कोरोनकाल में लिखी गई चाय बागान भूमि फर्जीवाड़े की पटकथा
आरटीआइ में मिले दस्तावेजों ने खोली चाय बागान में संतोष अग्रवाल की एंट्री की कहानी
Round The Watch: सरकार में निहित लाडपुर क्षेत्र की चाय बागान की भूमि खुर्द-बुर्द करने की पटकथा वर्ष 2020 में कोरोनकाल के पहले चरण में लिखी गई। जिस समय देहरादून का जिला प्रशासन कोरोना से जंग कर रहा था, उसी दौरान तहसील सदर ने चाय बागान की भूमि का दाखिल खारिज संतोष अग्रवाल के नाम पर विरासत के रूप में दर्ज कर दिया। चाय बागान की सीलिंग भूमि के साथ ही संतोष अग्रवाल का नाम रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में भी सामने आ रहा है।
अधिवक्ता विकेश नेगी की ओर से आरटीआइ में मांगी गई जानकारी में चाय बागान की 6.70 एकड़ भूमि संतोष अग्रवाल के नाम पर दर्ज करने की कहानी से पर्दा उठता दिख रहा है। आरटीआइ दस्तावेजों के मुताबिक जिस भूमि को संतोष अग्रवाल की मां इंद्रावती ने चंद्र बहादुर से मई 1988 में क्रय किया जाना दिखाया, उस समय उसका दाखिल खारिज नहीं किया जा सका था। वर्ष 1988 में तत्कालीन अपर तहसीलदार ने दाखिल खारिज की जगह राजस्व अभलेखों में दुरुस्ती कराने का जिक्र किया। फिर वर्ष 2020 में संतोष अग्रवाल प्रकट हुए और तहसील सदर में एक आवेदन दाखिल किया। जिसमें उन्होंने इंद्रावती को अपनी मां दर्शाया और कहा कि उनका देहांत 22 अगस्त 1988 में हो गया था। अब एकमात्र वह इंद्रावती के जीवित वारिश हैं। इसके लिए उन्होंने इंद्रावती का अक्टूबर 2019 में असम से जारी मृत्यु प्रमाण पत्र भी संलग्न किया। दाखिल खारिज का यह आवेदन उन्होंने 17 जनवरी 2020 को दाखिल किया।
प्रकरण अपर तहसीलदार की कोर्ट में गतिमान रहा और जब पूरा देश कोरोना संक्रमण से सहमा था, तब चाय बागान की भूमि पर दाखिल खारिज की प्रक्रिया शुरू की गई। अपर तहसीलदार ने 19 मार्च व 21 मार्च 2020 (जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले) को दो आदेश के माध्यम से दाखिल खारिज के निर्देश जारी कर दिए।
अप्रैल 2020 में जब पूरी मशीनरी कोरोना संक्रमण की रोकथाम में जुटी थी और प्रभावित व्यक्तियों के लिए राशन एकत्रित करा रही थी, तब एक अप्रैल 2020 को तहसील सदर ने संतोष अग्रवाल के नाम दाखिल खारिज करा दिया। पहले यह संपत्ति इंद्रावती के नाम दर्ज की गई और फिर विरासत के तौर पर संतोष अग्रवाल का नाम राजस्व अभिलेखों में चढ़ा दिया गया।
कौन देगा इन सवालों के जवाब
-प्रशासन के एक आदेश के मुताबिक चंद्र बहादुर ने लाडपुर क्षेत्र की समस्त भूमि को चाय बागान घोषित कर दिया था। फिर कैसे इस भूमि को इंद्रावती ने क्रय कर लिया।
-भूमि क्रय करने के साथ ही जब सीलिंग एक्ट के मुताबिक जमीन का विलेख शून्य हो गया तो इसे संतोष अग्रवाल के नाम कैसे दर्ज कर दिया गया।
-इंद्रावती की मृत्यु वर्ष 1988 में हो गई, जबकि मृत्यु प्रमाण पत्र करीब 32 साल बाद जारी कराया गया।
मंडलायुक्त ने निरस्त किया दाखिल खारिज, किस बात का इंतजार
यह भी उल्लेखनीय है कि संतोष अग्रवाल के दाखिल खारिज को मंडलायुक्त गढ़वाल निरस्त कर चुके हैं। इसके बाद भी चाय बागान की जमीन खुर्दबुर्द करने वालों पर कार्रवाई के लिए सक्षम अधिकारी इंतजार की मुद्रा में हैं।