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वीडियो: दून में लेस्बियन, गे और बाईसेक्सुअल की ये कैसी वॉक, जानिए ये क्यों खुद पर कर रहे गर्व

राजधानी दून में एलजीबीटी समूह ने निकाली प्राइड वॉक, इन्हें अलग नहीं, बल्कि लैंगिक अल्पसंख्यक के रूप में देखने की जरूरत

Amit Bhatt, Dehradun: दुनिया और भारत के लिए एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) शब्द अब नया नहीं रहा। खासकर तब जब 06 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ‘नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत’ मामले में इन्हें समान नागरिकता और पूर्ण संवैधानिक सुरक्षा का हकदार मान चुका है। हालांकि, उत्तराखंड राज्य और इसके देहरादून जैसे शहरों में अभी भी एलजीबीटी समूह के व्यक्तियों को अलग निगाह से देखा जाता है। बावजूद इसके इस समूह के लोग अपने लैंगिक अल्पसंख्यक होने पर गर्व महसूस करते हैं और इसी को जताने के लिए ये देशभर के प्रमुख शहरों में प्राइड वॉक का आयोजन करते हैं। देहरादून में भी इस रविवार को एलजीबीटी समूह ने ‘द वॉइस ऑफ वारियर्स’ नाम से देहरादून प्राइड वॉक 2025 का आयोजन किया।

प्राइड वॉक देहरादून के परेड ग्राउंड से निकाली गई। इस दौरान एलजीबीटी समूह ने अपने प्रति बराबरी की निगाह की मांग की। उन्होंने खुद के उस रूप पर गर्व किया, जैसे वह हैं और जिस रूप में प्रकृति ने उन्हें चुना है। वैसे भी किसी व्यक्ति का लिंग आकर्षण उसके हाथ में नहीं होता है। यह कोई विकार नहीं है, बल्कि उन हार्मोंस पर निर्भर करता है, जो उनके शरीर और उनके चुनाव को निर्धारित करता है। खासकर यह उन व्यक्तियों के लिए अहम होता है, जिन्हें प्रकृति ने पुरुष या स्त्री बनाया है, लेकिन वह सामान्यतः बहुआबादी की तरह हेट्रोसेक्सुअल (विपरीत लिंग आकर्षण) होने की जगह समान लिंग (लेस्बियन/गे) या उभयलिंगी (दोनों लिंग के प्रति आकर्षण) हो जाते हैं।

ऐसा होना उनकी इच्छा पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि यह सब उनके साथ प्रकृति ने तय किया है। इस लिहाज से इन्हें एलजीबीटी कहने से अधिक लैंगिक अल्पसंख्यक कहना अधिक उचित होगा। अधिकतर एलजीबीटी पढ़े-लिखे हैं और वह भी इस बात को समझते हैं। बस वह लैंगिक रूप से बहुसंख्य आबादी का समर्थन और उनकी संवेदना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उन्हें उसी रूप में स्वीकार किया जाए, जिस रूप में प्रकृति ने उन्हें बनाया है। भले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस समुदाय के व्यक्तियों को आपस में विवाह की मान्यता नहीं दी है, लेकिन इन्हें समान नागरिकता और संवैधानिक सुरक्षा प्रदान कर दी है।

समाज में इसी अधिकार को कानूनी रूप में नहीं, बल्कि सहज रूप में प्राप्त करने के लिए एलजीबीटी समुदाय हर साल प्राइड वॉक का आयोजन करता है। इस बार भी एलजीबीटी समुदाय ने पूरे जोश के साथ दून में प्राइड वॉक का आयोजन किया और अपने प्रति समाज का नजरिया बदलने की वकालत की। इस वॉक में देहरादून के साथ ही देश के विभिन्न क्षेत्रों से एलजीबीटी समुदाय के लोग जुटे। इस दौरान सभी ने अपने अस्तित्व को खुशी खुशी स्वीकार किया और नागरिकों के साथ ही सरकार का समर्थन मांगा।

एलजीबीटी अधिकारों पर सुप्रीम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने एलजीबीटी-क्यू समुदाय को बराबरी का दर्जा देने के लिए अहम फैसले लिए हैं। जिनमें समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करना और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता देना शामिल है। हालांकि, समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर अदालत ने मुहर नहीं लगाई है।

एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश
धारा 377 पर निर्णय
वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को निरस्त करते हुए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। इस फैसले से एलजीबीटी-क्यू समुदाय के सदस्यों को सम्मान और स्वतंत्रता का अधिकार मिल सका।

NALSA का मामला
वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने NALSA मामले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को उनकी पहचान और अधिकारों को मान्यता दी थी। इस फैसले से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भेदभाव से सुरक्षा मिली और उन्हें समाज में एक समान नागरिक के रूप में मान्यता भी मिली।

समलैंगिक विवाह पर अहम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को वैध करने से इनकार कर दिया, लेकिन इस समुदाय के अधिकारों को मान्यता दी। उस समय के हालिया फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया और इस पर निर्णय लेने का अधिकार विधायिका को दे दिया।

यह हुआ असर
सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से एलजीबीटी-क्यू समुदाय के अधिकारों को बढ़ावा मिला है। हालांकि, इस समुदाय के लिए अभी भी कई चुनौतियां हैं। जैसे कि समाज में भेदभाव, हिंसा और कानूनी असुविधाएं। इन्हीं अधिकारों को सहज रूप से प्राप्त करने के लिए एलजीबीटी समुदाय संघर्षरत हैं।

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