हाई कोर्ट की शिफ्टिंग पर सबसे बड़ा आदेश, गौलापार की कवायद पर विराम
मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने शिफ्टिंग पर तस्वीर साफ करने के लिए तय की समय सीमा, अधिवक्ताओं समेत नागरिकों की राय भी की जाएगी शामिल
Amit Bhatt, Dehradun: सुलभ और सस्ते न्याय की दिशा में नैनीताल हाई कोर्ट का ताजा आदेश मील का पत्थर साबित होगा। चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की शिफ्टिंग के लिए हल्द्वानी के गौलापार में 26 हेक्टेयर भूमि की पेशकश की गई है। इस भूमि का 75 प्रतिशत भाग पेड़ों से भरा हुआ है। इसलिए कोर्ट नया हाई कोर्ट बनाने के लिए किसी भी पेड़ को उखाड़ना नहीं चाहता है। कोर्ट ने कहा कि ‘हम उस भूमि का उपयोग नहीं कर रहे हैं।’ हालांकि, कोर्ट ने राज्य गठन से लेकर अब तक की बदली और बढ़ती परिस्थितियों में हाई कोर्ट की शिफ्टिंग को जरूरी बताया। कोर्ट ने सुनवाई में ऑनलाइन उपस्थित हुईं उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव आरके सुधांशु से कहा कि शिफ्टिंग के लिए उपयुक्त भूमि का पता लगाया जाए। इस काम के लिए चीफ जस्टिस की पीठ ने 01 माह का समय देते हुए कहा कि अधिकारी 07 जून 2024 तक अपनी इस न्यायालय को सौंपेंगे।
03 से 11 हुई संख्या, 50 वर्षों में 80 न्यायाधीशों के लिए होगी भूमि की जरूरत
चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हाई कोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट किए जाने को लेकर कहा कि जब उत्तराखंड का गठन हुआ, तब उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या केवल 03 थी। 20 वर्षों के भीतर संख्या 11 हो गई। अगले 50 वर्षों में इस संख्या के कम से कम 08 गुना होने की संभावना है। इसलिए अगले 50 वर्षों के भीतर ‘हमें 80 न्यायधीशों के लिए भूमि की आवश्यकता है।’ कोर्ट ने कहा कि इस राज्य को 09 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग करके बनाया गया, इसकी राजधानी अस्थाई रूप से देहरादून, जबकि उच्च न्यायालय की स्थापना नैनीताल में की गई।
नैनीताल महंगा शहर, युवा अधिवक्ताओं के सामने घर की समस्या
नैनीताल शहर एक प्रसिद्द पर्यटन स्थल भी है। यहां देश के विभिन्न हिस्सों और विदेश से भी पर्यटक आते हैं। इन सबके बीच नैनीताल में यातायात और भीड़ शहर की सबसे बड़ी समस्या में से एक है। साथ ही जब से उच्च न्यायालय की स्थापना हुई, तब से आज तक हर वर्ष अधिवक्ताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। 1200 से अधिक अधिवक्ता ऐसे हैं, जो नियमित रूप से यहां प्रैक्टिस कर रहे हैं। इनमें से 400 युवा अधिवक्ता हैं, जो आवासीय घरों की कमी का सामना कर रहे हैं। जो घर उपलब्ध हैं, वह बहुत महंगे हैं। पर्यटन सीजन के चरम पर होने के दौरान मकान मालिक अधिवक्ताओं को घर खाली करने के लिए मजबूर करते हैं। ताकि वह अपने घरों का प्रयोग होम स्टे के रूप में कर सकें।
सुलभ और सस्ते न्याय में बाधक है मौजूदा परिस्थिति
इसके अलावा पर्यटक स्थल होने के कारण यहां रहने का खर्चा भी बहुत अधिक है। राज्य में 13 जिले हैं और उनमें से अधिकतर पहाड़ी हैं। ऐसे कई दूरदराज के स्थान हैं, जहां से गरीब वादकारियों को अपने मामले दायर करने के लिए नैनीताल आना पड़ता है। जिन्हें नैनीताल पहुंचने में ही 02-03 दिन का समय लग जाता है। इसके अलावा गरीब वादकारी अपनी नैनीताल यात्रा का खर्च वहन नहीं कर सकते, यहां तक कि कुछ समय के लिए वकील की फीस भी वहन नहीं कर सकते। निश्चित रूप से अदालतें इसी के लिए हैं। वादकारियों को सरल एवं सुलभ न्याय मिले, इसलिए उनकी शिकायतों, समस्याओं एवं कठिनाइयों पर विचार किया जाना आवश्यक है।
