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दून के बिल्डर की 1100 बीघा जमीन ईडी लेगा कब्जे में, कई सौ करोड़ है कीमत

पर्ल ग्रुप के 60 हजार करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े से जुड़ा है मामला, देर रात तक जारी रही ईडी की छापेमारी

Amit Bhatt, Dehradun: 60 हजार करोड़ रुपये के पर्ल एग्रो कॉर्पोरेशन लि. (पीएसीएल) से जुड़े घोटाले में दून के बिल्डर मिकी अफजल के ठिकानों पर की गई छापेमारी में ईडी के हाथ अहम सुराग लगे हैं। ईडी को बिल्डर की देहरादून में अलग-अलग जमीनों का पता चला है, जिनकी कीमत कई सौ करोड़ रुपये में है। माना जा रहा है कि ईडी इन अचल संपत्तियों को अटैच कर सकता है। जिससे दून की बिल्डर लॉबी में भी खलबली की स्थिति है।

करीब 60 हजार करोड़ रुपये के चिट फंड (पौंजी स्कीम) घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने दून में बिल्डर मिकी अफजल के कैनाल रोड स्थित भवन/प्रतिष्ठान के अलावा इसी क्षेत्र में एक वेडिंग पॉइंट/फार्म पर भी जांच की। इस दौरान ईडी ने बड़ी संख्या में दस्तावेज और इलेक्ट्रानिक डिवाइस कब्जे में ली। देर रात तक जारी रही इस कार्रवाई में ईडी को बिल्डर अफजल के नाम पर कई सौ करोड़ रुपये की जमीनों के दस्तावेज भी मिले।

ईडी सूत्रों के मुताबिक मिकी अफजल की चकराता रोड स्थित अलग-अलग क्षेत्रों में करीब 1100 बीघा जमीन हैं। इतनी बड़ी तादाद में जमीनें देखकर ईडी अधिकारी भी सकते में आ गए। बताया जा रहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत इन जमीनों को अटैच किया जा सकता है। इसके अलावा भी ईडी को कई अन्य चल और अचल संपत्ति की जानकारी मिली है। सूत्रों की मानें तो बिल्डर मिकी अफजल ने पर्ल ग्रुप स्कैम के बाद तेजी से संपत्ति बटोरी।

पर्ल ग्रुप घोटाला क्या है? कितने हुए शिकार?
पर्ल एग्रो कॉर्पोरेशन लि. (पीएसीएल) के 60 हजार करोड़ रुपये के स्कैम को जानने से पहले उस निर्मल सिंह भंगू के बारे में जानना जरूरी है, जो पंजाब के एक गांव (रोपड़ में चमककौर साहिब) में साइकिल से दूध बेचने का काम करता था। विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ बड़ा करने के इरादे से वह वर्ष 1970 में कोलकाता चला गया और पहले पीरलेस नाम की चिटफंड कंपनी खोली। गोल्डन फारेस्ट इंडिया लि. (यह कंपनी भी हजारों करोड़ का फ्रॉड कर चुकी) से जुड़कर काम सीखा। करीब 10 साल अलग-अलग कंपनियों में काम सीखने के बाद वर्ष 1980 में पर्ल ग्रुप शुरू किया।

कंपनी ने स्वयं और तमाम सहयोगियों की मदद से 05 करोड़ से अधिक निवेशकों से 60 हजार करोड़ रुपये जुटाए। उन्हें मोटे मुनाफे का झांसा दिया गया और बाद में रकम हड़प ली गई। यह राशि सेबी के नियमों के विपरीत एकत्रित की गई थी, लिहाजा मामला खटाई में पड़ गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी की संपत्तियों को बेचकर/नीलाम कर निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए वर्ष 2015-16 में जस्टिस आरएम लोढ़ा कमेटी गठित की।

दूसरी तरफ सीबीआई और ईडी ने भी कंपनी पर शिकंजा कसना शुरू किया। ताकि कंपनी और उसके सहयोगियों की चल-अचल संपत्ति को जब्त कर जस्टिस लोढ़ा कमेटी के माध्यम से निवेशकों को राहत दिलाई जा सके। समिति के माध्यम से 878 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जुटा ली गई है। सूत्रों के मुताबिक अब तक 1.5 करोड़ निवेशकों का रिफंड आ चुका है। हालांकि, अभी भी बड़ी संख्या में निवेशक अपने पैसे की वापसी की राह ताक रहे हैं।

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