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एमडीडीए के 2041 के मास्टर प्लान में न दोहराई जाए 2001 जैसी कहानी
अप्रैल 2023 में मांगी गई थी आपत्तियां, जनता को दिया 30 दिन का समय, 05 माह बाद भी मास्टर प्लान का पता नहीं
Amit Bhatt, Dehradun: मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के वर्ष 2041 के जीआईएस आधारित मास्टर प्लान पर बात करने से पहले वर्तमान में लागू मास्टर प्लान (2005-2025) पर बात करनी जरूरी है। वर्तमान में लागू मास्टर प्लान को वर्ष 2001 में लागू कर दिया जाना चाहिए था। क्योंकि, वर्ष 1985 में लागू मास्टर प्लान वर्ष 2001 तक के लिए ही था। वर्ष 2000 में जब प्रदेश बना तो धरातलीय परिदृश्य तेजी से बदलने लगा। जमीनों की बिक्री और निर्माण में बेतहाशा वृद्धि होने लगी। एमडीडीए को को सुनियोजित करने के लिए प्रभावी और नए मास्टर प्लान की जरूरत थी। लेकिन, हुआ क्या कि मास्टर प्लान पर वर्ष 2005 में कदम बढ़ाए गए।
इसमें तमाम खामियां होने के चलते मास्टर प्लान को वर्ष 2008 में लागू किया जा सका। इस प्लान को भी वर्ष 2013 में संशोधित करने की जरूरत पड़ गई। प्लान में वर्ष 2025 तक के विकास का खाका था, लेकिन जब मास्टर प्लान ही विलंब से लागू किया गया तो वह कैसे आगे निकल चुके निर्माणों को नियोजित कर पाता। जिसका नतीजा आज सभी के सामने है, मास्टर प्लान कुछ कहता है और धरातल की तस्वीर कुछ और।
मास्टर प्लान जितना लटकेगा, धरातल उतना भटकेगा
तेजी से बढ़ते शहरीकरण के प्रबंधन के लिए नए मास्टर प्लान को लागू करने में लेटलतीफी भारी पड़ सकती है। क्योंकि, वर्तमान में लागू मास्टर प्लान का हश्र सामने है। राजधानी बनने से पहले दून का शहरीकरण 746 हेक्टेयर में सिमटा था। वर्ष 2008 में जब एमडीडीए के मास्टर प्लान को विलंब से लागू किया गया, उस दौरान शहर 1463 हेक्टेयर में फैल चुका था। वर्ष 1998 से 2003 के बीच शहरीकरण में विस्तार की दर 32 प्रतिशत थी, जबकि इसके बाद पांच साल के भीतर यह बढ़कर 49 प्रतिशत तक पहुंच गई। शहर के यह विस्तार बड़े भूभाग पर मनमर्जी हावी रही। क्योंकि, हमारे शहर का मास्टर प्लान खुद लेटलतीफी का शिकार था।
2041 तक 22 लाख होगी आबादी, बढ़ेगी चुनौती
वर्ष 2041 तक के मास्टर प्लान के ड्राफ्ट में अनुमान लगाया गया है कि अगले 19-20 साल के अंतराल में शहर की आबादी बढ़कर करीब 22 लाख हो जाएगी। वर्तमान में ही मास्टर प्लान के ड्राफ्ट के मुताबिक शहर की आबादी को 12.50 लाख से अधिक बताया गया है। इससे न सिर्फ आबादी का घनत्व बढ़ेगा, बल्कि आवासीय जरूरतों की पूर्ति के लिए 10 हजार हेक्टेयर जमीन की अतिरिक्त जरूरत पड़ेगी। यह जमीन कहां से आएगा, इसके लिए भी प्रयास करें होंगे। बेहतर यह है कि शहर की जरूरत और उसके नियोजन के लिए मास्टर प्लान को शीघ्र लागू कर कड़ाई के साथ पालन कराया जाए।
नदी-नालों से लेकर पार्क, कृषि और ग्रीन जोन को निगल रही आवास की बढ़ती जरूरत
जब शहर बढ़ेगा तो आवास की जरूरत भी बढ़ेगी, लेकिन यह जरूरत एक सीमित परिधि के शहर में ही बढ़ाई गई तो यहां न सिर्फ हरियाली खत्म हो जाएगी, बल्कि नदी-नालों से लेकर ग्रीन जोन भी समाप्त हो जाएंगे। ऐसा चारों ओर दिख भी रहा है। मास्टर प्लान में आवासीय श्रेणी का आरक्षण 36 से 39 प्रतिशत तय किया गया है। फिर भी यह बढ़कर 58.43 प्रतिशत हो गया। यदि इसमें पहली बार जोड़ी गई मिक्स्ड जोन की श्रेणी और नदी-नालों के निर्माण को भी जोड़ दिया जाए तो यह हिस्सा मास्टर प्लान में 80 प्रतिशत पहुंच जाएगा। वहीं, मनोरंजन और ग्रीन जोन की मानक हिस्सेदारी 14-16 प्रतिशत से घटाकर 5.98 प्रतिशत कर दी गई है। ऐसे में शहर सिर्फ कंक्रीट का जंगल ही नजर आता है। लिहाजा, मास्टर प्लान को व्यवस्थित ढंग से लागू करने के साथ ही शहर को डी-कंजस्ट करने की दिशा में भी गंभीरता से आगे बढ़ने की जरूरत है।
