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हिरासत में मौत पर सीजेएम का आदेश नजीर या जिला जज का आदेश होगा बहाल

उत्तराखंड के सुदूर घनसाली क्षेत्र में वर्ष 2011 में पुलिस हिरासत में सरोप सिंह बिष्ट की मौत का मामला, थानाध्यक्ष समेत 07 पुलिस कर्मियों/होमगार्ड जवानों व तीन डॉक्टरों पर मुकदमे को समन जारी करने के सीजेएम कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने वाले जिला जज के आदेश को हाई कोर्ट ने किया स्टे

Amit Bhatt, Dehradun: पुलिस हिरासत में मौत के करीब 13 साल पुराने मामले में सीजेएम टिहरी कोर्ट का आदेश नजीर बनेगा या फिर जिला जज टिहरी के आदेश को बहाल किया जाएगा। इस बात का निर्णय अब हाई कोर्ट में होगा। पुलिस हिरासत में मौत का यह प्रकरण इसलिए भी अहम है, क्योंकि इसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट पुलिस की दो एफआर को खारिज कर चुकी है। सीजेएम कोर्ट उपजिलाधिकारी घनसाली की प्रारंभिक जांच और न्यायिक मजिस्ट्रेट (सिविल जज सीनियर डिविजन) की रिपोर्ट पर सवाल उठा चुकी है। साथ ही पुलिस व प्रशासन की जिले की मशीनरी की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने घनसाली के थानाध्यक्ष समेत 07 पुलिस कर्मियों/होमगार्ड जवानों व पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों को प्रकरण में आरोपित बनाने का आदेश जारी कर दिया। हालांकि, इस आदेश पर जिला जज टिहरी ने रोक लगा दी। अब केस में नया मोड़ यह आया है कि नैनीताल हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की कोर्ट ने जिला जज टिहरी के आदेश को स्टे कर दिया है। साथ ही छह पुलिस कार्मिकों/होमगार्ड जवानों व दो डॉक्टरों (एक की मृत्यु हो चुकी) के अलावा गृह सचिव व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक टिहरी को नोटिस जारी किया गया है।

मृतक सरोप सिंह।

महिला कार चालक से विवाद पर सरोप सिंह को लाया गया था थाने, फिर हो गई मौत
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) टिहरी विनोद कुमार बर्मन के आदेश में दर्ज जानकारी के मुताबिक टिहरी के ग्राम केपार्स (पट्टी बासर) सरोप सिंह सामान लाने के लिए 21 मई 2011 को स्थानीय बाजार चमियाला गए थे। उसी दौरान बाजार में जाम की स्थिति के कारण सरोप सिंह का एक कार चालक महिला से विवाद हो गया। सरोप सिंह के भाई मोर सिंह के अनुसार कहासुनी के बीच महिला ने उनके भाई को थप्पड़ मार दिया। आरोप है कि सरोप सिंह शराब के नशे में धुत होकर हंगामा काट रहा था। बाजार में यातायात व्यवस्था संभाल रहे होमगार्ड के जवान सोहनलाल, चैत लाल व शिवचरण भी वहां आ गए और लाठी-डंडों से मारपीट करते हुए सरोप सिंह को चमियाला चौकी ले गए। आरोप है कि चौकी पर भी सरोप सिंह के साथ मारपीट की गई और फिर उसे घनसाली थाने ले आए। यहां पर भी सरोप सिंह के साथ जमकर मारपीट करने का आरोप है। इसके बाद शाम को सरोप सिंह की मृत्य हो गई।

स्वास्थ्य खराब होने का हवाला देकर ले गए थे अस्पताल, हो चुकी थी मौत
कोर्ट के आदेश में दर्ज जानकारी के मुताबिक पुलिस कर्मी सरोप सिंह का स्वास्थ्य खराब होने (सीने में दर्द की शिकायत पर) का हवाला देकर पहले उसे स्थानीय चिकित्सक के पास ले गए। डॉ के उपलब्ध न होने पर उसे पास के कस्बे पिलखी स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए। बताया गया कि यहां भी चिकित्सक अनुपस्थित पाए गए और फिर सरोप सिंह को 108 एंबुलेंस सेवा की मदद से नई टिहरी के बौराड़ी स्थित जिला चिकित्सालय पहुंचाया गया। जहां चिकित्सकों ने सरोप सिंह को मृत घोषित कर दिया था। जिस पर मृतक सरोप सिंह के भाई मोर सिंह की तहरीर होमगार्ड सोहन लाल व चार-पांच पुलिस कर्मियों पर 22 मई 2011 को मुकदमा दर्ज किया गया।

