हरिद्वार का बाजीगर कौन? त्रिवेंद्र को मिलेगा रामराज्य, हरदा जीतेंगे हारी बाजी या उमेश गढ़ेंगे नई कहानी
प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट में से हरिद्वार में नजर आ सकता है रोचक रण, त्रिकोणीय साबित हो रहे मुकाबले में कोई भी पकड़ ढीली छोड़ने को तैयार नहीं

Rajkumar Dhiman, Dehradun: हरिद्वार का सस्पेंस खत्म हो गया है। हरिद्वार लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत को टिकट दिया है। यही हसरत राजनीति के आखिरी पड़ाव से गुजर रहे हरीश रावत की थी भी। उन्हीं की ना-नुकुर के चलते कांग्रेस आलाकमान को निर्णय लेने के लिए कुछ अधिक ही कसरत करनी पड़ी। दूसरी तरफ भाजपा से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनके धुर-विरोधी व खानपुर के विधायक उमेश कुमार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। इस सीट पर हरीश रावत की साख दांव पर है, तो भाजपा प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत पर मोदी की गारंटी पर खरा उतरने के साथ ही अपने चिर विरोधी उमेश कुमार को पटखनी देने की चुनौती साफ दिख रही है। पत्रकार से राजनेता बनकर उभरे उमेश कुमार के सामने भी यह जंग जीने-मरने जैसी है। क्योंकि, वह त्रिवेंद्र सिंह रावत को हमेशा ही खुली चुनौती देते नजर आए हैं।

हरिद्वार सीट पर न सिर्फ त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है, बल्कि सभी की अपनी-अपनी कहानी होने के चलते राजनीति का पारा भी चरम पर है। भाजपा प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत को विधानसभा चुनाव से कुछ ही समय पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी से अपदस्थ कर दिया गया था। तब से वह करीब 03 तीन साल के राजनीतिक वनवास में भी चले गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत वर्ष 2017 से कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं। उनकी जीत की भूख भी बढ़ गई है और वह इसके पूरा करने की ख्वाहिश अपने बेटे वीरेंद्र रावत के रूप में देखने के फिक्रमंद हैं। हरिद्वार सीट पर तीसरा कोण बना रहे उमेश कुमार पत्रकार थे और त्रिवेंद्र रावत की सरकार में उन्हें जेल का मुहं देखना पड़ा था। तभी से त्रिवेंद्र और उमेश एक दूसरे के खांटी विरोधी माने जाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार उमेश कुमार और त्रिवेंद्र के बीच छत्तीस का आंकड़ा तब से है, जब त्रिवेंद्र उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे और उमेश कुमार बतौर वरिष्ठ पत्रकार उनकी आलोचना किया करते थे। त्रिवेंद्र सरकार में उमेश कुमार को जेल भेजा गया था। जेल से बाहर आने के बाद उमेश और त्रिवेंद्र के बीच की जंग खुलकर सामने आ गई। उमेश ने विभिन्न सार्वजनिक और सोशल मीडिया मंच से त्रिवेंद्र को खुली चुनौती दी थी। उन्होंने यहां तक कह डाला था कि वह त्रिवेंद्र सरकार के घोटाले परेड ग्राउंड में बड़ी स्क्रीन लगाकर दिखाने को तैयार हैं।

त्रिवेंद्र सरकार की ओर से दर्ज मामले की सुनवाई में हाई कोर्ट ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे डाले थे। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बाद में रद्द कर उन्हें राहत दे दी थी। हालांकि, इस बीच गाहे-बगाहे जुबानी जंग जारी रही और अब नियति ने दोनों को एक ही रण में आमने-सामने ला खड़ा कर दिया है। इस लिहाज से देखें तो प्रदेश में हरिद्वार सीट पर सर्वाधिक रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है।
हरिद्वार सीट पर उमेश के चिर विरोधी सिर्फ त्रिवेंद्र ही नहीं हैं, बल्कि खानपुर सीट से पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के साथ भी उमेश कुमार की जमकर ठनी रहती है। किसी भी मंच से उमेश और कुंवर प्रणव सिंह एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। क्योंकि, खानपुर के बाहुबली नेता कहे जाने वाले कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन से निर्दलीय उमेश कुमार ने उनका बसा-बसाया सियासी राज जो छीन लिया था।
अब देखने वाली बात यह है कि कुंवर प्रणव खानपुर क्षेत्र से उमेश कुमार के दूर होने की कामना करते हुए खामोश रहते हैं या वह भी अपने कट्टर विरोधी को धूल चटाने के लिए त्रिवेंद्र की ताकत को और बल देते हैं। देखने वाली बात यह भी होगी कि अब तक अपनी लड़ाई अकेले लड़ने वाले उमेश कुमार खानपुर की तरह यहां भी कोई करिश्मा दिखाते हैं या इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा।
हरिद्वार के मुकाबले में भाजपा प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत के ऊपर भी दबाव चरम पर होगा। इस राजनीतिक वनवास के बाद उन्हें न सिर्फ मोदी की गारंटी पर खरा उतरना है, बल्कि अपने चिर विरोधी उमेश कुमार को भी उन्नीस साबित करना है। तभी उन्हें वनवास के बाद के रामराज्य के दर्शन हो पाएंगे। हरीश रावत बेशक यह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन जिस जिद के लिए उन्होंने कांग्रेस हाईकमान को झुकाया है, वह उसे सही साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य और स्वीकार्यता की दशा-दिशा भी तय करेगा।