एसडीसी फाउंडेशन ने एमडीडीए को लिखा पत्र, पूछा मास्टर प्लान 2041 पर लोगों की राय का क्या हुआ
एमडीडीए के उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी को लिखे पत्र में पूछा गया है कि करीब 800 लोगों ने ड्राफ्ट मास्टर प्लान पर सुझाव दिए हैं, उन सुझावों का क्या हुआ। फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने इसके अलावा देहरादून से संबंधित 10 और बिंदु भी उठाए हैं और सवाल किया है कि शहर के लिए बेहद महत्वपूर्ण इन मुद्दों पर एमडीडीए और उत्तराखंड सरकार क्या कर रही है।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अप्रैल 2023 में देहरादून ड्राफ्ट मास्टर प्लान तैयार किया गया था। एमडीडीए ने इसे अपने डोमेन पर जारी करके 30 दिन के भीतर आम लोगों से सुझाव मांगे थे। हालांकि, इसके लिए किसी तरह का प्रचार-प्रसार नहीं किया गया।
मास्टर प्लान को लेकर बहुत से सवाल भी उठे थे। मांग की गई थी कि ड्राफ्ट को लेकर आम लोगों तक पहुंचा जाए और सरल भाषा में लोगों को इस ड्राफ्ट के बारे में बताकर उनकी राय ली जाए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया।
अभी तक करीब 800 लोगों के ड्राफ्ट मास्टर प्लान पर सुझाव आने की बात सामने आई है । लेकिन, लगभग 05 महीने बीतने के बाद भी आम पब्लिक से जुड़ी कोई पब्लिक पार्टिसिपेशन की कार्रवाई या मीटिंग नहीं की गई है।
अनूप नौटियाल ने अपने पत्र में 10 और बिंदुओं पर फोकस किया है और कहा है कि पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील होने के बावजूद देहरादून में बेतहाशा निर्माण हो रहे हैं। शहर लगातार कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है। विकास कार्यों में अदूरदर्शिता बरती जा रही है।
उन्होंने अपने पत्र में पिछले दिनों दून वैली नोटिफिकेशन को लेकर की गई हाई कोर्ट की टिप्पणी का भी जिक्र किया है और मौजूदा खामियों को दूर करने का आग्रह किया है। साथ ही मास्टर प्लान के अनुसार 2041 तक 23.5 लाख से 24.0 लाख की देहरादून की अनुमानित जनसंख्या (फ्लोटिंग पॉपुलेशन को मिलाकर) को शहर की कैरिंग कैपेसिटी से जोड़ने की तरफ ध्यान देने पर ज़ोर दिया है।
पत्र में संभावित भूकंप को लेकर भी सवाल किया गया है। कहा गया है कि देहरादून के राजपुर रोड, सहस्त्रधारा रोड क्षेत्र से फाल्ट लाइन गुजर रही है। इसके बावजूद एमडीडीए लगातर इस क्षेत्र में भी बड़े व्यावायिक और रिहायशी निर्माणों को मंजूरी दे रहा है।
दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे का जिक्र करते हुए पत्र में कहा गया है कि इससे दून में भीड़ बढ़ेगी, लेकिन शहर में व्यवस्थाएं दुरुस्त न होने के कारण समस्या बढ़ेगी। दून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट और प्रस्तावित मेट्रो को लेकर भी पत्र में सवाल उठाए गए हैं।
इसके साथ ही अनूप नौटियाल ने शहर में सफाई, ट्रैफिक, ड्रेनेज, हरियाली, क्लाइमेट जैसी तमाम चुनौतियों का जिक्र किया है और इसके अनुरूप शहर का ढांचागत विकास सुनिश्चित करने की मांग की है।