प्रतीकात्मक चित्र।

पोस्टमार्टम में मिले चोट के निशान, नहीं कराई गई वीडियोग्राफी
पुलिस हिरासत में मौत के बाद जब सरोप सिंह के शव का पंचनामा भरा गया तो नायब तहसीलदार टिहरी ने पोस्टमार्टम के दौरान फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की संस्तुति की थी। पोस्टमार्टम विशेषज्ञ चिकित्सकों के पैनल डॉ संजय कर्णवाल, डॉ संजय कंसल व डॉ मनोज कुमार बडोनी ने किया। सीजेएम कोर्ट के आदेश में दर्ज जानकारी के मुताबिक पोस्टमार्टम के लिए किए गए आग्रह में नायब तहसीलदार टिहरी ने शव के पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी कराने को कहा था। इसके बाद भी पोस्टमार्टम में इस बात की अनदेखी की गई। जबकि पोस्टमार्टम के दौरान चिकित्सकों के पैनल ने पाया था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान हैं। मृतक के दाएं हाथ ही तरफ 8.0 गुणा 3.0 सेंटीमीटर का नीलगू चोट (नीला पड़ना) का निशान था। इसी तरह मृतक की जांघ पर सामने की तरफ दो लाइननुमा नीलगू चोट के निशान 8.0 गुणा 1.0 सेंटीमीटर के आकार के थे। साथ ही दाएं घुटने, दायीं टांग के ऊपरी भाग, छाती के दायीं ओर नीचे की तरफ खरोंच के निशान और अंडकोष के बायीं तरफ भी खरोंच के निशान पाए गए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हृदय में ब्लड क्लॉटिंग होना और ह्रदय की सतह का नीले रंग का हो जाना भी अंकित किया गया। चिकित्सकों ने मृत्यु का कारण अनिश्चित पाते हुए आमाशय, यकृत का हिस्सा पित्त की थैली सहित, स्पलिन का हिस्सा और दायीं किडनी को विसरा परीक्षण के लिए भेजा जाना भी बताया। क्योंकि, चिकित्सकों को मृतक के शराब पीने का अंदेशा हुआ था।

प्रतीकात्मक चित्र।

लखनऊ लैब की रिपोर्ट में शराब के सेवन का मत नहीं
सीजेएम कोर्ट टिहरी के आदेश में दर्ज की गई जानकारी के अनुसार लखनऊ की विष विज्ञान, विधि विज्ञान प्रयोगशाला के विसरा परीक्षण में कोई रासायनिक विष नहीं पाया गया। साथ ही शराब के होने को लेकर भी मत व्यक्त नहीं किया गया। सीजेएम विनोद कुमार बर्मन में प्रकरण की सुनवाई में कहा कि सामान्य तौर पर किसी व्यक्ति के शरीर में एल्कोहल/शराब पाए जाने के तथ्य को निश्चित करने के लिए संबंधित व्यक्ति का मूत्र या रक्त परीक्षण कराया जाना अतिआवश्यक है। इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का अनुपालन क्यों नहीं
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विनोद कुमार बर्मन के आदेश के मुताबिक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने वर्ष 1993 में पुलिस हिरासत में मौत के मामलों में सामान्य निर्देश जारी किए हैं। जिसमें स्पष्ट है कि पुलिस हिरासत में मृत्यु के 24 घंटे के भीतर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सूचित किया जाएगा। ऐसे प्रकरण में मृतक का पोस्टमार्टम चिकित्सकों के पैनल करेगा और पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी कराई जाएगी। इसके अलावा हिरासत में मौत के दो माह के भीतर पोस्टमार्टम रिपोर्ट, वीडियो रिकार्डिंग और मजिस्ट्रीयल जांच सहित अन्य सभी जांच रिपोर्ट भेजी जाएंगी। साथ ही जरूरी हो तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट की स्वतंत्र समीक्षा की जाए। सीजेएम कोर्ट ने कहा कि इन तमाम दिशा-निर्देशों की अनदेखी की गई है।

