निजी सचिव के ‘हनी ट्रैप’ में फंसा आइएएस अफसर!
मुख्यमंत्री तक पहुंचे हनक वाले निजी सचिव के किस्से, कहना पड़ा यह अफसर सुबह 10 बजे ऑफिस में न दिखे

Amit Bhatt, Dehradun: अभी कुछ दिन पहले एक आइएएस अफसर की पत्नी मुख्यमंत्री से मिली और बोली कि सर, आपने मेरे पति को ऐसे कौन से विभाग दिए हैं कि उन्हें घर आने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है। वह सुबह घर से जल्दी निकल जाते हैं और देर रात तक घर पहुंचते हैं। मुख्यमंत्री यह सुनकर चौंक गए। खैर, उन्होंने बात को संभालते हुए कहा कि देखता हूं और फिलहाल के लिए प्रकरण को टाल दिया। आखिर यह नौबत क्यों आई और क्या है सचिव की व्यस्तता के पीछे का राज? इसके करीब तक जाने के लिए पहले आइएएस अफसर और उनके निजी सचिव के बीच की मिस्ट्री बनी केमेस्ट्री को समझना जरूरी है।
सचिवालय और विधानसभा के गलियारों में इन दिनों एक निजी सचिव और आइएएस अधिकारी की जुगलबंदी के चर्चे खूब चटखारे लेकर सुनाए जा रहे हैं। निजी सचिव ने साहब को जाने क्या घुट्टी पिलाई कि साहब की तरफ से माल वाली सारी फाइलों पर डीलिंग निजी सचिव ही करते हैं। साहब इनके मोहपाश में ऐसे गहरे तक फंसे हैं कि उन्होंने अपने नितांत व्यक्तिगत और संवेदनशील डीएससी (डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट) के अधिकार को भी निजी सचिव की सुपुर्दगी में दे दिया।
ऑफिस के बाद की फाइलें भी साहब की तरफ से निजी सचिव ही निपटाते रहते हैं। साहब के पास जनता से जुड़े अहम महकमे हैं। यहां की ट्रांसफर पोस्टिंग की तमाम फाइलों के लिए विभाग साहब के प्यादे के आगे नतमस्तक रहते हैं। निजी सचिव की हनक और ठनक है ही कुछ ऐसी। आलम यह है कि विभाग से संबंधित राय देने वाली फाइलों में भी साहब की तरफ से यही निजी सचिव खुलकर ‘डिमांड’ कर देता है।
विभाग में इसके फैलाए भ्रष्टाचार और मनमानी से तंग आकर कई बार इसकी शिकायत की गई, मगर सचिव साहब कुछ सुनने की स्थिति में नहीं रहते। हद तो तब हो गई, जब विभाग के अधिकारियों की एसीपी (एश्योर्ड करियर प्रोगेशन) की फाइल निजी सचिव ने महीनों तक अपने पास दबाए रखी। जब पूरे विभाग ने हड़ताल की धमकी दी, तब जाकर फाइल मंत्री के पास पहुंचाई गई।
सचिवालय में सहकर्मी हों या उच्चाधिकारी, कोई किसी काम को निजी सचिव से कह दे तो यह बेशर्मी से डिमांड रखने से भी पीछे नहीं हटते हैं। किसी से बुलेट, किसी से महंगी घड़ी, विदेश टूर तक की डिमांड की जाती है। सचिवालय में ऊंचे पद पर बैठे एक अधिकारी ने अपने रिश्तेदार के ट्रांसफर की बात की तो निजी सचिव ने झट से 07 लाख की डिमांड कर डाली। अफसर ने इसे बहुत ज्यादा बताया तो इन्होने टका सा जवाब दे दिया। बोले कि मेरे पास तो 30 हजार ही बचेंगे। बाकी साहब को चले जाएंगे। साहब की तरफ से बेशर्मी से पैसे मांगने के इनके तमाम किस्से सुने जा सकते हैं।
साहब जब जिले में ऊंची कुर्सी पर थे, तब भी यही निजी सचिव शस्त्र लाइसेंस से लेकर अन्य माल वाली फाइलों को निपटाते थे। हालांकि, इन निजी सचिव को बिगाड़ने का श्रेय मौजूदा साहब को नहीं जाता है। यह तो जाने कैसे इनके ट्रैप में फंस गए। पूर्व में गृह विभाग में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ही इनके हुनर के असली जन्मदाता हैं। तब पुलिस महकमे में ट्रांसफर, पोस्टिंग का काम इसी निजी सचिव के प्रबंधन में किया जाता था। तभी से इस निजी सचिव को शह प्राप्त है। उस दौर में यह मातहत आइपीएस और पीपीएस जैसे अधिकारियों से डीटीएच रीचार्ज करवाने जैसे तुच्छ कार्यों में भी संकोच नहीं करते थे। साहब तो गृह विभाग से विदा हो गए, लेकिन इनके मुख पर खून लगा गए।
निजी सचिव की मनमानी से तंग आकर संघ के एक प्रभावशाली पदाधिकारी ने करीब 03 माह पहले मंत्री जी से शिकायत कर दी। तब मंत्री ने तत्काल इस निजी सचिव को हटाने के निर्देश दे डाले थे, पर इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। यह देख संघ के पदाधिकारी सीधे मुख्यमंत्री के पास पहुंचे और विभाग में फैले भ्रष्टाचार, मनमानी, सचिव और निजी सचिव के किस्से तफ्सील के साथ बयां किए।
स्थिति को गंभीर पाते हुए मुख्यमंत्री ने रात को ही सचिव को फोन घुमाया और कहा कि सुबह 10 बजे तक यह अधिकारी आपके विभाग में दिखना नहीं चाहिए। कायदे से आइएएस अफसर को इसे सचिवालय प्रशासन को सरेंडर कर देना चाहिए था। पर इसे साहब का प्रेम कहें या कोई छिपी हुई मजबूरी कि अगले ही दिन इस निजी सचिव की चिट्ठी आई, जिसमें लिखा था कि स्वास्थ्य कारणों से वह विभाग में अपनी सेवा देने में असमर्थ हैं।
इस तरह निजी सचिव को लंबी छुट्टी पर भेजकर साहब ने अपने प्यादे के कथित सम्मान की रक्षा भी कर ली। पूरे विभाग को लगा कि अब इस गठबंधन से निजात मिल जाएगी। लेकिन, मुख्यमंत्री के तेवर के बाद साहब को नया निजी सचिव तो मिल गया है, लेकिन उन्हें पुराने निजी सचिव ने 02 माह पैदल रखा। तमाम फाइलों को इसने घर बैठे ही निपटाया और जो माल मिला, उससे यह दुबई में एक हफ्ते का विशेष स्वास्थ्य लाभ भी ले आए।
अभी कुछ रोज पहले दुबई से रिटर्न होकर इन्होने सचिवालय में ज्वाइनिंग दी है। हो सकता है कि अब इन्हें किसी दूसरे सचिव के पल्ले कर दिया जाए, लेकिन प्रवृत्ति बदलेगी, इस पर संदेह है। वहां से भी फाइलों का पुराना किस्सा जारी रहने के पूरे आसार हैं। अब तो यह कहा जाने लगा है कि साहब को ही पैदल कर दिया जाए, तब कुछ हो सकता है। क्योंकि, साहब की घनिष्ठता कुछ ऐसी है कि वह निजी सचिव और उनके परिवार के साथ निजी टूर भी कर चुके हैं। इस टूर को सामान्य तो नहीं माना जा सकता। आखिर क्यों साहब अपने निजी सचिव के सपरिवार निजी टूर में शरीक होने को बाध्य हुए होंगे?
बताया जाता है कि निजी सचिव ने मोटा धन भी अर्जित किया है, जिसकी जांच जरूरी है। इस तरह की जानकारी भी सामने आई है कि भाजपा के किसी पदाधिकारी ने निजी सचिव की सचिवालय में शिकायत भी की है। जिसमें कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। दोनों के बीच के गठजोड़ को हनी ट्रैप बताया गया है। मांग उठाई गई है कि निजी सचिव की संपत्ति की जांच विजिलेंस, आयकर और ईडी जैसी एजेंसियों से कराई जाए। हम इन आरोपों की पुष्टि नहीं करते हैं, यदि जांच होती है तो उसमें कुछ स्पष्ट किया जा सकता है।