Amit Bhatt, Dehradun: रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में एसआइटी की पकड़ अभी ढीली नहीं पड़ी है। रजिस्ट्री फर्जीवाड़े की परतों का उघाड़ने का क्रम जारी है। इसी कड़ी में अब पुलिस ने माजरा में 10 बीघा भूमि के फर्जी दस्तावेज तैयार करने के मामले में नानकमत्ता के सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार किया है। इस फर्जीवाड़े में भी जेल में बंद अधिवक्ता कमल विरमानी और भूमाफिया केपी सिंह (अब मौत हो चुकी) की भूमिका सामने आई है। दूसरी तरफ एसआइटी का शिकंजा अब राजस्व और सब रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों पर भी कस सकता है। इनकी विभागीय जांच के लिए एसआइटी ने जिलाधिकारी को पत्र भेज दिया है।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह और एसआइटी प्रभारी सर्वेश पंवार के मुताबिक शीतल मंड निवासी रामनिवास माजरा देहरादून ने थाना पटेलनगर में भूमि धोखाधड़ी से संबंधित शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें उन्होंने कहा कि केपी सिंह ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर माजरा स्थित उनकी 10 बीघा जमीन की फर्जी पावर आफ अटार्नी बनाकर उसकी रजिस्ट्री सुखविंदर सिंह निवासी नानकमत्ता के नाम करा दी है। साथ ही इस भूमि को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर केपी सिंह के पिता बलवीर सिंह की कंपनी को गिफ्ट डीड कर दी गई है। शिकायत के आधार पर थाना पटेलनगर में मु.अ.सं. 453/23 धारा 420, 467, 468, 471, 120बी बनाम केपी सिंह व अन्य पंजीकृत किया गया, जिसकी विवेचना वर्तमान में एसआईटी टीम द्वारा की जा रही है।
एसआइटी प्रभारी सर्वेश पंवार के अनुसार इस मामले में पुलिस टीम पूर्व में 02 अभियुक्तों समीर कामयाब तथा रवि कोहली को गिरफ्तार कर चुकी है। जिनसे पूछताछ के आधार पर अभियोग में जमीन की फर्जी रजिस्ट्री अपने नाम पर करने तथा जमीन को फर्जी तरीके से अपने सह अभियुक्त के नाम पर गिफ्ट डीड करने वाले अभियुक्त सुखविंदर सिंह पुत्र दर्शन सिंह को पुलिस टीम ने नकमत्ता ऊधमसिंहनगर से गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी उपनिरीक्षक कुलदीप पंत, उपनिरीक्षक अमित ममगाईं व कांस्टेबल रवि शंकर ने की।
केपी सिंह ने कमल विरमानी के साथ लिखी फर्जीवाड़े की पटकथा
पूछताछ में अभियुक्त सुखविंदर सिंह ने पुलिस को बताया कि केपी सिंह व उसके पिता बलवीर सिंह से उसकी मुलाकात वर्ष 2010 में एक विवाह समारोह के दौरान केपी सिंह के चाचा सेठपाल चौधरी के माध्यम से हुई। जो सिडकुल ऊधमसिंहनगर में मिट्टी भरान के ठेके लेता था तथा अभियुक्त द्वारा इस काम में उनकी मदद की गई थी। वर्ष 2014 में केपी सिंह ने उससे संपर्क कर बताया गया कि उनके द्वारा देहरादून में माजरा स्थित एक जमीन की हरभजन सिंह उर्फ भजन सिंह के नाम से फर्जी पावर ऑफ अटार्नी तैयार की गई है। जिसकी रजिस्ट्री वह अभियुक्त सुखविंदर सिंह के नाम पर करवा देगा। जमीन को बेचने से जो मुनाफा होगा, उसमें से कुछ हिस्सा अभियुक्त को दिया जायेगा। उसके बाद केपी सिंह ने अभियुक्त के खाते में डेढ लाख रुपये डाल दिए।
