उत्तराखंड

वन विभाग के जंगलराज पर उत्तराखंड सरकार चुप, अब केंद्र ने चलाया चाबुक

मुनस्यारी ईको हट घोटाले में केंद्र ने राज्य सरकार से मांगी कार्रवाई की रिपोर्ट, अभियोजन चलाने के दिए निर्देश

Rajkumar Dhiman, Dehradun: मुनस्यारी के खलिया आरक्षित वन क्षेत्र में बिना अनुमति पक्की संरचनाओं के निर्माण पर केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने राज्य सरकार को पत्र भेजकर विस्तृत जांच रिपोर्ट और दोषियों पर की गई कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया है। मंत्रालय ने साफ निर्देश दिए हैं कि इस मामले में अभियोजन प्रक्रिया तत्काल शुरू की जाए और दोषियों को किसी भी तरह की राहत न मिले।इस घोटाले में तत्कालीन डीएफओ पिथौरागढ़ डॉ. विनय भार्गव मुख्य आरोपी हैं। इस प्रकरण के आरोपी को मंत्री जी का दामाद बताया जा रहा है।

आईएफएस चतुर्वेदी की रिपोर्ट पर केंद्र का तत्काल संज्ञान
यह कार्रवाई मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) संजीव चतुर्वेदी की 500 पृष्ठों से अधिक की जांच रिपोर्ट के आधार पर हुई है। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि मुनस्यारी ईको हट निर्माण के दौरान भारतीय वन अधिनियम-1927 और वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम-1980 का खुला उल्लंघन किया गया। रिपोर्ट में डॉ. भार्गव को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए आपराधिक मुकदमा दर्ज करने और मामले को सीबीआई व ईडी जांच के लिए सौंपने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि प्रकरण अनुसूचित अपराधों की श्रेणी में आता है।

करोड़ों का खेल, नियमों की अनदेखी
वर्ष 2019 में 1.63 करोड़ रुपये की लागत से बने इन ईको हट्स का निर्माण कई गंभीर अनियमितताओं से घिरा रहा।बिना टेंडर प्रक्रिया निजी फर्म को मनमाना ठेका।आय का 70% हिस्सा निजी संस्था को हस्तांतरित। स्थायी संरचना (सीमेंट-मोर्टार) का निर्माण, जबकि अनुमति केवल अस्थायी ढांचे की थी। फर्जी खर्च दिखाने के लिए 90 किमी फायरलाइन दर्शाई गई, जबकि योजना में केवल 14.6 किमी दर्ज थी। राज्य सरकार ने 18 जुलाई को डॉ. भार्गव को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने अब और कड़ी कार्रवाई का संकेत दिया है।

वन मुख्यालय, उत्तराखंड।

पहले भी विवादों में रहे भार्गव
डॉ. भार्गव का नाम इससे पहले भी विवादों में आ चुका है। वर्ष 2015 में वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगा था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उन्हें “अनुभवहीन” बताते हुए मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह भी चर्चा रही है कि पूर्व की सरकारों ने उन्हें संरक्षण प्रदान किया।

राज्य सरकार को लगे सात माह, तब भी सिर्फ जवाब तलब
घपले घोटाले के इस चक्र व्यूह में वर्षों पहले विभागीय जांच हुई और रिपोर्ट शासन को सौंपी गई, लेकिन मामले में बस लीपापोती होती रही। शासन ने करीब एक माह पूर्व इस प्रकरण में आरोपी से जवाब तलब किया। जो कि करीब फाइनल रिपोर्ट मिलने के सात माह बाद की गई कार्रवाई थी। इससे शासन की मंशा पर भी सवाल उठते हैं। पहली बात तो यह कि जांच रिपोर्ट मिलने के बाद तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं की गई। साथ ही ये भी बड़ा सवाल है कि विभागीय जांच में किसी के दोषी पाए जाने के बाद सिर्फ शासन आरोपी से कारण पूछ रहा है। हालांकि, इस मामले में उत्तराखंड सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन अब केंद्र की ओर से कार्रवाई के निर्देश मिलने के बाद भ्रष्टाचार पर प्रहार की उम्मीद है।

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