भूकंप-धरातलीय हलचल और रेडॉन गैस में संबंध, भविष्यवाणी की दिशा में आगे बढ़े दून के वैज्ञानिक
देश में पहली बार बड़ी धरातलीय हलचल का संबंध रेडॉन गैस के असामान्य रिसाव से मिला, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा शोध में सामने आई अहम बातें
Amit Bhatt, Dehradun: वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा अध्ययन में देश में पहली बार यह बात सामने आई है कि रेडॉन गैस के असामान्य रिसाव का संबंध बड़ी धरातलीय हलचल से है। यही रेडॉन गैस भूकंप के दौरान भी असामान्य व्यवहार करती है। ऐसे में रेडॉन गैस की दिशा में शोध कार्यों को बढ़ाकर न सिर्फ एवलॉन्च या अन्य किसी बड़ी धरातलीय हलचल का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, बल्कि भूकंप की भविष्यवाणी की दिशा में भी बड़ी सफलता हाथ लग सकती है। क्योंकि, रेडॉन गैस का असमान्य रिसाव बड़ी धरातलीय हलचल से 02 से 03 दिन पहले ही होने लगता है। इतना अधिक समय न सिर्फ भविष्यवाणी के लिहाज से पर्याप्त है, बल्कि इस अवधि में आपदा प्रबंधन के लिए भी समुचित समय मिल जाएगा। दून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा अध्ययन के बाद देश और दुनिया के वैज्ञानिक जगत को नया आधार मिलेगा। ”सिस्मिक एंड रेडान सिग्नेचर्स: ए मल्टीपैरामीट्रिक एप्रोच टु मानिटर सर्फेस डायनेमिक्स आफ ए हैजार्ड्स 2021 रॉक-आइस एवलांच, चमोली हिमालय” नामक इस शोध को प्रतिष्ठित जर्नल अर्थ सर्फेस प्रोसेसेज एंड लैंडफॉर्म्स में प्रकाशित किया जा चुका है। इस शोध में संस्थान के निदेशक डॉ कालाचांद साईं, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अनिल तिवारी, डॉ अमित कुमार व ज्योति तिवारी ने अहम भूमिका निभाई। नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आप पूरा शोध पत्र पढ़ सकते हैं। https://doi.org/10.1002/esp.5869
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक अनिल तिवारी के मुताबिक फरवरी 2021 की चमोली आपदा के तमाम कारणों को अध्ययन किया जा रहा था। इसके लिए संस्थान के विभिन्न सिस्मोमीटर के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। कुछ आंकड़े टिहरी जिले के घुत्तू में स्थापित की गई भूकंप वेधशाला से भी लिए गए। इस दौरान वेधशाला के रेडान गैस डिटेक्टर के आंकड़ों का भी प्रयोग किया गया। इन आंकड़ों को संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ नरेश कुमार की ओर से संग्रहीत किया गया है। जिसमें पता चला कि जिस धौली गंगा घाटी के रौंथी पर्वत से जब हैंगिंग ग्लेशियर टूटकर नीचे गिरा और उससे जलप्रलय निकली तो इस आपदा के संकेत 02-03 दिन पहले ही रेडान गैस के असमान्य रिसाव के रूप में मिलने लगे थे। दरअसल, यह पूरा क्षेत्र ऐतिहासिक भूकंपीय फॉल्ट लाइन एमसीटी (मेन) सेंट्रल थ्रस्ट के अंतर्गत आता है। यहां यूरेनियम की चट्टाने हैं। इन चट्टानों से रेडान गैस निकलती रहती है। फॉल्ट होने के चलते चट्टानों में दरारें हैं और भूगर्भीय हलचल या अन्य धरातलीय हलचल में ये दरारें कुछ और फैल जाती हैं। जिससे रेडान गैस सामान्य से अधिक मात्रा में रिलीज होती हैं।
