पत्रकारों की जुर्रत और जब्जे के आगे धराली आपदा की चुनौती बौनी
शायद ही किसी अफसर को आपने धराली तक पहुंचने के लिए दुर्गम मार्गों की चुनौती से दो-दो हाथ करते देखा होगा, पत्रकारों ने यह बेधड़क किया

Rajkumar Dhiman, Dehradun: आपदा जैसे सबसे चुनौतीपूर्ण घटनाक्रमों में पत्रकारों की निगाह की जरूरत सभी को होती है। सरकार किस ढंग से और कितनी तत्परता से आपदा प्रभावितों का दर्द दूर कर रही है, इसे लाखों और करोड़ों लोगों तक पहुंचाने का एकमात्र व्यवस्थित माध्यम पत्रकार ही होते हैं। दूसरी तरफ आपदा पीड़ितों की आवाज प्रखर रूप से सरकार तक पहुंचाने के लिए भी पत्रकार ही सबसे उपयुक्त जरिया होते हैं। सरकार और पीड़ितों के बीच राहत की हर कड़ी ढंग से काम करे, इस पर सबसे पैनी नजर भी पत्रकारों की होती है। लेकिन, आपदा की स्थिति में इस माध्यम को बेहतर ढंग से संचालित करने के लिए पत्रकारों को जीवन और मौत जैसे हालात से भी जूझना पड़ता है।
उत्तरकाशी की धराली आपदा में भी कुछ ऐसा ही हुआ। ग्राउंड जीरो तक पहुंचने के लिए पत्रकारों ने चुनौतियों से सीधे दो-दो हाथ किए। पत्रकारों की इस जुर्रत और जब्जे के आगे कदम-कदम पर पसरी आपदा की चुनौतियां बौनी नजर आईं। शायद ही आपने आपदाग्रस्त क्षेत्र धराली तक पहुंचने के लिए किसी अफसर को नदी में समा चुके मार्गों और जंगल की खड़ी दुरूह राह पर जान हथेली पर रखते हुए देखा होगा। हमें यह बताते हुए खुशी और गर्व दोनों है कि अभाव में जीने वाले हमारे पत्रकारों ने बिना झिझक के यह सब किया।
धराली आपदा की कवरेज के लिए देश के प्रमुख समाचार पत्रों से लेकर टीवी चैनल और यहां तक कि हमारे स्थानीय डिजिटल मीडिया के साथियों ने देहरादून से उत्तरकाशी और फिर धराली तक की हर एक बाधा को लांघा। देश के प्रमुख हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण की बात की जाए तो इसके पत्रकारों और फोटो पत्रकारों ने ग्राउंड जीरो से लेकर इस तक पहुंच के सभी मार्गों की बेहतर कवरेज दी। आपदा को साइंटिफिक एंगल से कवर करने के साथ मानवीय और भावनात्मक पक्षों पर भी विस्तृत काम किया। आपदा जैसे माहौल में सभी पहलुओं को कवर करने के लिए अथक श्रम और समझ की आवश्यकता होती है।
आपदा की कवरेज में हमें डिजिटल मीडिया के साथियों का योगदान भी नहीं भूलना चाहिए। इस माध्यम में बारामासा के राहुल कोटियाल, राजेश पोल खोल बहुगुणा, त्रिभुवन चौहान, अजीत राठी, विजय पथ के विजय रावत, आसिफ अली आदि जैसे साथियों ने धराली का अति दुर्गम सफर तय कर वहां के हालात को दुनिया के सम्मुख रखा। पत्रकारों के लिए ग्राउंड जीरो तक पहुंचने की पहली बड़ी चुनौती गंगनानी के लिमचा गाड़ में क्षतिग्रस्त आरसीसी ब्रिज के बिना ही आगे बढ़ना था। पत्रकारों ने जान हथेली पर रखकर इस बाधा को पार किया। इसके बाद डबराणी, बाल कंडार मंदिर और सोनगाड़ में तबाह हो चुके राजमार्ग की चुनौती को भी बिना डरे पार किया।
ग्राउंड जीरो तक के दुर्गम सफर में टीवी पत्रकार किशोर रावत को गहरी चोट भी आई। कुछ ऐसी ही चुनौती पत्रकारों ने धराली से वापसी की राह पर भी पार की। क्योंकि, डबराणी क्षेत्र में गंगोत्री राजमार्ग के पूरी तरह नदी में समा जाने के चलते बिना किसी प्रशासनिक सहयोग के खड़ी पहाड़ी वाले जंगल को पार किया। यह ऐसा जंगल था, जहां पैर फिसला नहीं कि आपका उफनाई भागीरथी में गिरना तय था।
धराली की राह पर ऐसा करने की जुर्रत किसी अफसर ने नहीं दिखाई। 03 दिन पहले उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने जरूर दंभ भरा। उन्होंने हर्षिल से डबराणी होते हुए गंगनानी तक पैदल सफर का निर्णय लिया था। ताकि, गंगोत्री राजमार्ग की वस्तुस्थिति खुद अपनी आंखों से देख सकें। लेकिन, जब उन्होंने पाया कि डबराणी में बचा-खुचा मार्ग भी नदी में समा गया है, तो वह भी यहां से वापस लौट आए। आपदाग्रस्त क्षेत्र में पत्रकारों से अधिक जुर्रत किसी की नजर आई तो उसमें सेना, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, आइटीबीपी आदि के जवान शामिल रहे।