Uttarakhandआपदा प्रबंधन

पत्रकारों को उत्तरकाशी में थमाया गया लॉलीपॉप, आपदा में ताकते रहे हेलीकॉप्टर

हेलीकॉप्टर नहीं तो कम से कम धराली तक जाने की कामचलाऊ व्यवस्था ही देने की थी जरूरत

Rajkumar Dhiman, Uttarakhand: धराली (उत्तरकाशी) की आपदा की कवरेज के लिए देशभर से आए पत्रकारों को उत्तरकाशी में खूब लॉलीपॉप थमाया गया। ग्राउंड जीरो धराली तक पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर व्यवस्था के नाम पर पत्रकारों को घंटों तक हेलीपैड पर बैठाया गया। फिर मौसम खराब होने की बात कहकर बैरंग लौटा दिया जाता रहा। बेचारे पत्रकार ग्राउंड जीरो से तो गए, असल खबर से भी दूर कर दिए गए।

पत्रकार प्रशासनिक तंत्र का लॉलीपॉप चूसते रहें, इसके लिए बाकायदा उनके नाम की सूची भी बनाई गई। बताया गया कि जिनके नाम सूची में हैं, उन्हें मातली हेलीपैड से ग्राउंड जीरो के लिए भेजा जाएगा। चूंकि, उत्तरकाशी से गंगनानी तक का राजमार्ग खतरों से भरा था, गंगनानी में लिमचा गाड़ पुल ध्वस्त हो गया था। इसके बाद भी डबराणी, सोनगाड़ में हाइवे बुरी तरह तबाह थे तो पत्रकारों ने समझा कि सरकारी मशीनरी उनकी पीड़ा समझती है।

पूरे दो दिन पत्रकारों की खेप मातली में सुबह से डटी रही। सुबह से पुलिस के स्थानीय अधिकारी पूरी गंभीरता के साथ यह जताने की कोशिश करते रहे कि उन्हें कभी भी रवाना किया जा सकता है। सुबह से शाम तक यस बॉस करने वाले पुलिस के अधिकारी इस काम में सबसे अधिक निपुण भी होते हैं। लिहाजा, उन्होंने पत्रकारों को बखूबी पूरे दिन हेलीपैड पर उलझाए रखा।

हालांकि, इस बीच कुछ जुनूनी पत्रकार पैदल ही जलप्रलय का शिकार हुए धराली क्षेत्र के लिए निकल पड़े थे। जब स्थानीय प्रशासन और उनके ऊपर बैठे अफसरों को इस बात का पता चला तो ऐसे जुनूनी पत्रकारों की राह में गंगनानी में बेड़ियां डालनी शुरू कर दी गईं।

गंगनानी बाजार से लिमचा गाड़ के ध्वस्त पुल तक के करीब 04 किलोमीटर सफर की तरफ पत्रकारों को बेवजह पैदल ही दौड़ाया गया। गंगनानी बाजार में बैरियर लगाकर खुद पुलिस ने पत्रकारों को बरगलाया कि आगे जाम लग रहा है। वाहन यहीं खड़े करने होंगे। यहां तक कि जिनके पास ड्राइवर थे, उन्हें भी लिमचा गाड़ के पास तक जाने की अनुमति नहीं दी गई। जबकि, पत्रकारों को छोड़कर ड्राइवर को तो वापस ही आना था। कहा गया कि, आगे वाहन मोड़ने की जगह भी नहीं है

खैर, जुनूनी पत्रकार पैदल ही चल पड़े और गंगनानी के ध्वस्त पुल तक का सफर भी पैदल तय किया। इसके बाद डबराणी, सोनगाड़, हर्षिल और मुखवा होते हुए धराली भी पहुंच गए। ऐसे पत्रकारों ने धराली में ग्राउंड जीरो की जमकर रिपोर्टिंग की। जब पत्रकार खुद ही खोजबीन कर लापता लोगों के आंकड़े जुटाने लगे तो अचानक 06 दिन बाद कुछ आंकड़े जारी कर दिए गए। नहीं तो रोजाना टालमटोल किया जा रहा था।

फिर, जब ये पत्रकार वापस उत्तरकाशी और इससे आगे अपने गंतव्य की तरफ लौटने लगे तो अचानक स्थानीय पुलिस के अधिकारी और कार्मिक फिर से पत्रकारों के हिमायती बन गए। सूचना फैला दी गई कि पत्रकारों को मंगलवार को हेलीकॉप्टर से मातली या चिन्यालीसौड़ तक पहुंचाया जाएगा।

फिर क्या था, हेलीपैड पर सुबह से ही पत्रकारों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया। यहां पर पत्रकारों को उलझाए रखने के लिए सेना के चुनिंदा अफसरों के साथ यस बॉस करने वाले एक विशेष पुलिस कार्मिक को भी लगा दिया गया।

तीन बार पत्रकारों की गिनती कराकर इस तरह का माहौल बनाया गया कि वह गंभीरता से कार्रवाई कर रहे हैं। पुलिस के इंस्पेक्टर रैंक के एक कार्मिक पूरे आत्मविश्वास के साथ यह कह रहे थे कि सेना का एमआई 17 हेलीकॉप्टर एक-साथ 25 पत्रकारों को ले जाएगा।