सीबीसीआईडी की एफआर खारिज, उपजिलाधिकारी और न्यायिक मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर भी सवाल
टिहरी की सीजेएम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि सीबीसीआईडी की 24 मार्च 2012 की अंतिम रिपोर्ट (एफआर/फाइनल रिपोर्ट) में विवेचक भुवनेश शर्मा चिकित्सकों समेत अनेक व्यक्तियों से पूछताछ किए जाने का जिक्र किया है। हालांकि, इसमें यह सवाल नहीं किया गया कि क्यों चिकित्सकों ने पंचनामे की संस्तुति के बाद भी पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी नहीं कराई। यह सवाल भी नहीं पूछा गया कि इस अनदेखी में महत्वपूर्ण हो सकने वाले चिकित्सीय साक्ष्यों को क्यों नष्ट किया गया। लिहाजा, एफआईआर को खारिज कर दिया गया। इसी तरह की अनदेखी उपजिलाधिकारी घनसाली की रिपोर्ट में भी पाई गई। दूसरी तरफ जब सीजेएम विनोद कुमार बर्मन ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन) राकेश कुमार सिंह की न्यायिक जांच पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि न्यायिक जांच में मृतक सरोप सिंह पर सिपाही प्रदीप गिरी, हेड कांस्टेबल सोहन लाल, चैतलाल व शिवचरण के बल प्रयोग किए जाने का जिक्र है। लेकिन, साथ ही यह भी लिखा गया है कि यह बल इतना अधिक नहीं था कि सरोप सिंह की मृत्यु हो सके। जिस पर टिप्पणी करते हुए सीजेएम विनोद कुमार बर्मन ने कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने वह पैमाना अंकित नहीं किया है कि जिस आधार पर यह स्पष्ट किया गया कि सरोप सिंह पर प्रयोग किया गया बल मृत्यु का कारण नहीं बना। जबकि मृतक के संवेदनशील अंग पर भी चोट के निशान पाए गए हैं।

याचिकाकर्ता व मृतक सरोप सिंह के पुत्र योगेंद्र सिंह बिष्ट।

आरोपित पुलिस कार्मिकों का स्थानांतरण जिले से बाहर नहीं, विवेचना भी उसी थाने को
सीजेएम कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि पुलिस हिरासत में मौत के मामले में आरोपित पुलिस कर्मियों का स्थानांतरण जिले से बाहर कर दिया जाना चाहिए। ताकि प्रकरण को प्रभावित करने की आशंका को कम किया जा सके। लेकिन, इस मामले में ऐसा कुछ किया जाना प्रतीत नहीं होता है। इस संबंध में कोर्ट ने श्रीमती प्रमीत कौर बनाम पंजाब सरकार (1996) के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में दी गई व्यवस्था का जिक्र भी किया। कोर्ट ने यह भी पाया कि सीबीसीआईडी की एफआर खारिज कर दिए जाने के बाद प्रकरण की विवेचना उसी घनसाली थाने को दे दी गई, जिसके पुलिस कर्मियों पर मारपीट और पुलिस हिरासत में मौत का आरोप है। ऐसे में यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि विवेचना सही की गई हो। इसी आशंका के अनुरूप दूसरी अंतिम रिपोर्ट (एफआर) विवेचक रवि कुमार ने 23 जून 2016 को दाखिल की। लिहाजा, इस विवेचना में भी उसी तरह की चूक पाई गई है, जैसा कि पूर्व की विवेचना और जांचों में पाया गया है। इस विवेचना को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।

साक्षी झूठ बोल सकता है परिस्थितियां नहीं, विवेचकों ने तथ्यों को छिपाया है
सीजेएम विनोद कुमार बर्मन ने अपने आदेश में कहा कि मृतक सरोप सिंह बिष्ट के शरीर पर चोटों के निशान और पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी से किया गया परहेज सामान्य नहीं है। न्यायिक मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में सरोप सिंह पर बल के प्रयोग की पुष्टि की गई है। चूंकि पुलिस अभिरक्षा में किसी व्यक्ति के साथ हिंसा या उत्पीड़न के संबंध में कोई डायरेक्ट साक्ष्य मिलना असंभव होता है और ऐसे में परिस्थितिजन्य साक्ष्य व लिंक साक्ष्य अत्यंत महत्वपूर्ण व निर्णायक होता है। वर्तमान मामला भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में सभी विवेचकों ने महत्वपूर्ण तथ्यों को अनदेखा किया है। महत्वपूर्ण तथ्यों का सक्रिय छिपाव पाया गया, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य का एक बड़ा गुण यह है कि साक्षी झूठ बोल सकता है, परिस्थितियां नहीं।