वरिष्ठ विज्ञानी डा अनिल तिवारी के मुताबिक चमोली आपदा भले ही 07 फरवरी को आई, लेकिन रौंथी पर्वत से हिमखंड टूटने का क्रम दो-तीन दिन पहले से शुरू हो गया था। इस टूटन से जो कंपन्न हुई, उसने रेडान गैस का रिसाव बढ़ा दिया। इस शोध को आगे बढ़ाया गया और वर्ष 2015 के नेपाल के 7.8 मैग्नीट्यूट के भूकंप के साथ भी इसका संबंध तलाशा गया। पता चला कि नेपाल के उस विनाशकारी भूकंप से दो-तीन दिन पहले भी रेडान गैस अत्यधिक मात्रा में बाहर निकली। रेडा गैस का यह असमान्य रिसाव वर्ष 2017 में रुद्रप्रयाग में आए 5.7 मैग्नीट्यूट के भूकंप के दौरान भी पाया गया। भूकंप और रेडॉन गैस के असामान्य रिसाव को लेकर पहले भी कुछ काम किए गए हैं, लेकिन सतह की हलचल के साथ ही इसका कनेक्शन मिलने के बाद हर तरह की बड़ी हलचल और रेडॉन के व्यवहार की पुष्टि को अधिक बल मिला है। वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक इस अध्ययन से उत्साहित हैं और माना जा रहा है कि ताजा अध्ययन किसी बड़े सफल परिणाम की शुरुआत भी हो सकता है।
रेडान का नहीं मिलता रियल टाइम डाटा, अब होगा प्रयास
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अनिल तिवारी के मुताबिक रेडान गैस के रिसाव के आंकड़े अभी रियल टाइम के आधार पर प्राप्त नहीं किए जाते हैं। अभी रियल टाइम डाटा सिर्फ ब्रॉडबैंड सिस्मोमीटर से प्राप्त होते हैं। हालांकि, भूकंप या किसी भी बड़ी भूगर्भीय हलचल से रेडान गैस के संबंध को देखते हुए इसकी अहमियत बढ़ गई है। निकट भविष्य में रेडान गैस के रिसाव के रियल टाइम डाटा प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे।
1000 से अधिक बीक्यू घनमीटर तक रिलीज हुई रेडान गैस
वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक चमोली आपदा के दौरान छह और सात फरवरी को रेडान गैस की निकासी 1000 तक बीक्यू/घन मीटर) पाई गई। जिसे 15 मिनट के अंतराल पर रिकार्ड किया गया। इसे विज्ञानियों ने अत्यधिक माना है। ताजा अध्ययन के बाद रेडॉन गैस के रिसाव में आ रहे बदलाव को जानने के प्रति वाडिया के वैज्ञानिक अधिक तत्पर नजर आ रहे हैं।
धौली गंगा वैली में स्थापित किया जाएगा ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन, 15 करोड़ रुपये स्वीकृत
आपदा के लिहाज से चमोली जनपद को प्रदेश में सर्वाधिक संवेदनशील माना गया है। वर्ष 2021 की आपदा के बाद इस क्षेत्र में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन स्थापित करने की कवायद की जा रही है। ताकि किसी भी धरातलीय और पर्यावरणीय बदलाव की रियल टाइम जानकारी मिल सके। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डा कालाचांद साईं के मुताबिक इस काम के लिए केंद्र सरकार ने 15 करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। वेदर स्टेशन स्थापित करने की दिशा में शीघ्र धरातलीय करवाई शुरू की जाएगी।
चमोली आपदा पर एक नजर और जलप्रलय से क्या पड़ा असर
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान वी अन्य वैज्ञानिक एजेंसियों के मुताबिक चमोली आपदा की फली घंटी छह फरवरी की मध्य रात्रि के बाद करीब ढाई बजे बजी थी। तब 5600 मीटर की ऊंचाई पर रौंथी पर्वत से हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने का क्रम शुरू हुआ। हिमखंड टूटकर नीचे रौंथी गदेरे (समुद्र तल से ऊंचाई 3800 मीटर) में अपने साथ भरी मलबा लेकर गिरा। जिसका वेग 55 मीटर प्रति सेकंड था। इसके बाद रैणी गांव के पास ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट (आपदा में तबाह हो चुका) तक यह वेग 27 मीटर प्रति सेकंड हो गया। वहीं, तपोवन-विष्णुगाड पावर प्रोजेक्ट तक जलप्रलय की रफ्तार 13 मीटर रह गई थी और पीपलकोटी तक यह वेग 09 मीटर प्रति सेकंड रह गया था। इस आपदा में 206 लोग लापता हो गए थे, जिनमें से 89 के शव बरामद करते हुए 52 की शिनाख्त की गई। 37 मानव अंग भी मलबे में पाए थे। आपदा में 520 मेगावाट क्षमता के तपोवन-विष्णुगाड पावर प्रोजेक्ट को भारी क्षति पहुंची थी। इसको मिलाकर तमाम अन्य अवस्थापनाओं के रूप में 2000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ।