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दून में पैथोलॉजी सेंटरों की रिपोर्ट पर सवाल, आप भी तो नहीं हो रहे शिकार

उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल ने एक निजी लैब की रिपोर्ट को करार दिया अमान्य, डिजिटल हस्ताक्षर की जगह सिग्नेचर किए जा रहे स्कैन

Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल के ताजा आदेश आंखें खोलने वाला है। क्योंकि, जिन पैथोलॉजी लैब की रिपोर्ट पर भरोसा कर आप या चिकित्सक उपचार की दिशा तय करते हैं, वह फर्जी हो सकती है। फर्जी इसलिए कि संभवतः रिपोर्ट के परिणाम का अध्ययन संबंधित पैथोलॉजिस्ट ने किया ही न हो। क्योंकि, इस पर किए गए हस्ताक्षर सिर्फ स्कैन हो सकते हैं। रिपोर्ट की सत्यता के लिए उस पर विधि के मुताबिक मान्य डिजिटल हस्ताक्षर होने जरूरी हैं। ऐसे ही प्रकरण में उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल की कमेटी ने दून के सिकंद डायग्नोसिक सेंटर की पैथोलाजी रिपोर्ट को अमान्य करार दिया। साथ ही जांच के एवज में वसूल की गई फीस को वापस करने के आदेश जारी किए।
उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल की कमेटी का आदेश।

आरटीआइ क्लब के महासचिव अमर सिंह धुंता ने अपनी पत्नी के पैथ टेस्ट एश्लेहाल स्थित सिकंद डायग्नोस्टिक सेंटर से कराए थे। जो रिपोर्ट उन्हें मिली उस पर डिजिटल साइन थे। उन्होंने इस पर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि उन्हें पैथोलाजिस्ट के हाथ के हस्ताक्षर वाली रिपोर्ट चाहिए। सेंटर ने ऐसा करने से इन्कार किया तो अमर सिंह धुंता ने इसकी शिकायत उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल के समक्ष दर्ज कराई।

शिकायत को दर्ज करते हुए काउंसिल की नैतिकता, अनुशासनात्मक एवं रजिस्ट्रेशन कमेटी ने दोनों पक्षों को सुनवाई के लिए नोटिस जारी किए। प्रकरण पर सुनवाई करते हुए काउंसिल के अध्यक्ष डॉ अजय खन्ना, सदस्य डॉ अंजली नौटियाल व सदस्य डॉ प्रवीन पंवार ने डिजिटल हस्ताक्षर की वैधता का परीक्षण किया।
कमेटी ने पाया कि सेंटर ने पैथोलाजी रिपोर्ट पर जी हस्ताक्षर किए हैं, वह स्कैन किए गए साइन हैं। इन्हें ही डिजिटल सिग्नेचर के रूप में मान्य बताया जा रहा है। कमेटी ने कहा कि केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने डिजिटल हस्ताक्षर को लेकर गाइडलाइन जारी की है। जिसके मुताबिक वही डिजिटल साइन वैध हैं, जो ई-केवाईसी के तरीके से अर्थात ई-साइन ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर सर्विस से प्रमाणित हों। या फिर असिमेट्रिक क्रिप्टो-सिस्टम से उत्पन्न हों। साथ ही कहा गया है कि ऐसे इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर सर्टिफाइंग अथॉरिटी से एक-दो वर्ष की अवधि में प्रमाणित होने चाहिए।
ऐसे हस्ताक्षर व्यक्तिगत पिन के साथ होने चाहिए। तभी यह कहा जा सकता है कि डिजिटल साइन संबंधित अधिकृत व्यक्ति ने ही किए हैं। सुनवाई में उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल की अथारिटी ने पाया कि सिकंद लैब यह साबित करने में असमर्थ रहा है कि उनकी रिपोर्ट पर किए गए हस्ताक्षर इलेक्ट्रॉनिक रूप में वैध हैं। क्योंकि, यह महज स्कैन किए गए हस्ताक्षर ही हैं। काउंसिल की कमेटी ने सिकंद डायग्नोसिक सेंटर के प्रैक्टिशनर डॉ शोभा सत्यपाल मालिक, डॉ दीपिका और डॉ सुनिती सिकंद को चेतावनी जारी करते हुए कहा कि वह अपने उन्हीं इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों के साथ जांच रिपोर्ट जारी करें, जो केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुरूप हों। लिहाजा, पैथोलाजी सेंटर शिकायतकर्ता को फीस की वह राशि वापस कर, जो जांच के लिए वसूल की गई थी।

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