सीजेएम कोर्ट के आदेश का प्रमुख अंश।

पुलिस कर्मियों, होमगार्ड जवान व डॉक्टरों पर मुकदमा चलाने को 10 को जारी किया था समन
प्रकरण पर गुणदोष के आधार पर सुनवाई करते हुए सीजेएम विनोद कुमार बर्मन ने थाना घनसाली से संबंधित तत्कालीन होमगार्ड चैतलाल, शिवचरण, कांस्टेबल उमेद सिंह असवाल, प्रदीप गिरी, सब इंस्पेक्टर सुरेंद्र सिंह चौधरी, हेड कांस्टेबल जय सिंह रावत (वाहन चालक) व तत्कालीन थानाध्यक्ष कमल कुमार लुंठी पर मुकदमा चलाने को समन जारी करने के आदेश दिए। इसी तरह जिला चिकित्सालय नई टिहरी (बौराड़ी) के तत्कालीन चिकित्सक डॉ संजय कर्णवाल (अब मृत्यु हो चुकी), डॉ संजय कंसल, डॉ मनोज कुमार बडोनी को भी समन जारी करने का आदेश दिया गया। कोर्ट में अधिवक्ता बीना सजवाण व संजय शाह आदि ने पैरवी की।

जिला जज टिहरी की कोर्ट के आदेश का प्रमुख अंश।

जिला जज ने लगाई सीजेएम के आदेश पर रोक, खुला था अग्रिम विवेचना का विकल्प
प्रकरण में सीजेएम कोर्ट ने जिन्हें मामले के विचारण के लिए नोटिस जारी किया था, उनमें से आठ ने इसके विरुद्ध जिला सत्र एवं न्यायाधीश (जिला जज) की कोर्ट में अपील दायर की। तमाम दलीलों को सुनने के बाद जिला जज योगेश कुमार गुप्ता ने कहा कि यदि सीजेएम कोर्ट को लगा था कि दूसरी विवेचना भी सही नहीं है तो वह किसी अन्य निष्पक्ष जांच एजेंसी से अग्रिम विवेचना करवा सकते थे। लेकिन, विचारण न्यायालय ने ऐसा न कर निगरानीकर्तागण/अभियुक्तगण को सीधे विचारण के लिए समन जारी कर दिए। इसे जिला जज की कोर्ट ने विधि या तथ्य की त्रुटि करार दिया। लिहाजा, जिला जज योगेश कुमार गुप्ता की कोर्ट ने सीजेएम कोर्ट के आदेश को सेट-असाइड कर दिया। इसके साथ पत्रावली विचारण न्यायालय को पुनः सुनवाई के लिए भेज दी गई थी। प्रकरण में बचाव पक्ष की और से अधिवक्ता दिनेश चंद्र सेमवाल ने पैरवी की, जबकि विपक्षी/राज्य की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता स्वराज्य सिंह पंवार ने दलीलें पेश कीं।

नैनीताल हाई कोर्ट के न्यायाधीश राकेश थपलियाल की कोर्ट का आदेश।

अब हाई कोर्ट पहुंचा प्रकरण, जिला जज के आदेश पर रोक
नैनीताल हाई कोर्ट में इस प्रकरण को मृतक सरोप सिंह के पुत्र योगेंद्र सिंह बिष्ट ने याचिका दायर की। उनकी तरफ से अधिवक्ता मनोज जोशी ने कोर्ट के समक्ष पैरवी की। प्रकरण पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की कोर्ट ने जिला जज योगेश कुमार गुप्ता के आदेश पर रोक लगा दी। साथ ही प्रकरण में होमगार्ड चैतलाल, शिवचरण, सब इंस्पेक्टर कमल कुमार, सुरेंद्र सिंह चौधरी, कांस्टेबल प्रदीप गिरी, उमेद सिंह, डॉ संजय कंसल व डॉ मनोज कुमार बडोनी को नोटिस जारी किए। इसके साथ ही गृह सचिव व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक टिहरी को भी नोटिस जारी किया गया है। प्रकरण में सुनवाई की अगली तिथि 21 दिसंबर तय की गई है।

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