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आईएएस-आईपीएस अफसरों की जमीन के नाम पर कौन साध रहा अपने हित

पौंधा में दिशा ग्रीन और दिशा फॉरेस्ट के प्लॉटेड डेवलपमेंट पर लगाए जा रहे आरोपों को प्रमोटर आईएस बिष्ट ने बताया निराधार, आरोप लगाने वालों की मंशा पर उठाए सवाल

Amit Bhatt, Dehradun: दिशा ग्रीन और दिशा फॉरेस्ट के जिन प्लॉटेड डेवलपमेंट (भूखंड विकास परियोजना) में प्रदेश के तमाम आईएएस-आईपीएस अधिकारियों समेत अन्य नौकरशाहों ने प्लाट खरीदे हैं, उन्हें कौन और किस मंशा के साथ विवादित बनाना चाहता है। यह सवाल प्लॉटेड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के प्रमोटर आईएस बिष्ट ने पत्रकार वार्ता में अपने अधिवक्ताओं अमित वालिया व सचिन शर्मा के माध्यम से उठाए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि सभी नियमों का पालन कर न सिर्फ भूखंड क्रय किया, बल्कि इनका विकास भी सभी मानकों के अंतर्गत किया गया है।

बुधवार को लैंसडौन चौक स्थित उज्ज्वल रेस्तरां में पत्रकारों से रूबरू दिशा प्रोजेक्ट के अधिवक्ताओं ने कहा कि गत दिनों कुछ लोगों ने गिरोहबंद होकर गलत मंशा के साथ परियोजना पर न सिर्फ साजिश के तहत बेबुनियाद आरोप लगाए, बल्कि परियोजना और प्रमोटर आईएस बिष्ट की छवि को धूमिल करने का भी प्रयास किया गया है। प्लाटेड डेवलपमेंट के क्षेत्रफल को 300 बीघा बताया जा रहा है, जबकि दोनों परियोजना की कुल भूमि 147 बीघा है। समस्त भूमि में सरकार या गोल्डन फॉरेस्ट की भूमि को कब्जे में नहीं लिया गया है।

प्रोजेक्ट के अधिवक्ताओं ने जानकारी दी कि परियोजना में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण से ले-आउट पास कराया गया है और रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी में भी परियोजना का पंजीकरण कराया गया है। परियोजना में अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी भी व्यक्ति की भूमि अवैधानिक ढंग से अर्जित नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि जमींदारी विनाश अधिनियम में उत्तराखंड शासन ने धारा 143 (ख) जोड़ी है, जिसमें सपष्ट किया गया है कि जहां भी किसी विकास प्राधिकरण का मास्टर प्लान (महायोजना) लागू है, वहां कृषि भूखंड को अकृषि/आबादी घोषित करने की आवश्यकता नहीं होगी। मास्टर प्लान में इस परियोजना का भू-उपयोग अकृषि है, लिहाजा यहां भूमि अंतरण को लेकर उठाए गए सवाल स्वतः ही निराधार साबित हो जाते हैं। क्योंकि, इसमें जेड-ए एक्ट के प्रावधान लागू ही नहीं किए जा सकते हैं।

जब भूमि क्रय की गई तो 25 से 30 पेड़ थे, सभी की अनुमति ली गई
पत्रकार वार्ता में कहा गया कि परियोजना को विवादित बनाने के लिए कुछ लोग 1500 पेड़ों के कटान की अफवाह फैला रहे हैं। जबकि भूमि क्रय किए जाने के दौरान जमीन पर 25 से 30 पेड़ खड़े थे, जिन्हें काटने के लिए विधिवत अनुमति ली गई है। इस तरह पेड़ों के अवैध रूप से कटान का आरोप भी निराधार साबित हो जाता है।

सरकार को दिया गया 1.35 करोड़ रुपये का स्टांप शुल्क, सर्किल रेट से है अधिक
प्रमोटर आईएस बिष्ट की तरफ से कहा गया कि परियोजना में स्टांप चोरी के बेबुनियाद आरोप कुछ लोग गलत नीयत के चलते लगा रहे हैं। सच्चाई यह है कि स्टांप शुल्क के रूप में सरकार को अब तक 1.35 करोड़ रुपये अदा किए जा चुके हैं। एक भी रुपये की स्टांप चोरी नहीं की गई है। यदि किसी जांच में स्टांप की कमी पाई जाती है तो वह उसकी भरपाई करने के लिए हमेशा तैयार हैं।

तृतीय पक्ष को नहीं अधिकार, राजस्व परिषद का है आदेश
पत्रकार वार्ता में प्रमोटर के अधिवक्ताओं ने सपष्ट किया कि भूमिधरी के विभिन्न प्रकरणों (जेड-ए एक्ट की धारा 161) में किसी तृतीय पक्ष को आपत्ति करने का अधिकार ही नहीं है। इस संबंध में उत्तराखंड राजस्व परिषद के एक आदेश का हवाला दिया गया, जिसमें परिषद ने सरकार के ऐसे दिशा-निर्देश को भी खारिज कर दिया था। लिहाजा, जो भी लोग बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं, वह परियोजना में किसी भी तरह के हितधारक व पक्षकार नहीं हैं। साथ ही आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा गया कि जिन अधिकारियों ने परियोजना में भूखंड क्रय किए हैं, उन्हें किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है तो अन्य लोग क्यों और किस लालसा के साथ आरोप लगा रहे हैं। जिसको लेकर प्रमोटर बिष्ट ने आगे भी विधिक राय लेकर कार्रवाई करने की बात कही है।

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