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पत्रकारिता की धार, सूचना के औजार से भ्रष्टाचार पर प्रहार

जब-जब देश के सबसे बड़े नागरिक कानून की धार कुंद हुई, तब-तब पत्रकारिता की पृष्ठभूमि से आए राज्य सूचना आयुक्तों ने उघाड़ी फाइलों में कैद भ्रष्टाचार की परतें

Rajkumar Dhiman, Dehradun: यूं तो सूचना आयोग में आयुक्तों के पदों पर एक सेट पैटर्न देखने को मिलता है। जिसमें सभी मुख्य सूचना आयुक्त पूर्व मुख्य सचिव बनाए गए हैं। राज्य सूचना आयुक्तों के अधिकतर पद भी पूर्व नौकरशाहों से ही भरे गए हैं। हालांकि, इस सबके बीच कुछ पत्रकारों को भी राज्य सूचना आयुक्त बनने का अवसर मिल सका। इस बार भी एक सक्रिय पत्रकार के रूप में दैनिक जागरण के उत्तराखंड के राज्य संपादक पद से रिटायर हुए कुशल कोठियाल (कुशलानंद कोठियाल) को राज्य सूचना आयुक्त की कुर्सी दी गई है। आयोग में इस समय तेज तर्रार पत्रकार रहे योगेश भट्ट भी सूचना आयुक्त हैं। इस तरह वर्तमान सूचना आयोग ऐसे दो सूचना आयुक्त से लैस हो चुका है, जिनकी रगों में पत्रकारिता का लहू दौड़ता है।

बेशक, मुख्य सूचना आयुक्त का सबसे बड़ा पद हाल में मुख्य सचिव पद से रिटायर हुईं राधा रतूड़ी को ही मिला है, लेकिन चर्चा का केंद्र बिंदु पत्रकारिता की पृष्ठभूमि वाले कुशल कोठियाल ही हैं। यह पद एक पत्रकार को इसलिए भी अधिक सुशोभित करता है, क्योंकि वह अपने करियर में सूचना छिपाने वाले अफसरों से लड़कर जनहित में उसे सार्वजनिक करने की जंग हर दिन लड़ता है।

अब तक जो भी पत्रकार राज्य सूचना आयुक्त रहे हैं या इस पद पर कार्य कर रहे हैं, उनके आदेशों में सूचना को जग जाहिर करने की जुर्रत साफ नजर आती है। अक्टूबर 2010 से अक्टूबर 2015 तक राज्य सूचना आयुक्त रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल ने अफसरों की उस धारणा पर करारी चोट की, जिसमें वह सूचना से बचने के लिए अभिलेख धारित न होने का बहाना बनाते थे। प्रभात डबराल ने इसे डेटा मैनेजमेंट से जोड़ा और कहा कि अफसरों को जनहित की जानकारी को सहेजने, उन्हें तैयार करने के लिए डेटा मैनेजमेंट की मूल भावना को समझना होगा।

लंबे समय तक सक्रिय पत्रकार रहे योगेश भट्ट ने जब दिसंबर 2022 में राज्य सूचना आयुक्त के रूप में उत्तराखंड सूचना आयोग की कमान संभाली, तब सूचना आयोग अपने सर्वाधिक उदासीन दौर से गुजर रहा था। राज्य के पहले मुख्य सूचना आयुक्त डॉ आरएस टोलिया ने सूचना मांगने के पीछे की मंशा को भी पूरा करने पर बल दिया था। उनके कुछ वर्ष बाद तक भी यह प्रवृत्ति जिंदा रही, लेकिन बाद में आयुक्तों ने इस मूलमंत्र को सिरे से दरकिनार कर दिया।

खैर, पत्रकारिता की पृष्ठभूमि से निकले योगेश भट्ट ने यहां भी अपनी कलम की धार जारी रखी और कुंद पड़ चुके आयोग के दांतों और नाखून को नई धार दी। उनके कई आदेश इस बात का प्रमाण हैं कि कैसे उन्होंने एक पत्रकार की भांति खबर के असर तक लिखते रहने की प्रवृत्ति को जिंदा रखा। सूचना आयुक्त के रूप में उनके आदेश का असर व्यापक रहता है और इससे निसंदेह सूचना मिलने के साथ उसके मांगने के पीछे की मंशा भी पूरी होती है।

अब वरिष्ठ पत्रकार कुशल कोठियाल की तरफ भी नागरिक और आरटीआई कार्यकर्ता बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। करीब 03 दशक से पत्रकारिता जगत में सक्रिय रहे कुशल कोठियाल ने एक रिपोर्टर से लेकर संपादक तक का सफर तय किया। इस अवधि में उन्होंने पत्रकारिता के मानदंडों को न सिर्फ जीवित रखा, बल्कि नए मानदंड भी स्थापित किए। सत्ता पक्ष से अधिक उन्होंने जनपक्ष को तवज्जो दी। वह सूचना मांगने की नीयत और मौजूदा समय में उसकी नियति को समझते हुए बेहतर आउटपुट देने में भी सक्षम नजर आते हैं।

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