वर्ष 2016 में केपी सिंह ने अपने एक अन्य साथी के साथ उसे कमल विरमानी तथा एक अन्य व्यक्ति से मिलवाया गया, जिनके द्वारा रजिस्ट्रार आफिस में जाकर पहले उक्त भूमि की रजिस्ट्री अभियुक्त के नाम पर की गई तथा वर्ष 2020 में अभियुक्त के माध्यम से भूमि को गिफ्ट डीड केपी सिंह के पिता बलवीर सिंह की कंपनी बीकेएन हर्ब्स के नाम पर कर दी गई। बताया जा रहा है कि इस मामले में एक मुकदमा शिकायतकर्ता की ओर से सहारनपुर में भी पंजीकृत करवाया गया है।
एसआइटी के इस पत्र से कसेगा अफसरों का शिकंजा
रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में 21 आरोपितों को जेल भेजे जाने के बाद अब पुलिस की कार्रवाई की जद में अधिकारी भी आ सकते हैं। फर्जीवाड़े की जांच के लिए गठित एसआइटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) की छानबीन में राजस्व और सब रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। इसको लेकर एसआइटी प्रभारी (पुलिस अधीक्षक यातायात) सर्वेश पंवार ने जिलाधिकारी को पत्र भेजा है। ताकि रजिस्ट्री फर्जीवाड़े में अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका की जांच कराई जा सके।
एसआइटी प्रभारी ने यह पत्र वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के माध्यम से जिलाधिकारी को भेजा है। इसमें कहा गया है कि रिंग रोड से संबंधित 30 से अधिक रजिस्ट्रियों का अध्ययन किया गया है। साथ ही प्रकरण से जुड़े सभी व्यक्तियों से पूछताछ की गई। इस दौरान कई संदिग्ध व्यक्तियों के नाम प्रकाश में आए। साथ ही कई संदिग्ध बैंक अकाउंट की भी जांच की गई। इन खातों में करोड़ों रुपये का लेनदेन पाया गया है। जिसके क्रम में पाया गया कि आरोपित अधिवक्ता कमल विरमानी, कंवर पाल सिंह (अब मृत्यु हो चुकी), इमरान, रोहताश आदि ने रिंग रोड, लाडपुर, रैनापुर ग्रांट, नवादा, क्लेमेनटाउन, माजरा, राजपुर आदि में कई भूमि के कूटरचित (फर्जी) रजिस्ट्री तैयार की और उन्हें सब रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकार्ड रूम में दाखिल करवा दिया।
इसके बाद राजस्व अभिलेखागार के तत्कालीन अधिकारियों, कर्मचारियों की मिलीभगत से दाखिल खारिज तक करवा दिया। ये सभी आरोपित अभी जेल में बंद हैं। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि आरोपितों ने तत्कालीन एडीजीसी सुरेश चंद शर्मा और अपर तहसीलदार सदर महेश जगूड़ी एवं अन्य कार्मिकों के साथ मिलकर फर्जी व संदिग्ध पत्रावलियों में आदेश करवाए। इसी आधार पर राजस्व अभिलेखों में आरोपित संतोष अग्रवाल का नाम दाखिल खारिज आर-6 रजिस्टर में दर्ज करवा दिया। एसआइटी की रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि सब रजिस्ट्रार कार्यालय के तत्कालीन अधिकारियों की भी घोर लापरवाही पाई गई है। क्योंकि, फर्जी रजिस्ट्रियों की जो नकल असल के रूप में बाहर आई, उनमें जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। इस आधार पर राजस्व व सब रजिस्ट्रार कार्यालय के तत्कालीन अधिकारियों व कर्मचारियों की विभागीय जांच की जानी नितांत जरूरी है।
एसआइटी के पत्र पर ही एडीजीसी पर की गई कार्रवाई
एसआइटी के पत्र में एडीजीसी सुरेश चंद शर्मा के नाम का भी उल्लेख था। लिहाजा, इस दिशा में कार्रवाई करते हुए जिलाधिकारी सोनिका एडीजीसी सुरेश चंद को हटा दिया है। अब बताया जा रहा है कि प्रकरण में संदिग्ध भूमिका वाले अधिकारियों की विभागीय जांच कराए जाने की प्रक्रिया भी शुरू की जा चुकी है।