Amit Bhatt, Dehradun: यह बात किसी से छिपी नहीं है की तमाम दवाओं का सेवन युवा नशे की डोज के रूप में कर रहे हैं। शनिवार को ही रायपुर पुलिस ने दो युवकों को 1700 से अधिक ट्रामाडोल के कैप्सूल के साथ गिरफ्तार किया। यह दवा आसानी से मेडिकल स्टोर से उपलब्ध हो जा रही है, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। यही कारण है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह के निर्देश पर पुलिस ने जिलेभर में 427 मेडिकल स्टोर की जांच कर डाली। जिसमें वैध लाइसेंस और फार्मेसी की डिग्री आदि की जांच की गई। डिग्रीधारक फार्मेसिस्ट के दवा न बेचने जैसी अनियमितता पर पुलिस ने 60 मेडिकल स्टोरों को बंद करा दिया।
पुलिस ने यह कार्रवाई की ही थी कि इसका विरोध होने लगा। विरोध होना जायज भी है, क्योंकि अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध एवं कानून व्यवस्था) का 15 जुलाई 2022 का एक आदेश कहता है कि औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम 1940 की धारा 32(1) के मुताबिक इस तरह की कार्रवाई का अधिकार ड्रग इंस्पेक्टर को है। पुलिस को इस एक्ट में एफआईआर करने, अन्वेषण करने, गिरफ्तार करने या अभियोजन संबंधी कोई शक्तियां प्राप्त नहीं हैं। पुलिस उपमहानिरीक्षक गढ़वाल व कुमाऊं को संदर्भित इस पत्र का कड़ाई से पालन कराने को भी कहा गया है।
सवाल यह कि कौन कसेगा शिकंजा, ड्रग इंस्पेक्टर भी सीमित
तकनीकी रूप से मेडिकल स्टोरों पर पुलिस की कार्रवाई को गलत माना जा सकता है, लेकिन फिर सवाल वहीं अपनी जगह आकर खड़ा हो जाता है कि फिर नशे की खुराक युवाओं को बेचने वाले मेडिकल स्टोरों पर कार्रवाई कौन करेगा। इस काम के लिए ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट को भी सीधे कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता। क्योंकि, प्रदेश में जितने जिले हैं, उतने भी ड्रग इंस्पेक्टर विभाग के पास नहीं हैं। देहरादून जिले की ही बात करें तो यहां 5000 से अधिक मेडिकल स्टोर होंगे। ऐसे में होना यह चाहिए की सरकार को ड्रग कंट्रोलर के ढांचे को सुद्रढ करना चाहिए।
पुलिस को मिले कार्रवाई का कानूनी हथियार
ड्रग डिपार्टमेंट की तरह ही आबकारी विभाग के पास भी संसाधन सीमित होते हैं। लेकिन, वहां पुलिस के पास आबकारी एक्ट में कार्रवाई का अधिकार प्राप्त होने से पुलिस शराब तस्करी पर अंकुश लगाने का काम आबकारी विभाग की ही भांति करती है। ऐसे में एक मांग यह भी उठी है कि औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम में भी पुलिस को कार्रवाई का अधिकार मिलना चाहिए। अन्यथा इस तरह की कार्रवाई व्यवहारिक होने के बाद भी तकनीकी व कानूनी स्तर पर निष्प्रभावी साबित होगी।
यदि पुलिस को लगता है की कतिपय मेडिकल स्टोरों में नशे में प्रयुक्त होने वाली दवाएं बेची जा रही हैं तो पुलिस को हमें सूचित करना चाहिए। एक संयुक्त टीम बनाकर मेडकल स्टोरों पर छापेमारी करना अधिक उचित रहता। ताजा प्रकरण में पुलिस ने रिपोर्ट भेजनी की बात कही है, रिपोर्ट आने पर कार्रवाई की जाएगी।
ताजबर सिंह जग्गी, औषधि नियंत्रक (उत्तराखंड)