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पहाड़ी आइएएस के पीछे पड़ा ‘मुखिया’ का सलाहकार, बैकडोर की नियुक्तियों से जुड़ा है मामला

मुखिया के आगे-पीछे मंडराने वाले सलाहकर की इन दिनों सत्ता और शासन के गलियारों में खूब हो रही चर्चा, चिढ़े बैठे हैं कई अफसर

Amit Bhatt, Dehradun: सत्ता और शासन के गलियारों में इन दिनों ‘मुखिया’ के एक कथित सलाहकार की बातें खूब चटखारे लेकर सुनी और सुनाई जा रही हैं। चर्चा सलाहकार के कामों की नहीं, बल्कि कारनामों को लेकर की जा रही है। यह सलाहकार महोदय इन दिनों सरकार के एक बेहद भरोसेमंद पहाड़ी आइएएस के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। सलाहकार वरिष्ठ नौकरशाह को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। या यूं कहें कि यह अफसर को नीचा दिखाने का मौका तैयार करने में लगे हैं। दरअसल, सलाहकार महोदय मुखिया के कार्यालय का रौब गांठकर अफसर पर बैकडोर से कुछ फर्जी नियुक्तियां कराने का दबाव बना रहे थे। सचिव साहब ने साफ मना किया तो सलाहकार उनसे खार ही खाकर बैठ गए हैं।

साफ सुथरी छवि के अधिकारी के साथ सलाहकार ने जबरन तब दुश्मनी शुरू की, जब अफसर के पास प्रौद्योगिकी विकास से संबंधित अहम जिम्मेदारी थी। सेटिंग-गेटिंग के काम में पारंगत कथित सलाहकार ने तभी नौकरी में चहेतों को चिपकाने के लिए दबाव बनाना शुरू किया था। अब वरिष्ठ अधिकारी क्यों इस तरह की फर्जी नियुक्तियों पर अपनी मुहर लगाते। उन्होंने महाशय जी को साफ मना कर दिया। शायद यह बात सलाहकार के दिल पर लग गई।

इसके बाद तो सलाहकार ने भरी मीटिंग में अफसर को नीचा दिखाने का काम शुरू कर दिया। अफसर को लेकर मुखिया के भी खूब कान भरे होंगे। शायद इसी का नतीजा रहा होगा, जो वरिष्ठ नौकरशाह से दो भारी भरकम विभाग हटा लिए गए। हालांकि, अफसर ने सलाहकार की बार-बार की टोका-टाकी से तंग आकर एक रोज अपने आका के सामने ही उनसे सभी विभाग हटा लेने की गुजारिश तक कर डाली थी।

पिछले कार्यकाल के अल्प समय पर ही यह ‘नायब नगीना’ आका के हाथ लगा था। तब यह सलाहकार दूर की एक प्राइवेट कंपनी की नौकरी छोड़कर उत्तराखंड आ गए थे। आते ही चंट सलाहकार ने आका के सोशल प्लेटफॉर्म और प्रचार-प्रसार की कमान संभाल ली थी। पिछली सरकार में भी इन महाशय को एक शिक्षण संस्थान में मध्यम श्रेणी का ग्रेड-पे देकर पद से नवाजा गया था।

अब आका दोबारा ताकतवर होकर लौटे तो जैसे सलाहकार की बांछें ही खिल गईं। लेकिन, महाशय कम में कहां मानने वाले थे। उन्होंने तो जीएसटी गुट बनाकर अधिकारियों पर तेवर झाड़ने शुरू कर दिए थे। तेवर तक भी ठीक है, लेकिन हनक झाड़कर अनाप-सनाप काम करवाने की प्रवृत्ति कहां तक ठीक रहती। अब तो अफसरों में सलाहकार का दबी जुबान में विरोध भी होने लगा है।

अभी जुबान दबी जरूर है, लेकिन कभी तेज हुई तो शायद आका को भी यह जुर्रत नागवार गुजरे। किस्सा तो यह भी है कि इन्हीं सलाहकार ने एक चर्चित आइएएस को उनके पुराने विभाग वापस दिलवाए और आका कैंप में पुनः स्थापित करवाया। सुना है कि इस एवज में मोटी रश्म अदायगी भी की गई। बताया जा रहा है कि अब यही सलाहकार अपने चर्चित ‘जीएसटी’ गुट से भी अलग होकर अपनी अलग हनक तैयार करने में जुट गए हैं।

भस्मासुर की कहानी तो सभी ने सुनी होगी। अति महत्वकांक्षा कहां तक सुपाच्य होती है, यह भी सभी जानते हैं। क्योंकि, यह महाशय अब एक-एक कर आका के करीबी अधिकारियों को भी ठिकाने लगाने में जुट चुके हैं। ‘जीएसटी’ गुट के 02 अधिकारी तो सलाहकार के बढ़ते प्रभाव से अभी से आशंकित नजर आने लगे हैं। अफसरों के बीच ऐसी बेचैनी सही भी नहीं है। क्योंकि, कुछ अफसर तो इतने चिढ़े बैठे हैं कि निजाम बदलने तक का इंतजार कर रहे हैं।

वरिष्ठ नौकरशाहों को कैसे हांक सकता है प्राइवेट व्यक्ति?
मुखिया जब वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक लेते हैं तो यह सलाहकार भी उसमें पूरी हनक के साथ भाग लेते हैं। सिर्फ भाग ही नहीं लेते, बल्कि वरिष्ठ अफसरों को दिशा-निर्देश देने से भी नहीं चूकते हैं। आखिर कोई प्राइवेट व्यक्ति कैसे सरकारी अफसरों को इस तरह दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। जिन अफसर के पीछे सलाहकार हाथ धोकर पड़े हैं, उनके विभाग में भी यह उन्हें तरह-तरह के निर्देश देते रहते रहते थे। कोई वरिष्ठ अधिकारी कैसे इस तरह की हिमाकत को बर्दाश्त कर सकता है। सरकारी व्यवस्था के जानकार बताते हैं कि बाहरी व्यक्ति की ऐसी जुर्रत से बेहतर रिजल्ट मिलने की जगह, कामकाज प्रभावित होने का खतरा अधिक रहता है।

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