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अधिवक्ता देवराज के घर पर तैयार की फर्जी रजिस्ट्री, रक्षा मंत्रालय की 55 बीघा भूमि का मामला

हुमायूं परवेज और समीर कामयाब ने सहारनपुर के रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकार्ड रूम में दाखिल की फर्जी रजिस्ट्री, रिकार्ड रूम के कर्मचारी देव कुमार, सना और शमशाद भी बने भागीदार

Amit Bhatt, Dehradun: वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय सिंह के मुताबिक फर्जी रजिस्ट्री मामलों में गठित एसआईटी टीम को मुख्य अभियुक्त हुमायूं परवेज को गिरफ्तार किया गया था। जिससे पूछताछ में उक्त प्रकरण में कुछ अन्य व्यक्तियों के नाम भी प्रकाश आए। जिनके विरुद्ध साक्ष्य जुटाते हुए देहरादून के वरिष्ठ अधिवक्ता देवराज तिवारी को गिरफ्तार किया गया। अभियुक्त देवराज ने पूछताछ में बताया कि वर्ष 2014 में वह मदन गोठन शर्मा स्वर्गीय गिरधारी लाल निवासी दूधली हाल निवासी दिल्ली की तरफ से प्रश्नगत भूमि खसरा नंबर 594, 500 मौजा माजरा का वाद सिविल सीनियर डिवीजन में कैंट बोर्ड के विरुद्ध लड़ रहा था। किसी कारण वर्ष 2017 में उसके द्वारा मदन मोहन शर्मा के वाद को वापस ले लिया था। वह समीर कामयाब के गोल्डन फॉरेस्ट के केस को भी लड़ रहा था। एक बार समीर हुमायूं परवेज को उसके चैंबर में लाया था। तब उसने बताया कि माजरा की एक जमीन है, जिसका केस वह मदन मोहन शर्मा दूधली वाले के नाम से लड़ रहा हूं। अभियुक्त ने समीर से कहा कि इस केस में जीतने के चांस कम है, लिहाजा कोई ऐसा आदमी मिल जाए, जिसके नाम रजिस्ट्री हो जाए तो काम हो जाएगा।

पत्रकार वार्ता के दौरान। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, अजय सिंह, साथ में अन्य अधिकारीगण और पुलिस टीम।

कबाड़ी से लिए पुराने पेपर, रजिस्ट्री कर्मी देव कुमार ने कराई रिकार्ड रूम में घुसपैठ
समीर की सहारनपुर में रजिस्ट्रार ऑफिस में पहचान थी तो उसने वहां से जरूरी जानकारी जुटा ली और फिर कुछ दिन बाद अभियुक्त तिवारी, समीर, हुमायूं परवेज तथा समीर का साला शमशाद, समीर के किराये के घर सी-15 टर्नर रोड पर मिले। जहां यह किया गया कि उक्त जमीन की रजिस्ट्री उसके मूल मालिक लाला सरणी मल से हुमायूं के पिता जलीलू रहमान तथा लाला मणि राम से अभियुक्त देवराज के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम पर करवाई जाएगी। बाद में जो भी पैसा मिलेगा उसको आपस में बांट लेंगे। योजना के मुताबिक समीर कामयाब पुराने पेपर लेने के लिए सहारनपुर गया और अब्दुल गनी कबाड़ी की दुकान से पुरानी रद्दी के कोरे पेपर लाया जो रजिस्ट्री बनाने में काम आने थे। उसके बाद हुमायूं और समीर कामयाब सहारनपुर रिकॉर्ड रूम में फर्जी रजिस्ट्री लगाने से संबंधित जानकारी लेने सहारनपुर गए। जहां उन्होंने देव कुमार पुत्र श्री शोभा राम निवासी मोहल्ला नवीन नगर सहारनपुर, जो रिकार्ड रूम में काम करता था तथा पहले से ही समीर का परिचित था, से रजिस्ट्री बदलने के संबंध में जानकारी ली। उसके द्वारा बताया गया कि वर्ष 1958 की जिल्द का कोई इंडेक्स नहीं बना हुआ है, तुम इसी वर्ष की फर्जी रजिस्ट्री बना कर तैयार कर लो और साइज के लिए देव कुमार द्वारा किसी अन्य रजिस्ट्री की फोटो स्टेट दे दी। उसके बाद ये दोनों समीर कामयाब के घर पहुंचे।

फर्जी रजिस्ट्री के पेपर चाय में डुबाए, देवराज के घर पर किया तैयार
फर्जी रजिस्ट्री तैयार करने के लिए पेपर की बिल्कुल उसी साइज की कटिंग की गई और लाइनिंग समीर के द्वारा की गई। इसके बाद छपाई समीर कामयाब ने कार्ड वालों के यहां से करवाई। उसके बाद फर्जी रजिस्ट्री के पेपर को कॉफी या चाय के पानी में डुबा कर उन्हें सुखाते हुए उन पर प्रेस कर तैयार किया। फिर लाला सरणीमल एवं लाला मणिराम की 55 बीघा जमीन खसरा नंबर 594, 595 की वर्ष 1958 की फर्जी रजिस्ट्री तैयार कर डाली। हुमायूं के पिताजी जलीलू रहमान एवं अभियुक्त देवराज के पिता अर्जुन प्रसाद के नाम पर देशराज के घर पर सभी की उपस्थिति में तैयार की गई। अंग्रेजी की ड्राफ्टिंग अभियुक्त तिवारी ने तैयार की, जिसे समीर कामयाब द्वारा बुलाई गई लड़की सना सैफी पुत्री इकबाल निवासी आजाद कॉलोनी, टर्नर के द्वारा रजिस्ट्री के कागजों में नकल की गई। यह काम सना ने समीर कामयाब के कहने पर किया था।

रिकार्ड रूम में फर्जी रजिस्ट्री लगाने के बाद कब्जे की कोशिश
फर्जी रजिस्ट्री तैयार होने के बाद उसे सहारनपुर के रिकॉर्ड रूम में जिल्द में चिपकाने के लिए लाख रुपये देव कुमार निवासी सहारनपुर को देने की बात हुई और 3 लाख रुपये एवं फर्जी रजिस्ट्री लेकर शमशाद को भेजा गया, जिसने देव कुमार को 3 लाख रुपये व फर्जी रजिस्ट्री को चिपकाने के लिए दे दी। दो-तीन दिन बाद उसकी नकल समीर कामयाब वकील अहमद और हुमायूं परवेज सहारनपुर से निकलवा कर ले आए और लाला सरणीमल एवं लाला मणिराम वाली 55 बीघा जमीन की पैमाइश करने के लिए हुमायूं द्वारा एसडीएम के यहां एक वाद दायर किया गया और उसकी एक फाइल हाई कोर्ट में चलाई गई थी। हाई कोर्ट के आदेश से संयुक्त टीम द्वारा उक्त भूमि का निरीक्षण किया गया। टीम ने हुमायूं परवेज को कागज दिखाने को कहा, क्योंकि उक्त जमीन वर्ष 1958 में ही तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा रक्षा मंत्रालय को हस्तांतरित की जानी पाई गई थी। इस आधार पर हुमायूं परवेज का वाद खारिज कर दिया गया और सभी के मंसूबों पर पानी फिर गया।

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