देहरादून: घरों व प्रतिष्ठानों का सटीक भौगोलिक आकलन और रिकार्ड तैयार करने के लिए देहरादून में किए जा रहे जियोग्राफिक इंफोर्मेटिक सिस्टम (जीआइएस) सर्वे की पहली रिपोर्ट में ही भारी अनियमितताएं मिली हैं। 25 वार्डों में किए गए जीआइएस मैपिंग सर्वे में शामिल करीब 50 हजार भवनों में से 20 हजार की जानकारी गलत पाई गई है। नगर निगम की ओर से रिपोर्ट को लौटाते हुए शासन को पत्र भेज दिया है। अब इन सभी घरों में दोबारा सर्वे किया जाएगा। शहरी विकास निदेशालय की ओर से उत्तराखंड के प्रमुख शहरों में घरों की जीआइएस मैपिंग कराई जा रही है। जिसके लिए देहरादून नगर निगम क्षेत्र में आउटसोर्स एजेंसी को कार्य सौंपा गया है। लंबे समय से चल रहे जीआइएस सर्वे का कार्य जल्द पूरा होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन नगर निगम को प्राप्त पहली रिपोर्ट में ही भवनों के कार्पेट एरिया की जानकारी गलत है। नगर निगम के कर अधीक्षक धर्मेश पैन्यूली ने बताया कि प्रथम चरण में आउटसोर्स एजेंसी की ओर से नगर निगम को 25 वार्डों का सर्वे उपलब्ध कराया गया। जिसमें करीब 50 हजार घरों का डाटा था, लेकिन मिलान करने पर यह डाटा गलत पाया गया। किसी भवन का कार्पेट एरिया कम निकला तो किसी का बढ़ा दिया गया। इस पर निगम ने रिपोर्ट को लौटाते हुए शासन को पत्र लिख दिया है। ऐसे में इन सभी वार्डों में दोबारा सर्वे कराकर सटीक जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। जीआइएस मैपिंग से होगा यह लाभ जीआइएस मैपिंग से हर भवन के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलेगी। भवन का स्वरूप कैसा है, कितना निर्माण हुआ और कितना खाली है, यह सब पता लगेगा। इस योजना की खासियत यह भी है कि इसमें सरकारी भूमि पर होने वाले कब्जों का पता भी लग सकेगा। साथ ही अवैध निर्माण कराने वाले भवन स्वामियों को भी चिह्नित किये जाने में मदद मिलेगी। असेसमेंट छुपाने वालों की आसानी से होगी पहचानजीआइएस मैपिंग से नगर निगम, पालिका या नगर पंचायतों को उन भवनों का पता चलेगा, जहां से हाउस टैक्स नहीं मिल रहा है, साथ ही उनका भी पता चल जाएगा जो लोग सेल्फ असेसमेंट में गलत जानकारी देकर हाउस टैक्स की चोरी करते हैं। कईं लोग ऐसे हैं भवन के असेसमेंट में तथ्य छुपा लेते हैं। यह लोग भवन के बहुमंजिल होने व ज्यादा निर्माण की जानकारी नहीं देते, लेकिन अब यह सबकुछ पकड़ में आ जाएगा।