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सरकार का खनन प्रेम, डीएम ने माफ कर डाले 50 करोड़, कोर्ट ने पूछा नियम

नैनीताल हाई कोर्ट ने पूछा, किस नियम से जिलाधिकारी ने स्टोन क्रशरों के माफ किए 50 करोड़, सचिव और निदेशक खनन देंगे जवाब

Amit Bhatt, Dehradun: जिस भी कारोबार के साथ माफिया लॉबी जुड़ी होती है, उसके प्रति सरकार और सरकार के कारिंदों का विशेष लगाव देखने को मिल ही जाता है। खनन कारोबार भी इस मामले में अपवाद नहीं है। उत्तराखंड में भी सरकार का खनन प्रेम देखने को मिला। वर्ष 2016-17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी ने खनन करोबारियों पर लगाए गए 50 करोड़ रुपये के जुर्माने को ही माफ कर दिया था। अब मामला कोर्ट में है तो अधिकारी सकते में हैं। नैनीताल हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती ने सरकार से पूछा है कि जिलाधिकारी ने किस नियम के तहत स्टोन क्रशरों पर लगाए गए 50 करोड़ रुपये के जुर्माने को माफ कर दिया। यह जवाब सचिव खनन और निदेशक खनन से मांगा गया है।

सामाजिक कार्यकर्ता निवासी चोरगलिया (नैनीताल) भुवन पोखरिया ने स्टोन क्रशरों पर लगाए गए जुर्माने के 50 करोड़ रुपये माफ करने के विरुद्ध हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। जिसमें उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने स्टोन क्रशरों के अवैध खनन और भंडारण के मामले में लगाए गए 50 करोड़ रुपये के जुर्माने को माफ किया है। जिलाधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रशरों को माफी दी, जिन पर भारी भरकम जुर्माना था। कम जुर्माने वालों को माफी नहीं दी गई।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि इस प्रकरण की शिकायत मुख्य सचिव और सचिव खनन से भी की गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है। शासन से इस अधिकार को लेकर लिखित जवाब मांगे जाने पर भी चुप्पी साध ली गई। इसके बाद जब उद्योग विभाग से आरटीआई में जुर्माने की माफी के अधिकार संबंधी नियमावली मांगी गई तो कहा गया कि सूचना धारित नहीं है।

वर्ष 2020 में मुख्य सचिव से इस जवाब के अलोक में शिकायत की गई थी। जिस पर औद्योगिक विकास सचिव ने डीएम नैनीताल और वहां से उपजिलाधिकारी हल्द्वानी को जांच सरका दी गई। औद्योगिक विकास विभाग ने 21 अक्टूबर 2021 को जांच आख्या तलब भी की थी, मगर आख्या नहीं दी गई। तब से अब तक मामला आधार में ही लटका है। वहीं, हाई कोर्ट में मंगलवार को की गई सुनवाई में सचिव खनन और निदेशक खनन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े थे।

कोर्ट ने अधिकारियों से पूछा कि क्या जिलाधिकारी किसी नियम के तहत जुर्माने की राशि माफ कर सकते हैं? कोर्ट को इस बारे में अवगत कराया जाए। खंडपीठ ने इस बाबत अगले मंगलवार से पहले जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट के स्पष्ट रुख के बाद अब उत्तराखंड शासन की मशीनरी हाथ-पैर मारने में जुट गई है। बताया जा रहा है कि अधिकारियों ने जुर्माने और उसके क्रम में दी गई माफी की पत्रावली पर माथा-पच्ची शुरू कर दी है।

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