं। ऐसी शख्सियत मर कर भी आदर्शों में जिंदा रहेगी और आने वाली पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि भरोसा ही वह चीज है, जिसके बूते यह पूरी कायनात खड़ी है। जब भी बात रतन टाटा के बोए गए आदर्शों की होगी तो उसमें उत्तराखंड की राजधानी देहरादून भी अपनी गवाही देगा। आज से करीब 24 साल पहले जब रतन टाटा देहरादून आए थे तो उन्होंने देवभूमि से भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया था। उन्होंने यह भी बताया था कि कैसे भ्रष्टाचार ने उनका सपना चकनाचूर कर दिया था। वह टाटा ही थे, जिन्होंने अपने सपने की पोटली बंद करनी अधिक उचित समझी, लेकिन भ्रष्टाचार के आगे झुकना गवारा नहीं समझा।

वर्ष 2010 में उत्तराखंड स्थापना दिवस समारोह के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के साथ रतन टाटा। (फाइल फोटो)

रतन टाटा वर्ष 2010 में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस में शरीक होने राजधानी देहरादून पहुंचे थे। तब प्रदेश के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक थे। राज्य स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए रतन टाटा ने दो टूक कहा था कि बिजनेस में नैतिकता के मूल्य का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। दरअसल, टाटा ने ’21वीं सदी में भारत की चुनौतियां और अवसर’ विषय पर व्याख्यान दिया था।

उन्होंने भ्रष्टाचार को उभरते भारत की सबसे बड़ी समस्या करार देते हुए कहा था कि यहां लोग लाभ के लिए रिश्वत लेने और देने से परहेज नहीं करते हैं। तब उन्होंने अपना उदाहरण रखते हुए कहा था कि कैसे 15 करोड़ रुपये न देने से उनका सपना टूट गया था। यह सपना था टाटा ग्रुप का विमान सेवा में प्रवेश करने का। टाटा समूह ने घरेलू विमान सेवा में उतरने के लिए सिंगापुर एयरलाइंस के सहयोग से विस्तृत कार्ययोजना भी तैयार की थी।

टाटा ग्रुप के प्रस्ताव को पास करने के लिए 15 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी गई थी। रतन टाटा ने अपने कारोबारी मूल्यों का हवाला देते हुए रिश्वत देने से इन्कार कर दिया था। नतीजा उनका प्रस्ताव पास नहीं हो पाया और टाटा ने भी इस ख्वाब को दिल के किसी कोने में दफ्न कर लिया था। देहरादून से रतन टाटा ने आतंकवाद की बढ़ती समस्या और माओवाद जैसी देश की आंतरिक समस्या पर भी मुखरता के साथ विचार रखे थे।

रतन टाटा ने बुधवार 09 अक्टूबर की देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 86 वर्ष की उम्र में इस लोक से विदा ले ली। टाटा जितने दुनिया और भारत के लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे, उतना ही याद वह देहरादून और उत्तराखंड के लोगों को आएंगे। युवा पीढ़ी उनके सिद्धांतों से प्रेरित होती रहेगी, तो आने वाली पीढ़ी उनके स्थापित मानदंडों पर चलने को अग्रसर होगी।। अलविदा रतन टाटा।।

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