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राजधानी में सिमटने लगी शिक्षा की दुकानें, एक पाठ्यक्रम में बस 03 छात्र

एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय वविश्वविद्यालय की टीम के दौरे में सामने आई निजी कालेजों की हकीकत, बेसिक सांइस से संबंधित अधिकतर कोर्स होने लगे बंद

Amit Bhatt, Dehradun: उत्तर प्रदेश से अलग होकर जब उत्तराखंड बना और राजधानी देहरादून में घोषित की गई तो यहां हर तरह के धंधेबाजों ने भी जड़ें जमानी शुरू कर दीं। लगे हाथों स्कूलों की राजधानी देहरादून में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए कालेज और तकनीकी शिक्षण संस्थान भी तेजी से खुलने लगे। ये कालेज कम और शिक्षा की दुकानें अधिक थीं। उस समय एकमात्र विश्वविद्यालय एचएनबी था। लिहाजा, इस विश्वविद्यालय से ऐसे शिक्षण संस्थान पाठ्यक्रमों की संबद्धता को लेकर खूब तिकड़म भी भिड़ाने लगे। तमाम कोर्स की भरमार हो गई और देशभर के छात्र इनमें पढ़ने आने लगे। चूंकि, पाठ्यक्रमों की संबद्धता में बड़ा झोल था तो देर सबेर कलई भी खुलने लगी। अब हालात यह हो गए हैं तो गड़बड़झाला कर पाठ्यक्रमों की धड़ाधड़ मान्यता लेने वाले शिक्षण संस्थान तेजी से कोर्स भी बंद करते जा रहे हैं। हाल में हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की टीम के प्रयोगात्मक परीक्षा के लिए किए गए दौरे में देहरादून के एक ऐसे ही कालेज का भेद भी खुल गया। जिसमें टीम को जियोलॉजी जैसे अहम विभाग में सिर्फ 03 छात्र मिले।

इस प्रयोगात्मक परीक्षा का नेतृत्व एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के जियोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो. एमपीएस बिष्ट ने किया। उन्होंने सुद्धोवाला के संबंधित कालेज का हाल देखा तो अपना माथा पकड़ लिया। कालेज के जियोलॉजी विभाग में उन्हें 01 छात्रा और 02 छात्र और संसाधनविहीन हालत में एक शिक्षक मिला। उन्होंने तीनों छात्रों का इंटरव्यू लिया। जिसने 01 छत्तीसगढ़ 01 चकराता का और 01 छात्र पौड़ी से आकर यहां जैसे-तैसे पढ़ रहे हैं। तीनों खुद को असहाय से महसूस कर रहे थे। खैर, वह बच्चों के भविष्य पर तरस खाने के अतिरिक्त कर भी क्या सकते थे।

इस वाकये को प्रो. बिष्ट ने अपनी फेसबुक पोस्ट में भी बयां किया है। उन्होंने लिखा कि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति (जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं) के आदेश से इसी कालेज में भूविज्ञान एमएससी में 10 सीट की मान्यता दी गई थी। जबकि आज का नजारा देखकर उन्हें बेहद अफसोस हुआ। बताया गया कि अब के बाद कालेज में यह विषय पढ़ाया ही नहीं जाएगा। क्योंकि, कालेज प्रबंधन ने स्वयं इस पाठ्यक्रम को अब सरेंडर कर दिया है। जाहिर सी बात है कि मान्यता लेते समय कहीं न कहीं गड़बड़झाला किया गया होगा। जब समय के साथ अभिभावकों और छात्रों को इसकी हालत का अंदाजा हुआ तो धीरे-धीरे छात्र इससे विमुख होने लगे।

भौतिक निरीक्षण में भी मिली थी तमाम खामी
प्रो. एमपीएस बिष्ट की और से साझा की गई पोस्ट के मुताबिक चंद महीने पहले विश्वविद्यालय प्रशासन के निर्देश पर उन्होंने इस संस्थान का भौतिक निरीक्षण किया था। तब उन्होंने पाया था कि कालेज में ढंग की प्रयोगशाला तक नहीं है। न ही वहां योग्यता के मुताबिक शिक्षक पाए गए। शौचालय की हालत तक बदतर थी। यहीं नहीं एक नाम के इन्क्यूबेटर के अंदर कॉपियों के बंडल्स ठूंसे गए थे। कमरे ऐसे कि खिड़की नहीं, जैसे कोई कैद खाना हो। छात्रों के लिए सैंपल के नाम पर चंद पत्थरों के टुकड़े रखे गए थे।

दूसरी तरफ नौकरी के नाम पर एक पुराने होनहार शोधछात्र को बाबू बना कर रखा गया था। अब उस छात्र ने भी कालेज जाना बंद कर दिया है। प्रबंधन ने सफाई में कहा कि उन्हें थोड़ा समय दोगे तो शिक्षक संख्या बढ़ा सकते हैं। चूंकि यह औचक निरीक्षण था तो वह मैनेज नहीं कर पाए। कुछ ऐसा ही हाल तमाम कालेजों का हो गया है। अब सरकार ने अपने श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय से कालेजों को संबद्धता लेने के आदेश किए हैं, लेकिन हालात सभी जगह एक जैसे हैं। ऐसे में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य का नाम खराब करने वाले ऐसे संस्थानों के प्रति सरकार को भी गंभीरता से विचार करना होगा।

अपील: ऐसे कालेजों में न भेजें बच्चों को, कुछ में गुणवत्ता बरकरार
प्रो. एमपीएस बिष्ट ने अभिभावकों से अपील भी जारी की है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के नाम पर दूकान चलाने और मनमर्जी से उसे समेटने वाले शिक्षण संस्थानों में अपने बच्चों को कतई न भेजें। यहां से डिग्री तो मिल जाएगी, लेकिन योग्यता के नाम पर कुछ हाथ नहीं लगेगा। ऐसे कालेजों से पढ़कर डिग्री तो मिल जाएगी, लेकिन रोजगार की कोई गारंटी नहीं है। हालांकि, उन्होंने कहा कि कुछ शिक्षण संसथान बेहतर कर रहे हैं, जिनमें छात्रों की संख्या भी ठीक है और संसाधन भी।

संसाधनों के अभाव में घट गए 33 हजार से अधिक छात्र
उच्च शिक्षा पर आधारित ऑल इंडिया सर्वे ऑफ हायर एजुकेशन (एआईएसएचई) की वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट बताई है कि स्नातक में प्रदेश में 33 हजार से अधिक छात्रों की गिरावट के साथ संख्या 4.33 लाख रह गई है। दूसरी तरफ स्नातकोत्तर में यह गिरावट 13 हजार से अधिक पाई गई है। जबकि इससे पहले की रिपोर्ट में स्नातकोत्तर में 01 लाख से अधिक छात्र पंजीकृत थे। दरअसल, जिस तरह से गली-मोहल्लों में खोले गए शिक्षण संस्थानों की कलई खुलती जा रही है, उसे देखते हुए ही छात्र अब ऐसे संस्थानों से विमुख होने लगे हैं। हालांकि, छात्र संख्या में गिरावट का यह क्रम सरकारी कालेजों तक में जारी है।

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