कोर्ट ने यह भी इंगित किया कि सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक चिकित्सा सुविधाओं के बारे में भी है और इस न्यायालय द्वारा कई जनहित याचिकाओं के माध्यम से हस्तक्षेप के बावजूद चिकित्सा सुविधाओं में सुधार नहीं हुआ है। नैनीताल में कोई निजी नर्सिंग होम नहीं है और आपातकालीन स्थिति में कोई चिकित्सा सुविधा भी नहीं है। इतना ही नहीं, मौजूदा बीडी हॉस्पिटल के विस्तार के लिए जमीन और जगह भी उपलब्ध नहीं है। पांडे अस्पताल में डॉक्टर तक उपलब्ध नहीं हैं और यदि उपलब्ध हैं तो वे नैनीताल में सेवा देने में रुचि नहीं रखते। पिछले कई वर्षों से नैनीताल में कोई हृदय रोग विशेषज्ञ नहीं है और जो हृदय रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं, वे बहुत अधिक वेतन की मांग कर रहे हैं।
इस न्यायालय को यह भी जानकारी मिलती है कि इस न्यायालय के अच्छे प्रैक्टिस करने वाले वकीलों में से एक श्री परेश त्रिपाठी की चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण मृत्यु हो गई थी। नैनीताल पहुंचने का केवल एक ही साधन है और वह है सड़क मार्ग। जिसमें से 35-40 किमी का हिस्सा पूरी तरह से पहाड़ी क्षेत्र है। दूसरा पहलू नैनीताल से कनेक्टिविटी को लेकर है। इसके अलावा पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्देश पर गौर करते हुए कहा कि देश की सभी अदालतें हाइब्रिड मोड यानी ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन माध्यम से चलनी चाहिए। वस्तुतः और भौतिक रूप से और कागज रहित काम के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। अधिवक्ताओं को ई-फाइलिंग के माध्यम से अपनी याचिकाएं दाखिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। वकील देश के किसी भी स्थान से या विदेश से भी अपने मामले पर बहस कर सकते हैं और अदालतों में अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।
शिफ्टिंग को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना जरूरी
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन सभी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए कि पिछले कई वर्षों से वादियों, आम जनता, युवा वकीलों द्वारा तमाम मुश्किलों का सामना किया जा रहा है, हाई कोर्ट को अन्यत्र शिफ्ट किया जाना जरूरी है। यही कारण है कि उच्च न्यायालय ने पूर्ण न्यायालय बुलाया और 15.09.2022 के संकल्प द्वारा इस न्यायालय को स्थानांतरित करने का संकल्प लिया। पीठ के मुताबिक ‘हमने पूर्ण न्यायालय द्वारा पारित दिनांक 15.09.2022 के प्रस्ताव का अवलोकन किया है। चूंकि पूर्ण न्यायालय ने उच्च न्यायालय को नैनीताल से स्थानांतरित करने का संकल्प लिया है, इसलिए, अब इसे अपने तार्किक निष्कर्ष पर आना चाहिए।
इस दिशा में प्रस्ताव पारित होने के बाद एक प्रक्रिया शुरू की गई और उच्च न्यायालय को स्थानांतरित करने के लिए हलद्वानी के गोलापुर में भूमि की पहचान की गई। गहन परीक्षण के बाद राज्य के अधिकारियों को पता चला कि हल्द्वानी के गौलापुर में जहां लगभग 26 हेक्टेयर भूमि की पहचान की गई है, वह घने जंगल से घिरी हुई है। जो उच्च न्यायालय की स्थापना के लिए निर्धारित भूमि का 75% है। इसलिए यह न्यायालय नया उच्च न्यायालय बनाने के लिए किसी भी पेड़ को उखाड़ना नहीं चाहता है।
जगह ऐसी हो कि कोर्ट को 50 सालों तक शिफ्ट न करना पड़े
बेंच ने फिर से हाईकोर्ट की शिफ्टिंग की प्रासंगिकता को बल देते हुए कहा कि प्रत्येक संस्था की स्थापना लंबे समय तक स्थापित रहने की दृष्टि से की जाती है, इसलिए हम भी चाहते हैं कि उच्च न्यायालय की स्थापना नए स्थान पर हो। ताकि अगले 50 वर्षों में इसे पुनः स्थानांतरित करने की आवश्यकता न पड़े। व्यापक जनहित, वादकारियों और युवा वकीलों को होने वाली कठिनाइयों, चिकित्सा सुविधाओं और कनेक्टिविटी की कमी और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि 75% से अधिक मामलों में, राज्य सरकार पक्षकार है और सरकार को भारी राशि खर्च करनी पड़ती है। उनका टीए एवं डीए आदि के मद्देनजर भी उच्च न्यायालय को नैनीताल से स्थानांतरित करना आवश्यक है।
चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी की पीठ ने मुख्य सचिव उत्तराखंड सरकार को उच्च न्यायालय की स्थापना के लिए न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए आवासीय आवास, कोर्ट रूम, कॉन्फ्रेंस हॉल, कम से कम 7,000 वकीलों के लिए चैंबर, कैंटीन, पार्किंग स्थल के लिए सबसे उपयुक्त भूमि का पता लगाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जिस भी क्षेत्र की पहचान की जाए, वहां अच्छी चिकित्सा सुविधाएं और अच्छी कनेक्टिविटी होनी चाहिए। यह पूरी प्रक्रिया मुख्य सचिव द्वारा एक महीने के भीतर पूरी की जाएगी और मुख्य सचिव 07.06.2024 तक अपनी रिपोर्ट इस न्यायालय को सौंपेंगे।
हाई कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की राय भी बहुत आवश्यक है, इसलिए, इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को 14.05.2024 तक एक पोर्टल खोलने का निर्देश दिया जाता है। वकील यदि उच्च न्यायालय के स्थानांतरण के लिए इच्छुक हैं तो “हां” चुनकर अपनी पसंद देने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि वे रुचि नहीं रखते हैं तो अपनी नामांकन संख्या, तिथि और हस्ताक्षर दर्शाकर “नहीं” कहें। वे 31.05.2024 तक अपने विकल्प का प्रयोग करेंगे और यह तिथि आगे नहीं बढ़ाई जाएगी।
इस प्रक्रिया में कोर्ट नागरिकों की राय शामिल कराना भी नहीं भूला। कोर्ट ने कहा कि बड़े पैमाने पर जनता की राय भी बहुत जरूरी है। चूंकि इस राज्य में 13 जिले हैं और वादी राज्य के हर हिस्से से आते हैं। जिसमें ऊंचाई पर स्थित बहुत दूरदराज के पहाड़ी इलाके भी शामिल हैं, इसलिए ऐसे वादी या व्यक्ति भी अपनी पसंद दे सकते हैं। वह भी अधिवक्ताओं की भांति संबंधित पोर्टल पर अपनी हां या ना दर्ज करा सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को अपना आधार कार्ड नंबर और तारीख भी दर्ज करनी होगी।
राय दर्ज करने की व्यवस्था 31.05.2024 तक उच्च न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रस्तुत की जाएगी। कोर्ट ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों सहित उत्तराखंड राज्य के पूरे क्षेत्र में व्यापक प्रसार वाले दो स्थानीय समाचार पत्रों (हिंदी और अंग्रेजी) में सार्वजनिक नोटिस जारी करने का निर्देश भी दिया है। इसमें दैनिक जागरण, अमर उजाला, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स में 14.05.2024 तक प्रचार प्रसार किया जाना है। ताकि विकल्पों का प्रयोग 31.05.2024 की समय सीमा पर या उससे पहले किया जा सके।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन दे सकता है भूमि का सुझाव, कमेटी गठित
चीफ जस्टिस ऑफ उत्तराखंड की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट बार एसोसिएशन हाई कोर्ट को स्थानांतरित करने के लिए भूमि का सुझाव भी दे सकता है। कोर्ट के मुताबिक इस संबंध में एक समिति का भी गठन किया जा रहा है, जिसमें उत्तराखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल, प्रमुख सचिव विधायी और संसदीय कार्य, प्रमुख सचिव गृह, उत्तराखंड राज्य शामिल होंगे। समिति में दो वरिष्ठ अधिवक्ता, एक उत्तराखंड राज्य बार काउंसिल द्वारा नामित, जबकि दूसरे बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष की ओर से नामित होंगे। इस समिति की अध्यक्षता उत्तराखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल करेंगे। यह समिति राय लेने के बाद 07.06.2024 तक अपनी रिपोर्ट इस न्यायालय को सौंपेगी।
आइडीपीएल में शिफ्टिंग के मौखिक आदेश से नाराज हुए वकील, अब निर्णायक मोड़ की तरफ कोर्ट
