भूस्खलन के तीन प्रकार, दो से हम होते हैं दो चार
भूस्खलन को वैज्ञानिक भाषा में समझना हर एक को है जरूरी, जानकारी से ही निकलेगी बचाव की राह
Prof. MPS Bisht: आजकल पहाड़ों में आए दिन भूस्खलन से हर एक व्यक्ति बहुत परेशान है। उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश व अन्य पर्वतीय राज्यों में इस मानसून सीजन में कुछ अधिक ही भूस्खलन की घटनाएं सामने आई हैं। तमाम जगह से इस तरह की सूचनाएं सामने आ रही हैं कि कहीं चट्टान खिसक रही है, कहीं दरार पड़ गई है और कहीं जमीन खिसक गई है…आदि आदि। ऐसे में भूस्खलन की घटनाओं से बचाव के लिए पहले उसे विज्ञान की भाषा में समझना जरूरी है।
सामान्यतः भूस्खलन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो कि धरती के उस भू भाग में होती है, जो सामान्य सतह से ऊपर उठी हुई होती है। यानी मैदानी भागों को छोड़ कर पहाड़ों में या फिर गहरी खाईयों में। मैदानी भागों में इसे भू धंसाव कहते हैं। जो कि भूमिगत मार्गो, भूमिगत खदानों, भूमिगत नालों की ऊपरी सतह के सीधे नीचे धंसने से उत्पन्न होता है। लेकिन, हमारे पहाड़ों में भूस्खलन की घटनाएं सामने आती हैं, जो सामन्यतः तीन प्रकार के होते है। एक जो कि नमी वाले स्थानों में जमीन की ऊपरी सतह पर होते हैं, यहां की मिट्टी बहुत धीमी गति से सालभर निचले ढाल की ओर खिसकती रहती है। इसे मृदा अवसर्पण या soil creep कहते हैं। यह प्रक्रिया ऊंचे बुग्यालों, नमीयुक्त घास वाले चारागाहों में ज्यादातर देखने को मिलती है। इसके अलावा दो प्रकार के और भूस्खलन होते हैं, जिनसे हम अक्सर दो चार होते रहते हैं।
पहला: (फोटो 1) कहलाता है Debris Slide/मालवा (कंकड़, पत्थर और मिट्टी) स्खलन, चंद मिनटों में मलवे का किसी सतह के सापेक्ष ढलान पर नीचे की ओर गिरना।
दूसरा: (फोटो 2) Rock fall/ चट्टानों का गिरना। तीव्र वेग से चट्टानों का ऊपर से नीचे गिरना/लुढ़कना। पहाड़ी ढाल पर मिट्टी व मालवा कब फिसलता है? जब उसकी धरती व चट्टानों से या मिट्टी के कणों की आपसी, पकड़ कमजोर हो जाती है तथा गुरुत्वाकर्षण बल उस पर ज्यादा हावी हो जाता है। पकड़ कमजोर होने के कई महत्वपूर्ण कारक हैं, जैसे पानी, भूकंप, मानव हस्तक्षेप, भारी वाहनों से कंपन्न व विस्फोटकों का प्रयोग और मलबे के ढाल की प्रवणता (Change in Angle of Repose यानी ढाल 35° से अधिक होने पर) वहीं, चट्टान कब गिरते हैं…? उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त इनमें दरार उत्पन्न होने से, चट्टानों के भौतिक विखंडन (Physical Weathering) व रासायनिक अपक्षयण (Chemical Weathering) के कारण इनके समयन्तराल में सड़ने, गलने एवं टूटने से। वहीं मानव जब इसकी जद में आता है तो हम इसे आपदा का नाम देते हैं। भूस्खलन के प्रकार व उनके कारक समझने के बाद अब यह जानना जरूरी है की इनसे बचा कैसे जाए? भूस्खलन के खतरे को टाला कैसे जाए? भूस्खलन की श्रृंखला के अगले चरण में हम आपको इस बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।
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नोट: लेखक एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में भू-विज्ञान विषय के प्रोफेसर हैं।