उस समय पत्रकारों की संख्या हेलीकॉप्टर की अधिकतम क्षमता से कम 23 निकली तो सभी के चेहरे खिल गए। पत्रकारों को लगा कि अब उन्हें सोनगाड़ और डबराणी का दुर्गम सफर तय नहीं करना पड़ेगा। लिहाजा, सभी कुर्सी जमाकर इंतजार करने लगे

इसके बाद दो बार सेना का हेलीकॉप्टर आया, मगर तय वादे के अनुसार पत्रकारों को रवाना नहीं किया गया। अचानक, पुलिस के इंस्पेक्टर रैंक के प्रबंधक स्वभाव के कार्मिक ने कुछ पत्रकारों को भीड़ से अलग किया।

जिसमें उनके परिचय के कुछ पत्रकारों के साथ राज्य के बाहर के 05-06 मीडिया कर्मी शामिल थे। हालांकि, जब पत्रकारों को बाहर निकालने की बारी आई तो स्थानीय पत्रकारों को नजरअंदाज कर वह राज्य से बाहर के पत्रकारों की तरफ लपके और उन्हें हेलीकॉप्टर से रवाना करा दिया।

इसके बाद जब पुलिस कार्मिक से गिला शिकवा किया गया तो उन्हें अचानक भूख भी लग गई और वह बगोरी/हर्षिल हेलीपैड से खिसक लिए। जाते-जाते इतनी बाध्यता भी जता गए कि वेदर इश्यू (मौसम की अड़चन) हो गया है।

इन सबके बीच मजे की बात देखिए कि पत्रकारों को हेलीकॉप्टर से बाहर निकालने के लिए जिन चुनिंदा पुलिस कार्मिकों को आगे किया गया था, वह बड़ी आसानी से अपना काम कर गए। शायद उन्होंने लॉलीपॉप थमाने में निपुणता हासिल की है।

वरिष्ठ अफसर करते रहे इन्कार, किसने और क्यों दिया झांसा
पत्रकारों के लिए हेलीकॉप्टर की व्यवस्था पर सरकार के कुछ वरिष्ठ अफसर शुरू से इन्कार कर रहे थे। कारण जो भी थे, सही या गलत को भी छोड़ देते हैं, लेकिन बातें तो स्पष्ट थीं। कम से कम झुनझुना तो नहीं दिया। आईजी रैंक के वरिष्ठ अफसर ने भी अपने अधीनस्थ अधिकारी के माध्यम से असमर्थता जता दी थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि मातली हेलीपैड, हर्षिल आदि पर तैनात किए गए कार्मिक पत्रकारों को लॉलीपॉप थमाते रहे।

पत्रकारों को हेलीकॉप्टर नहीं सुगम व्यवस्था की थी दरकार
धराली पहुंचने के लिए पत्रकारों को हेलीकॉप्टर से कहीं अधिक सुगम व्यवस्था की जरूरत थी। क्योंकि, गंगनानी के पास लिमचा गाड़ पुल ध्वस्त था। पहले तो पत्रकारों को लिमचा गाड़ से एसडीआरएफ के सहयोग से नदी पार नहीं करवाई गई। मगर जब तीन दिन से गंगोत्री, हर्षिल, झाला आदि जगह फंसे लोग पैदल ही उत्तरकाशी के लिए चल पड़े तो एसडीआरएफ ने उन्हें गंगनानी की तरफ लाने के लिए लिमचा गाड़ में व्यवस्था बना दी।

कुछ पत्रकार भी इसी माध्यम से भी गंगनानी पार कर गए। क्योंकि तब तक बेली ब्रिज नहीं बना था। हालांकि इसके बाद पत्रकारों को वाहन से लिमचा गाड़ की तरफ बढ़ने ही नहीं दिया गया। ताकि वह शुरुआत में ही हतोत्साहित हो जाएं। होना क्या चाहिए था कि लिमचा गाड़ से लेकर डबराणी, सोनगाड़ में ध्वस्त हाइवे को पार कराने से लेकर इससे आगे हर्षिल और फिर मुखवा तक आवागमन के लिए वाहनों की व्यवस्था की जाती।

ताकि मुखवा से पत्रकार आसानी से धराली पहुंच सकते थे। इसी तरह वापसी के लिए भी यही व्यवस्था की जानी चाहिए थी। लेकिन, इसकी जगह कुछ अफसर पत्रकारों को हेलीपैड पर उलझाते नजर आए। शायद वह नहीं चाहते थे कि धराली के साथ ही वह पैदल यात्रा की दुश्वारियों को अपनी आंखों से देखें। पत्रकारों ने अपनी आंखों से जगह जगह पसरी तबाही देखी भी, लेकिन डबराणी में सड़क ध्वस्त होने पर उन्होंने जंगल की ऐसी राह पकड़ी, जो पल-पल मौत का डर दिखा रही थी। यहां सहयोग के लिए न तो रस्सियां थीं, न ही एसडीआरएफ आदि का कोई सपोर्ट।

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