दरअसल, लिखित आदेश के बाहर आने से पहले कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऋतु बाहरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाई कोर्ट की एक बेंच को ऋषिकेश के आइडीपीएल में भेजने के मौखिक आदेश दिए थे। इसको लेकर कुमाऊं मंडल के तमाम अधिवक्ता भड़क उठे। सभी ने अलग-अलग ढंग और तर्कों के साथ विरोध जताया। दूसरी तरफ देहरादून बार एसोसिएशन और गढ़वाल मंडल के विभिन बार पदाधिकारी हाई कोर्ट के आदेश और नई कवायद के समर्थन में उतर पड़े हैं। गढ़वाल मंडल के बार पदाधिकारियों का कहना है कि करीब 75 प्रतिशत केस हाई कोर्ट में गढ़वाल मंडल से ही सूचीबद्ध होते हैं। समर्थन और विरोध का यह दौर शुक्रवार को भी जारी रहा।
44 साल पुरानी मांग को साकार करने को एकजुट हुए गढ़वाल मंडल के बार पदाधिकारी
देहरादून बार एसोसिएशन ने अधिवक्ताओं, वादकारियों एवं आम जनमानस से जुड़े अहम विषय पर गढ़वाल मंडल से सभी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष, सचिव और बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड सदस्यों समेत वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बैठक की। जिसमें उच्च न्यायालय की बेंच को ऋषिकेश आईडीपीएल स्थानांतरित करने पर विचार व जनमत प्राप्त किए गए। इस दौरान 22 बार एसोसिएशन में से 14 बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व सचिव मौजूद रहे एवं शेष 8 बार एसोसिएशन द्वारा सहमति हेतू लिखित प्रस्ताव भेजे गए।
गढवाल मंडल के बार एसोसिएशन के सचिव व अध्यक्ष द्वारा विशेष सभा की अध्यक्षता कर रहे देहरादून बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव शर्मा (बंटू) व सचिव राजबीर सिहं बिष्ट को प्रस्ताव की प्रति सौपीं गई। जिसमें सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि उच्च न्यायालय नैनीताल की बेंच नैनीताल से आईडीपीएल ऋषिकेश में जनहित के आधार पर शिफ्ट की जानी चाहिए। सभा में मौजूद बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड के 12 सदस्यों ने भी उच्च न्यायालय द्वारा नैनीताल से बेंच के आईडीपीएल ऋषिकेश में शिफ्ट करने के निर्देशों का समर्थन किया व अपनी सहमति जताई।
इसके अलावा सभा के दौरान उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया गया आदेश मंच से पढ़कर सुनाया गया तथा बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व सचिव ने आदेश का स्वागत करते हुए यह प्रस्ताव पारित किया मुख्य न्यायमूर्ति उच्च न्यायालय नैनीताल उत्तराखंड के आदेश का सर्वसम्मति से स्वागत किया जाता है। कहा गया कि यह आदेश आम जनमानस के हित में है और उच्च न्यायालय ने वादकारियों के हित को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित किया है। प्रस्ताव में यह भी निर्णित किया गया कि बार एसोसिएशन देहरादून व अन्य बार एसोसिएशन सभी जन-प्रतिनिधि, ट्रेड यूनियंस, ट्रस्ट अन्य संस्थाओं व आम जनमानस से भी प्रस्ताव व समर्थन की मांग करेगी।
बार एसोसिएशन देहरादून गढवाल मंडल की अन्य बार एसोसिएशन व बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड के सम्मानित 13 सदस्य एक प्रतिनिधि मंडल बनाकर अपना प्रस्ताव व आभार मुख्य न्यायधीश महोदया उच्च न्यायालय उत्तराखंड नैनीताल को प्रेषित करेगी। विशेष सभा की अध्यक्षता राजीव शर्मा (बंटू) अध्यक्ष, बार एसोसिएशन देहरादून एवं संचालन राजबीर सिहं बिष्ट सचिव बार एसोसिएशन देहरादून द्वारा किया गया। सभा में उत्तराखंड बार कौंसिल के सदस्य कुलदीप सिहं (वाईस चेयरमैन) सुरेंद्र पुंडीर (सदस्य), एमएम लांबा (सदस्य), सुखपाल सिहं (सदस्य), योगेंद्र तोमर, (सदस्य), राजकुमार चौहान (सदस्य), चंद्रशेखर तिवारी (सदस्य), रॉव मुनफैत अली (सदस्य), राकेश गुप्ता, (सदस्य), अनिल पंडित (सदस्य), रंजन सोलंकी (सदस्य), राजबीर सिहं (सदस्य) एवं वरिष्ठ अधिवक्तागण प्रेमचंद शर्मा, टीएस. बिंद्रा, अरुण सक्सेना, मनमोहन कंडवाल एवं अन्य वरिष्ठ अधिवक्तागण मौजूद रहे।