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डोईवाला में खाट पर मामा शिवराज चौहान ने किसानों के साथ खाई लीची

केंद्रीय मंत्री बोले, उत्तराखंड को बागवानी का राष्ट्रीय हब बनाएंगे

Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड की खेती को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाने की दिशा में एक अहम पहल करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को देहरादून जनपद के डोईवाला ब्लॉक स्थित पाववाला सौड़ा गांव में ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के अंतर्गत आयोजित किसान चौपाल में हिस्सा लिया। खेतों के बीच खाट पर बैठकर किसानों से सीधा संवाद करते हुए उन्होंने उनकी समस्याएं सुनीं और समाधान के लिए जरूरी निर्देश दिए। उन्होंने खाट पर बैठकर लीची का भी स्वाद लिया। बोले, दून की लीची का जवाब नहीं।

कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तराखंड को बागवानी (हार्टिकल्चर) का राष्ट्रीय हब बनाया जाएगा। यहां के फल, अनाज और सब्जियों की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार के समन्वय से कृषि के क्षेत्र में व्यापक बदलाव लाने की प्रतिबद्धता दोहराई।

इस अवसर पर उत्तराखंड सरकार के कृषि मंत्री श्री गणेश जोशी और कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारीगण भी उपस्थित रहे। चौपाल में बीज, सिंचाई, फसल बीमा, विपणन और मूल्य निर्धारण जैसे मुद्दों पर किसानों ने अपने अनुभव साझा किए। विशेष रूप से लीची, बासमती चावल, कटहल और सब्जी उत्पादकों ने अपनी समस्याएं सामने रखीं।

श्री चौहान ने कहा, “मैं स्वयं किसान परिवार से हूं, किसानों की पीड़ा को समझता हूं। इसलिए जमीन पर आकर यह देखना जरूरी है कि सरकार की योजनाएं वास्तव में किसानों तक पहुंच रही हैं या नहीं।” उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया कि किसानों की शिकायतों का समयबद्ध समाधान किया जाए।

मीडिया से बात करते हुए मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने कृषि क्षेत्र में प्रभावशाली कार्य किए हैं। केंद्र सरकार इसके लिए पूरी तरह सहयोग करेगी ताकि उत्तराखंड के किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजार दोनों का लाभ मिल सके।

उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य की खेती को प्राकृतिक कृषि, तकनीकी नवाचार और जल संरक्षण जैसे आयामों से जोड़कर अधिक लाभकारी बनाया जाएगा। इस दौरान मंत्री ने ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया।

यह चौपाल न केवल किसानों की आवाज़ को सरकार तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम बनी, बल्कि उत्तराखंड की कृषि नीति को नई दिशा देने का संकेत भी दे गई।

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